खेतड़ी : हिंदुस्तान कॉपर की खेतड़ी कॉपर काम्प्लेक्स एशिया का सबसे बड़ा ताम्र संयंत्र हुआ करता था। इसकी ताम्र खदानों का अतीत में भी इतिहास में उल्लेख है।
मजदूर यूनियन खेतड़ी तांबा श्रमिक संघ के महासचिव बिरदू राम सैनी ने बताया कि प्राचीन समय में भी खेतड़ी में ताम्र खनन का इतिहास है। वर्ष 1590 में शेख अबुल फैजल द्वारा लिखित पुस्तक आइने अकबरी में भी क्षेत्र की ताम्र खदानों का उल्लेख है। इसमें एक स्थान पर लिखा है कि बबाई में पत्थर का किला व तांबे की खान है तो दूसरे स्थान पर लिखा है कि सिंघाना व उदयपुर में तांबे की खान तथा तांबे के सिक्के बनाने की टकसाल स्थित है।
क्षेत्र में 1872 में तांबे का खनन कार्य लगभग बंद हो गया। परंतु छोटे पैमाने पर 1910 तक चलता रहा। इसको पुन: 1915 से 1918 तक शुरू किया गया। खेतड़ी में 1923 से 1927 मदान-कूदान तथा कोलिहान अनुभाग में ताम्र खनन के पुन: प्रयास किए गए। परन्तु सफलता नहीं मिली। इसके पश्चात जयपुर माइनिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड नामक कंपनी ने मदान -कुदान में गवेषण व खनन कार्य का शुभारंभ किया। उनके पास वर्ष 1944 से 1955 तक खनन पट्टा रहा। परंतु उन्होंने बहुत कम मात्रा में खनन कार्य किया। इसके पश्चात 1954 में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग ने यहां सर्वेक्षण कार्य किया तथा 1957 में आईबीएम ने एक्सप्लोरेशन व खनन कार्य किया। आईबीएम ने 1961 में एनएमडीसी को यह कार्य सौंप दिया। इसके पश्चात 1967 में हिंदुस्तान कॉपर के गठन के पश्चात इसका कार्य हिंदुस्तान कॉपर कर रही है। जीएसआई की रिपोर्ट के अनुसार सिंघाना से रघुनाथगढ़ तक 76 किलोमीटर की ताम्र पट्टी है।
खेतड़ी में तालाब के मोहल्ले में पौराणिक समय में तांबे के पत्थरों को गलाने के लिए भट्टी बनी हुई थी। जिसे ईसरलाट बोलते थे तथा उसमें पत्थरों को गला कर कॉपर सल्फेट (नीला थोथा) का उत्पादन किया जाता था। तांबे के गले हुए पत्थरों के अवशेष आज भी तालाब मोहल्ले व तालाब मोहल्ले में मौजूद हैं।– डॉ राघवेंद्र पाल, सेवा निवृत्त चिकित्सक
बबाई की आका वाली खदानों में तांबा अयस्क खुदाई के पश्चात बबाई के तिवाडियो के मोहल्ले व नायकों के मोहल्ले के पास में इसको गला कर तांबा अलग किया जाता था ।तांबे के पत्थर जलाने के अवशेष आज भी दोनों महलों में स्थित है।
-नारायण दत्त तिवाड़ी, सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक, बबाई
सिंघाना क्षेत्र में पौराणिक काल में तांबे का खनन होता था। उसमें तांबे के अयस्क को जलाकर तांबा निकाला जाता था।उसके अवशेष आज भी टीटोडा मोहल्ले में स्थित है।
– विजय पांडे, नगर पालिका अध्यक्ष, सिंघाना