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उम्मीदवार की घोषणा के साथ ही ताश के पत्तों की तरह बिखरी झुंझुनूं भाजपा


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उम्मीदवार की घोषणा के साथ ही ताश के पत्तों की तरह बिखरी झुंझुनूं भाजपा

उम्मीदवार की घोषणा के साथ ही ताश के पत्तों की तरह बिखरी झुंझुनूं भाजपा

झुंझुनूं : झुंझुनूं उपचुनाव को लेकर भाजपा ने ज्यों ही राजेन्द्र भांभू के नाम पर मोहर लगाई वैसे ही झुंझुनूं की राजनीति के अनुरूप जिसका अंदेशा था वहीं हुआ झुंझुनूं भाजपा ताश के पत्तों की तरह बिखरी गई । आज बबलू चौधरी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने की घोषणा ने भाजपा प्रदेश नेतृत्व के उस दावे की पोल खोल दी कि भाजपा एक परिवार की तरह राजनीतिक दल है और इसमें कोई फूट नहीं है । मैंने मेरे लेखों प्रदेश नेतृत्व को अवगत कराया था कि झुंझुनूं में गुटबाजी चरम पर है । जब भी कोई मंत्री झुंझुनूं के दौरे पर आता था तो सभी गुट अलग अलग जगह शक्ति प्रदर्शन करते हुए उसको सम्मानित करते थे । झुंझुनूं में मंत्रियों के ताबड़तोड़ दौरे भी इस गुटबाजी पर लगाम नहीं लगा सके । जिस तरह से भाजपा कांग्रेस पर वंशानुगत राजनीति का आरोप लगाती रही है कि ओला परिवार के सिवाय कांग्रेस के पास कोई उम्मीदवार नहीं है । लेकिन भाजपा की टिकट वितरण प्रणाली को भी दूसरे शब्दों में वंशानुगत राजनीति ही कहा जा सकता है । क्या भाजपा के पास बबलू चौधरी और राजेन्द्र भांभू के अलावा कोई नेता ही नहीं जो झुंझुनूं मे चुनाव निकाल सके । विदित हो दोनो ही उम्मीदवार बागी होकर पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं और उन्हीं पार भाजपा बार बार दांव खेलती है । वैसे भाजपा को कांग्रेस नहीं हराती भाजपा को झुन्झुनू में भाजपा ही हराती आई है और इन उपचुनावो में भी कमोबेश वही परिणाम देखने को मिल सकता है ।

बबलू चौधरी का देखा जाए तो गांवों में नेटवर्क है और उसी के बलबूते पर चुनावी समर में कूदे है । झुंझुनूं के भाजपा नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के आगे पार्टी के प्रति निष्ठा गौण हो चुकी है । लोकसभा चुनावों में भी भाजपा के उम्मीदवार शुभकरण चौधरी ने सार्वजनिक मंचों से उनकी हार का कारण गुटबाजी और भीतरघात बताया था । उससे भी प्रदेश नेतृत्व ने सीख नहीं ली और उन्हीं घोड़ों पर दांव लगा रही है जो गुटबाजी को हवा देते रहे हैं । बबलू चौधरी का टिकट कटने का इंद्रा डूडी प्रकरण का विशेष योगदान रहा है । बबलू चौधरी ने खुद को संगठन से उपर स्थापित कर अपने निजी निवास पर भाजपा का दुपट्टा पहनाकर भाजपा में शामिल करने की घोषणा कर दी । विदित हो प्रधान का पद बड़ा होता है और जिलाध्यक्ष की अनुशंसा पर प्रदेश नेतृत्व उनको शामिल करते हैं लेकिन बबलू चौधरी ने जिलाध्यक्ष बनवारीलाल सैनी को दरकिनार कर खुद को पार्टी का स्वयंघोषित नेता मान लिया ।

कांग्रेस की तरफ से ओला परिवार ही मैदान में होगा । इसके साथ ही पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा भी चुनावी मैदान में होंगे जो पिछले दो महीने से जमीनी स्तर पर मेहनत कर रहे हैं । बबलू चौधरी का चुनाव लड़ना निश्चित रुप से राजेन्द्र भांभू के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि बबलू चौधरी भाजपा के ही वोटो में सेंधमारी करेंगे । यदि मुस्लिम समुदाय अपने उस नारे पर अटल रहता है कि टिकट नहीं तो वोट नहीं उस परिस्थिति में मुस्लिम समुदाय के पास वोट डालने के लिए एक ही विकल्प राजेन्द्र गुढा के रूप में रहता है क्योंकि मुस्लिम समुदाय कभी भी भाजपा को वोट नहीं करेगा । ऐसी परिस्थिति में झुंझुनूं का चुनाव त्रिकोणीय मुकाबले का होना स्वाभाविक है । लेकिन इस दौड़ में राजेंद्र भांभू कहीं पिछड़ते हुए नजर आ रहे हैं या यह कहें कि भाजपा ने ही भाजपा को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । अब यह तो आने वाला समय ही निर्धारित करेगा कि ऊंट किस करवट बैठता है लेकिन राजेन्द्र भांभू की राह आसान नजर नहीं आ रही है ।


 

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