नीमकाथाना : नीमकाथाना नगर परिषद के वर्तमान बोर्ड का कार्यकाल 25 नवंबर को पूरा जाएगा। लेकिन पांच साल बीतने पर भी शहरी क्षेत्र के लोग सड़क, सफाई, रोशनी व रास्तों की समस्या से जूझ रहे हैं। नीमकाथाना के जिला बनने पर नगर पालिका को क्रमोन्नत कर नगर परिषद का दर्जा दे दिया गया। लोगों को उम्मीद थी अब विकास रफ्तार पकड़ेगा।
आखिरी साल में भी बोर्ड किसी बड़े मुद्दे का समाधान नहीं निकाल सका। दिसबंर में निकाय चुनाव प्रस्तावित हैं। लेकिन राज्य सरकार एक प्रांत एक चुनाव पर मंथन कर रही है। ऐसे में चुनाव एक साल आगे होने की संभावना है। नगर परिषद सभापति सरिता दीवान ने 26 नवंबर 2019 को कार्यग्रहण किया था। अब पांच साल का कार्यकाल पूरा होने को है। इस दौरान महज 8 बार साधारण सभा की बैठक हुई। ये भी बजट पारित करने के लिए बुलाई गई। जनता के मुद्दों व विकास कार्यों पर चर्चा के लिए साधारण सभा बुलाने में सत्ता पक्ष व विपक्ष ने कोई रुचि नहीं दिखाई। कई ऐसे मसले हैं जिनको सदन में उठाया जाता तो समाधान हो सकता था। सबसे बड़ा मुद्दा रेलवे अंडरपास निर्माण का है। बोर्ड का कार्यकाल पूरा होने को है लेकिन इसका कोई समाधान नहीं निकला।
अब तक इन वाडौँ के विकास पर सबसे कम खर्च
वार्ड 2 : भाजपा पार्षद रेखा गोयल के वार्ड में साढ़े चार साल में महज दो लाख पांच हजार रुपए खर्च हुए। वार्ड में केवल एक ही काम करवा पाईं।
वार्ड 9 : यहां पार्षद कांग्रेस के चंदशेखर हैं। साढ़े चार साल में वार्ड को उपेक्षित रखा। केवल एक काम स्वीकृत हुआ, जिस पर 2.33 लाख रुपए खर्च हुए। पार्षद ने भी विकास में रुचि नहीं दिखाई।
वार्ड 10 : यहां पार्षद भाजपा की चंपा देवी शर्मा हैं। भाजपा ने इनको अध्यक्ष के लिए उम्मीदवार बनाया था। लेकिन साढ़े चार साल में अपने वार्ड में एक भी काम स्वीकृत नहीं करवा पाईं। कोई राशि खर्च नहीं की।
वार्ड 14 : यहां पार्षद कांग्रेस की पूनम खापरवाल हैं। साढ़े चार साल में केवल एक काम स्वीकृत हुआ। इस पर महज 2.85 लाख रुपए खर्च हुए। पार्षद ने भी वार्ड में विकास को लेकर कोई रुचि नहीं दिखाई। नतीजा विकास की संभावनाओं के बावजूद वार्ड पिछड़े क्षेत्रों में शामिल हो गया।
वार्ड 21 : भाजपा पार्षद शाकिर अली भी अपने एरिया में विकास को लेकर सक्रिय रहे। बोर्ड की बैठकों में भी अपने एरिया के मुद्दे रखे। 17 कामों को मंजूरी करवाई। इनपर 1.5 करोड़ रुपए खर्च हुए।
वार्ड 26 : यहां पार्षद कांग्रेस की कविता कुमावत हैं। कांग्रेस बोर्ड होने के बावजूद साढ़े चार साल में महज एक लाख 87 हजार रुपए के विकास कार्य हुए। पार्षद ने भी विकास को लेकर रुचि नहीं दिखाई। केवल 1 काम हुआ।
इन वाडौं में सबसे अधिक बजट खर्च हुआ
