सीकर : एसके अस्पताल के ट्रोमा सेंटर में डॉक्टरोंे की लापरवाही ने 25 साल के युवक को जीवनभर के लिए विकलांग बना दिया। क्योंकि जयपुर में इलाज के दौरान उसका पैर काटना पड़ा। युवक फिलहाल जयपुर में उपचाराधीन है। इधर, ट्रोमा इंचार्ज ने लापरवाही की जांच शुरू कराई है।
मामले के अनुसार सरदारशहर निवासी भागीरथमल (25) हादसे में घायल हो गया। उसका पैर टूटा था व अंदर की वैन कट गई। इसलिए सरदारशहर सीएचसी से उसे रेफर कर दिया। 15 नवंबर की रात 8.40 बजे परिजन युवक को लेकर एसके अस्पताल पहुंचे। ट्रोमा यूनिट में उस वक्त नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. पृथ्वी व मनोरोग विभाग के डॉ. रामसिंह यादव की ड्यूटी थी। दोनों डॉक्टरों ने चैकअप किया। परिजनों ने ज्यादा ब्लीडिंग होने की शिकायत की, लेकिन आरोप है दोनों डॉक्टरों ने ध्यान नहीं दिया। युवक को ऑर्थो वार्ड में भर्ती कर लिया। 16 नवंबर को सुबह डॉक्टर राउंड पर आए व जांच की तो पैर में काला पड़ चुका था। क्योंकि वैन कटी होने के कारण पैर में ब्लड की सप्लाई बंद थी।
इस पर उसे रेफर कर दिया गया। अंत में उसका एक पैर काटना पड़ा। ट्रोमा यूनिट में युवक के इलाज को ऑन कॉल हड्डी रोग विशेषज्ञ को नहीं बुलाने और लापरवाही को लेकर पड़ताल की तो चौंकाने वाला खुलासा हुआ। ट्रोमा यूनिट में बदइंतजामी का आलम ये है कि जिन हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. सुनील ढाका की ऑनकॉल ड्यूटी लगी हुई थी, उन्हें एक दिन पहले ही जयपुर राजमेस मुख्यालय भेजा जा चुका था। लिहाजा वे मुख्यालय छोड़ चुके थे। उन्हें राजमेस मुख्यालय में नई भर्तियों के सिलसिले में दस्तावेज सत्यापन के लिए लगाया गया था। सीकर में उनकी मौजूदगी ही नहीं थी।
इसके बावजूद अस्पताल प्रबंधन ने ट्रोमा यूनिट में उनकी ऑनकॉल ड्यूटी लगा दी। 15 नवंबर की रात जब युवक को ट्रोमा यूनिट लाया गया तो नेत्र व मनारोग विशेषज्ञ ने टांके लगाकर वार्ड में भर्ती कर लिया। हड्डी रोग विशेषज्ञ ने युवक की जांच ही नहीं की। इसका नतीजा ये हुआ कि युवक के पैर में ब्लड सप्लाई होने या न होने की जानकारी नहीं ली गई। ब्लड सप्लाई रुकी होने के कारण युवक का पैर काला पड़ गया। (मीडिया के पास ट्रोमा यूनिट में 15 नवंबर को ऑनकॉल ड्यूटी रजिस्टर की फोटो प्रति है।) इवनिंग व नाइट ड्यूटी के दौरान ट्रोमा यूनिट में नेत्र, स्किन और मनोरोग विशेषज्ञों की ड्यूटी लगाई जाती है।
जूनियर व सीनियर रेजिडेंट ड्यूटी करते हैं। हादसों में घायल होकर पहुंचने वाले मरीजों के इलाज का जिम्मा इन विशेषज्ञों का रहता है। लिहाजा जरूरतमंद मरीजों के इलाज में संशय बना रहता है। ये विशेषज्ञ गंभीर मरीजों का इलाज शुरू करने के बजाए उन्हें जयपुर रेफर कर देते हैं। इसलिए ट्रोमा से रेफर होने वाले मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले 10 माह में ट्रोमा यूनिट से 890 मरीजों को जयपुर ^ऑर्थो डिपार्टमेंट के एचओडी ने अवगत कराया था कि ट्रोमा में बिना देखे मरीज को भर्ती किया। हमने जांच शुरू करा दी है। जिनकी लापरवाही मिलेगी, उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की जाएगी।
युवक का पैर कटने की जानकारी हमारे पास नहीं है। डॉ. महेंद्र खीचड़, अधीक्षक, एसके अस्पताल ^हमारे पास युवक गंभीर हालत में आया था। हमने पैर बचाने की काफी कोशिश की, लेकिन वैन कटी होने के कारण पैर काला पड़ चुका था। बुधवार को सर्जरी का पैर काटना पड़ा। डॉ. अश्विनी बगड़िया, वंदना मेमोरियल हॉस्पिटल, जयपुर