हम जानते हैं आजकल हमारी बातों को पसंद नहीं किया जाता। जिधर भी जाते हैं उधर हमारी बदली हो जाती है। मगर इतनी बदली के बाद भी हम नहीं बदले। हम जानते हैं तुम लोग कभी नहीं सुधरोगे, हम नहीं सुधर रहे तो अजमेर वालों तुम क्या सुधरोगे?
यह डायलॉग फिल्म अभिनेता असरानी ने मंच से सुनाया तो अजमेर वालों ने जमकर तालियां और सीटियां बजाईं। शनिवार रात अजमेर के आजाद पार्क में गोवर्धन असरानी (असरानी) सिंधी संगीत समिति की ओर से हुए सिंधी मेला में शिरकत करने आए थे।
कार्यक्रम में विधानसभा स्पीकर वासुदेव देवनानी और जूनियर हेमा मालिनी भी थीं। कार्यक्रम के दौरान असरानी ने राजस्थानी की मेहमानी और मेजबानी की तारीफ की।
मैं दुनियाभर में गया। लेकिन जो प्यार और सम्मान मुझे राजस्थान में, खास तौर पर अजमेर में मिला, वैसा मैंने कहीं और महसूस नहीं किया।संदेश लेकर मैं हिंदुस्तान की पूरी फिल्म इंडस्ट्री में जाऊंगा।
तालियां-सीटियां कलाकार का ऑक्सीजन
असरानी ने कहा- तालियां और सीटियां कलाकार के लिए ऑक्सीजन का काम करती हैं। बड़े-बड़े कलाकारों के पास बिल्डिंग, स्विमिंग पूल, गाड़ियां और बगीचे होंगे। लेकिन दर्शक की तालियां-सीटियां नहीं होंगी तो सब बेकार है।
मैं सिंधी संगीत समिति का आभारी हूं जिन्होंने मुझे अजमेर में बुलाया और यह भव्य आयोजन किया। यहां मुझे बुलाकर सभी ने मेरा सम्मान नहीं हिंदुस्तान की फिल्म इंडस्ट्री का सम्मान किया है।
सिंधी सभ्यता को बढ़ाने के लिए ऐसा बड़ा कार्यक्रम मैंने कभी नहीं देखा। अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया सब जगह गया हूं। अजमेर में जो सम्मान मिला वह दुनिया में कहीं पर भी नहीं मिला है। यह राजस्थान और सिंधी समाज की सभ्यता है।
सिंधियों ने कभी भी भीख नहीं मांगी
असरानी ने कहा- किसी भी देश में आपने सिंधी भिखारी नहीं देखा होगा। सिंधी ने कभी भीख नहीं मांगी। सिंधी ने गोलियां बेची, कपड़े का व्यापार किया, पकौड़े बेचे लेकिन भीख नहीं मांगी। यह एक बहुत बड़ी बात है।
कोई सिंधी डाकू, आतंकवादी, नक्सली, हत्यारा, खूनी नहीं मिलेगा। व्यापारी जरूर मिलेगा। सिंधियों ने जापान, इंडोनेशिया, मलेशिया कोई देश नहीं छोड़ा जहां उन्होंने कपड़े, पकौड़े, पकवान न बेचा हो। मैंने भी बेचा है। मेरे पिता और मां ने भी बेचा है। कपड़े तक सिले हैं, मगर भीख नहीं मांगी। यह बहुत बड़ी बात है।
पब्लिक के बीच कोई डायरेक्टर या डायलॉग नहीं…
असरानी ने कहा- सिनेमा के परदे पर हम डायलॉग बोलते हैं। सिनेमा के परदे और टीवी पर आप हमें देख सकते हैं। आज मैं रूबरू हूं। परदे पर हमें वही करना पड़ता है जो डायरेक्ट बोलता है। आज कोई डायरेक्टर नहीं है, हम आमने-सामने हैं।
असरानी ने फिल्म शोले का डायलॉग मंच पर दोहराया। वे बोले- अटेंशन, हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं, हमारी जेल में सुरंग.. आधे इधर जाओ आधे उधर जाओ, बाकी मेरे पीछे आओ.. हमारे जासूस जेल के कोने-कोने में फैले हुए हैं। हमारे हुक्म के बिना यहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता।
कराची से जयपुर आकर बसे थे असरानी के पिता
बता दें कि असरानी के पिता 1936 में कराची (पाकिस्तान) से जयपुर आ गए थे। उनके पिता ने पाकिस्तान से आने के बाद सबसे पहले एमआई रोड स्थित ‘इंडियन आर्ट्स कार्पेट फैक्ट्री’ में नौकरी की थी। जयपुर में 1 जनवरी, 1941 को जन्मे असरानी की पढ़ाई जयपुर के सेंट जेवियर स्कूल और राजस्थान कॉलेज में हुई। जयपुर में वह मित्रों के बीच “चोंच’ नाम से मशहूर थे। असरानी के बड़े भाई नंद कुमार असरानी जयपुर की न्यू कॉलोनी में लक्ष्मी साड़ी स्टोर्स के नाम से दुकान चलाते थे। असरानी 1962 में मुंबई पहुंचे। उनकी 1963 में अचानक किशोर साहू और ऋषिकेश मुखर्जी से मुलाकात हुई तो उन्होंने पुणे में एफटीआईआई से अभिनय का कोर्स करने की सलाह दी। कोर्स करने के बाद उन्हें इंडस्ट्री में काम मिला और शोले के बाद वे बड़े परदे पर छा गए।