कांग्रेस ने पति के बजाय क्यों दिया पत्नी को टिकट:पूर्व IPS ने 13 महीने पहले जॉइन की थी BJP, बेनीवाल को हराने के लिए चौंकाने वाला फैसला
कांग्रेस ने पति के बजाय क्यों दिया पत्नी को टिकट:पूर्व IPS ने 13 महीने पहले जॉइन की थी BJP, बेनीवाल को हराने के लिए चौंकाने वाला फैसला

जयपुर : उपचुनावों के लिए कांग्रेस की सूची में सबसे चौंकाने वाला नाम था पूर्व आईपीएस सवाई सिंह चौधरी की पत्नी डॉक्टर रतन चौधरी। चौंकाने वाला इसलिए क्योंकि उनके पति ने महज 13 महीने पहले दिल्ली में बीजेपी जॉइन की थी। अब रतन चौधरी हनुमान बेनीवाल का गढ़ माने जाने वाले खींवसर से कांग्रेस प्रत्याशी हैं।
वहीं, पत्नी को टिकट मिलते ही सवाई सिंह ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया है। दरअसल, हनुमान बेनीवाल और सवाई सिंह चौधरी के बीच सियासी रंजिश का इतिहास है। कई बार दोनों के समर्थकों भी भिड़ चुके हैं।
हालांकि, कुछ दिन पहले तक तक सवाई सिंह चौधरी का नाम कांग्रेस-RLP गठबंधन की संभावनाओं में संयुक्त प्रत्याशी के तौर पर भी था। बाद में पीसीसी चीफ गोविन्द सिंह डोटासरा के बयान से गठबंधन की सभी अटकलों को विराम लग गया था।
हमने दो सवालों के जवाब समझने की कोशिश की…
- क्यों ज्योति मिर्धा के खास रहे पूर्व आईपीएस सवाई सिंह चौधरी ने अचानक उनका साथ छोड़ दिया?
- कांग्रेस ने राजनीतिक रूप से सक्रिय सवाई सिंह की जगह उनकी पत्नी डॉक्टर रतन चौधरी को क्यों टिकट दिया?
पढ़िए पूरी रिपोर्ट…

सवाई सिंह के ज्योति मिर्धा से दूर होने की कहानी
सवाई सिंह चौधरी नागौर विधानसभा के सिणोद गांव के रहने वाले हैं। इनके गांव से हनुमान बेनीवाल के बरणगांव के बीच की दूरी महज 4 किलोमीटर है। सवाई सिंह के पिता महराम चौधरी एक बार प्रधान और साल 1980 से 1985 तक स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह की पार्टी जनता पार्टी सेक्युलर से एक बार नागौर सीट से विधायक भी रहे थे। महराम चौधरी ज्योति मिर्धा के दादा पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे नाथूराम मिर्धा के खेमे के नेता थे। यही कारण था कि आईपीएस की सर्विस पूरी करने के सवाई सिंह ने पॉलिटिक्स का रुख किया। वो नागौर की पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा के खेमे से ही लॉन्च हुए।
हनुमान बेनीवाल के सामने हार
साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सवाई सिंह चौधरी को खींवसर से हनुमान बेनीवाल के सामने उतारा था। ज्योति मिर्धा ने इस चुनाव में सवाई सिंह को जिताने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। चुनाव प्रचार के दौरान कई बार कांग्रेस और बेनीवाल समर्थकों में आमने-सामने टक्कर के हालात भी बने। हनुमान बेनीवाल ये चुनाव 16948 वोटों से जीत गए। हालांकि इस चुनाव में यहां पहली बार कांग्रेस ने बेनीवाल को जोरदार टक्कर दी थी।
उपचुनाव में कटा टिकट
साल 2019 में हनुमान बेनीवाल बीजेपी गठबंधन के साथ नागौर लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति मिर्धा को हराकर RLP के सांसद बन गए। ऐसे में खींवसर सीट पर उपचुनाव होने थे। बेनीवाल ने उपचुनाव में BJP गठबंधन के साथ अपने छोटे भाई नारायण बेनीवाल को RLP प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतार दिया। वहीं कांग्रेस ने पिछले चुनाव में प्रत्याशी सवाई सिंह चौधरी का टिकट काटकर पूर्व मंत्री हरेंद्र मिर्धा को अपना प्रत्याशी बना दिया। इसके चलते ज्योति मिर्धा और सवाई सिंह चौधरी समर्थकों में नाराजगी देखने को मिली। हालांकि हरेंद्र मिर्धा भी 4630 वोटों से यहां हार गए थे।