वार्ड 4 : कांग्रेस पार्षद सरिता दीवान जो सभापति हैं। इस वार्ड में भी काफी विकास कार्य हुए। साढ़े चार साल में सबसे अधिक 24 विकास कार्यों को मंजूरी मिली। इन पर 1.58 करोड़ रुपए खर्च हुए।
वार्ड 19 : कांग्रेस पार्षद अभय डांगी भी विकास को लेकर सक्रिय रहे। 21 कार्यों पर 1.72 करोड़ रुपए खर्च हुए।
वार्ड 30 : यहां पार्षद कांग्रेस के संजीव मोदी हैं। सबसे अधिक सक्रिय रहे। परिषद से 12 विकास कार्यों को मंजूरी मिली। 3.81 तीन करोड़ रुपए खर्च हुए। इस वार्ड में विकास के लिए सबसे अधिक राशि खर्च हुई।
वार्ड 31 : यहां पार्षद कांग्रेस के कृष्ण कुमार सैनी हैं। विकास में ये वार्ड दूसरे नंबर पर है। वार्ड में साढ़े चार साल में 22 कामों को मंजूरी मिली। यह नगरपरिषद क्षेत्र में कामों के हिसाब से सबसे अधिक है। यहां 1.87 करोड़ रुपए विकास पर खर्च हुए।
ये बड़े मुददे जो अधूरे पड़े हैं
- अंडरपास : शहर में अंडरपास निर्माण का मामला सबसे बड़ा मुद्दा है। शहर का आधा हिस्सा सहित 22 गांवों के करीब 25 हजार लोग सीधे प्रभावित हो रहे हैं।
- सीवरेज : पिछली कांग्रेस सरकार ने सीवरेज प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया था। बोर्ड ने लगातार 3 सालों तक सीवरेज के लिए 85 करोड़ का प्रावधान तक किया था।
- विस्तार : नगरपरिषद एरिया के विस्तार को लेकर पांच साल बाद भी कोई निर्णय नहीं हो पाया।
- अतिक्रमण : शहर में अतिक्रमण सबसे बड़ी समस्या है। बोर्ड इस पर कोई बड़ा फैसला नहीं कर पाया।
भाजपा सरकार आते ही ठप हो गया विकास कार्य
नगर परिषद ने साढ़े चार साल में 35 वार्डों में विकास कार्यों पर 30 करोड़ रुपए खर्च किए। इस दौरान 340 कामों को मंजूरी दी गई। विकास कार्यों के लिए 27 करोड़ रुपए के टेंडर किए गए। वहीं परिषद ने अब तक 25 करोड़ रुपए का भुगतान किया। प्रदेश में सरकार बदलने के बाद शहरी क्षेत्र में विकास ठप हो गया। नए टेंडर भी नहीं हुए और ना पुराने कार्यों को आगे बढ़ाया गया।
शुरुआती दो साल कोविड में बीते। हालांकि उस दौरान शहर में जरूरतमंद लोगों के लिए भोजन, अस्पताल में उचित उपचार व सुविधाएं जुटाने पर फोकस रहा। एमपी-एमएलए चुनाव को लेकर आचार संहिता रही। एक साल से भाजपा सरकार ने अधिकारियों व कार्मिकों के तबादले कर कामकाज ठप कर दिया। कार्मिकों को वेतन तक नहीं मिल पा रहा। विकास के लिए बजट भी नहीं दिए गए। – सरिता दीवान, सभापति
एम्पॉवर्ड कमेटी व बोर्ड के अधिकार अलग-अलग हैं। एक्ट में कहीं ऐसा नहीं हैं कि एम्पॉवर्ड कमेटी होने पर साधारण सभा की बैठक नहीं बुलाई जा सकती। पांच साल सभापति विकास के मुददों पर बचतीं रहीं। शहर का विकास ठप कर दिया। वाडों में विकास कार्यों में भेदभाव किया। – महेन्द्र गोयल, नेता प्रतिपक्ष