पिछले साल जॉइन की बीजेपी
इस बीच साल 2020 में मानेसर एपिसोड के चलते गहलोत सरकार संकट में आ गई। ज्योति मिर्धा के खास माने जाने वाले लाडनूं MLA मुकेश भाकर और परबतसर MLA रामनिवास गावड़िया बगावत में सबसे आगे खड़े थे। यही ज्योति मिर्धा की तत्कालीन सीएम गहलोत और सत्ता से दूरियां बढ़ने का कारण बना।
इधर तब तक किसान आंदोलन के मुद्दे पर हनुमान बेनीवाल ने बीजेपी से अपना गठबंधन तोड़ लिया। अब बीजेपी को नागौर में हनुमान को घेरने के लिए बड़े जाट चेहरे की जरुरत थी। वहीं कांग्रेस में बदली परिस्थितियों में ज्योति मिर्धा और सवाई सिंह चौधरी को भी बीजेपी में खुद के लिए भविष्य नजर आ रहा था।
सितंबर 2023 में ज्योति मिर्धा और सवाई सिंह चौधरी ने दिल्ली में बीजेपी जॉइन कर ली। तब ये कयास लगाए गए कि ज्योति मिर्धा अब बीजेपी से लोकसभा की प्रत्याशी बनेंगी और सवाई सिंह चौधरी को खींवसर से विधानसभा चुनाव लड़ाया जाएगा।

बेटा बोला- टिकट का दिया था आश्वासन
सवाई सिंह चौधरी के बेटे सिद्धार्थ चौधरी ने बताया कि उस समय उन्हें यहीं आश्वासन दिया गया था कि आपको विधानसभा चुनाव लड़वाया जाएगा। इसी के चलते उन्होंने खींवसर प्रधान जगदीश बिडियासर और रेवतराम डांगा को को भी ज्योति मिर्धा से मिलवाया। दोनों ही हनुमान बेनीवाल गुट के थे।
सिद्धार्थ का कहना है कि हालांकि, बाद में बीजेपी ने रेवतराम डांग को टिकट दे दिया। उसके बाद हमारा बीजेपी के साथ कमिटमेंट टूट गया था। हालांकि इसके बाद भी हमने कोई बगावत नहीं की और पार्टी नहीं छोड़ी। इन चुनावों में न तो ज्योति मिर्धा और न ही रेवतराम डांगा की तरफ से हमें प्रचार के लिए एप्रोच किया गया। उल्टा वो तो ये चाहते थे कि हम चुनाव प्रचार से भी दूर रहे।
सवाई सिंह की जगह उनकी पत्नी डॉक्टर रतन चौधरी को क्यों टिकट दिया ?
दरअसल सवाई सिंह का ससुराल खींवसर विधानसभा के बैराथल गांव में है। रतन चौधरी को प्रत्याशी बनाए जाने से अब उन्होंने खुद के बाहरी क्षेत्र का होने का टैग हटा लिया है। पहले से संभावना थी कि इस बार हनुमान बेनीवाल अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को चुनाव लड़वाकर महिला कार्ड खेल सकते हैं।
रतन चौधरी के सहारे कांग्रेस ने इस महिला कार्ड की काट भी निकाल ली है। इसके अलावा रतन चौधरी इसी सीट से कांग्रेस के दूसरे दावेदार पूर्व मंत्री और नागौर विधायक हरेंद्र मिर्धा के बेटे रघुवेन्द्र मिर्धा की रिश्ते में मौसी लगती है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा के खास और प्रदेश कांग्रेस कमेटी में महासचिव राहुल भाकर के भी सवाई सिंह चौधरी से पारिवारिक रिश्तेदारी है। ऐसे में ये भी रतन चौधरी के फेवर में गया।

क्या सवाई सिंह और हनुमान बेनीवाल में भी कोई बातचीत चल रही थी?
साल 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद से ही हनुमान बेनीवाल और सवाई सिंह चौधरी के बीच सियासी वार-पलटवार चलता रहा है। हालांकि पिछले साल बीजेपी से रेवतराम डांगा को टिकट मिलने और खुद की वहां अनदेखी के बाद सवाई सिंह चौधरी और हनुमान बेनीवाल में अंदरखाने नजदीकियां बढ़ी थीं।
पहले विधानसभा चुनाव और बाद में लोकसभा चुनाव में सवाई सिंह और उनके समर्थकों ने RLP की मदद की थी। इस बार सवाई सिंह को उम्मीद थी कि जब बेनीवाल के पास कोई दमदार प्रत्याशी नहीं है तो ऐसे में कांग्रेस से गठबंधन के नाते बेनीवाल को उन्हें सपोर्ट करना चाहिए। हालांकि बेनीवाल खींवसर सीट से अपना दावा छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे।