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5 महीने में राजस्थान सरकार के 5 बड़े यू-टर्न क्यों?:दिल्ली में बैठे प्रदेश के बड़े नेताओं का दखल; कई पावर सेंटर, संघ-संगठन से तालमेल नहीं


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5 महीने में राजस्थान सरकार के 5 बड़े यू-टर्न क्यों?:दिल्ली में बैठे प्रदेश के बड़े नेताओं का दखल; कई पावर सेंटर, संघ-संगठन से तालमेल नहीं

5 महीने में राजस्थान सरकार के 5 बड़े यू-टर्न क्यों?:दिल्ली में बैठे प्रदेश के बड़े नेताओं का दखल; कई पावर सेंटर, संघ-संगठन से तालमेल नहीं

जयपुर : राजस्थान सरकार पिछले कुछ समय से अपने फैसले पलटने के कारण चर्चा में है। 3 दिन में 2 बार यू-टर्न लिया। पहले 499 पार्षदों का मनोनयन रद्द किया गया। इसके ठीक एक दिन बाद प्रिंसिपल की तबादला सूची जारी की और दो घंटे बाद इसे निरस्त कर दिया गया।

इतना ही नहीं, सरकार ने 5 महीने में 5 बार बड़े यू-टर्न लिए। हर यू-टर्न के पीछे रोचक कहानी है। कभी मंत्रियों की आपसी भिड़ंत तो कभी जल्दबाजी में फैसले के कारण सरकार को अपने आदेश वापस लेने पड़े।

पढ़िए हर आदेश के पलटने के पीछे की कहानी…

आदेश नं. 1 : आचार संहिता से पहले 40 प्रिंसिपल-टीचर के तबादले

पहले आदेश :

राजस्थान में 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव को लेकर आचार संहिता से ऐन पहले 15 अक्टूबर को शिक्षा विभाग ने 40 प्रिंसिपल-टीचर के तबादलों की लिस्ट जारी की। लिस्ट जारी होते ही हंगामा मच गया। इस सूची में अकेले दौसा से 39 ट्रांसफर किए थे।

सूची इसलिए भी चौंकाने वाली थी, क्योंकि तबादलों पर बैन है। जिन सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें दौसा सीट भी शामिल है। इस सूची में अकेले दौसा से 30 से ज्यादा नाम थे।

फिर यू-टर्न, क्योंकि:

सूची जारी होते ही कैबिनेट मंत्री किरोड़ी लाल मीणा की फिर से राजस्थान सरकार के ऊपर नाराजगी नजर आई। आरोप लगे कि इस सूची में एससी-एसटी वर्ग के शिक्षकों के 500 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर बाड़मेर व बांसवाड़ा तबादले कर दिए और एक जाति विशेष के लिए कृपा बरती गई।

किरोड़ीलाल ने शिक्षा मंत्री मदन दिलावर को पत्र लिखकर नाराजगी जाहिर की और इस सूची को तुरंत निरस्त करने को कहा। विवाद बढ़ता देख आदेश को दो घंटे बाद पलट दिया गया।

सूची को लेकर प्रतिपक्ष के नेता जूली ने भी कहा कि ये तबादले राजनीतिक लाभ और पूर्वाग्रह का नमूना हैं। इन तबादलों को चुनाव आयोग निरस्त करता, इसलिए किरकिरी से बचने के तहत सरकार ने सूची वापस ले ली।

आदेश नं. 2 : पार्षदों के मनोनयन का आदेश रद्द

पहले आदेश :

सत्ता और संगठन के सूत्रों के अनुसार राजस्थान में इस समय पावर सेंटर्स का काफी दखल है। सरकार और संगठन व संघ के बीच तालमेल भी पर्याप्त नहीं है। स्वायत्त शासन निदेशालय ने रविवार को शाम करीब 7 बजे 78 नगरीय निकायों में 499 सहवृत्त सदस्य (पार्षद) मनोनीत किए थे। महज छह घंटे बाद रात करीब 1 बजे इस आदेश को रद्द कर दिया। इनमें 5 नगर निगम, 10 नगर परिषद और 63 नगर पालिका थीं।

फिर यू-टर्न, क्योंकि:

सूत्रों के अनुसार अचानक आई इस सूची पर संगठन और संघ ने नाराजगी जता दी थी। उनका आरोप था कि सरकार ने सूची जारी करने से पहले कोई चर्चा नहीं की। संगठन की रजामंदी भी नहीं ली गई। इसके बाद सरकार ने देर रात सूची ने सूची को रद्द किया। सूत्रों ने बताया कि राजनीतिक नियुक्तियां देने के लिए सत्ता और संगठन में तालमेल नहीं होने की जोरों से चर्चा चल रही है।

राजस्थान में कैबिनेट मंत्री किरोड़ी लाल मीणा के अलावा और भी कुछ पावर सेंटरों का दखल चर्चा में है। पहला, दिल्ली में बड़े पद पर बैठे नेता का भी राजनीतिक नियुक्तियों सहित सरकार में होने वाले निर्णयों में दखल है। दूसरा, एक केंद्रीय मंत्री को लेकर भी इसी तरह की चर्चाएं हैं। तीसरा, संगठन और संघ भी पावर सेंटर के रूप में माना जा रहा है।

आदेश नं. 3 : लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के बड़े नेता को क्लीनचिट

पहले आदेश :

लोकसभा चुनाव के माहौल के बीच मई में राज्य सरकार के सुप्रीम कोर्ट में पेश किए हलफनामे से राजनीति गरमा गई थी। एकल पट्टा मामले में राज्य सरकार ने माना था कि 10 साल पहले के एकल पट्टा मामले में कोई प्रकरण नहीं बनता है। नियमों की पूरी पालना हुई है। इस जवाब से पूर्व मंत्री शांति धारीवाल सहित तीन अधिकारियों को क्लीन चिट दे दी।

फिर यू-टर्न, क्योंकि:

विवाद बढ़ा तो सरकार ने एसीबी के अधिकारी राजेंद्र नैन को APO कर दिया था। इसके बाद सरकार ने यू-टर्न लिया और सुप्रीम कोर्ट में एक और जवाब पेश किया गया। इस जवाब में कहा कि सरकार पुनर्विचार के लिए JDA और एसीबी के अधिकारियों को शामिल कर नई कमेटी गठित करेगी।

इसे राजस्थान से जुड़े दिल्ली के बड़े नेता की चुनावी रणनीति बताया जा रहा था। भाजपा कार्यकर्ताओं का मानना है कि भाजपा के नेता चुनाव के दौरान दबाव में थे। कोटा में भाजपा के बागी प्रहलाद गुंजल को कांग्रेस से टिकट मिल गया था और मुकाबला टक्कर का हो गया था। इस कारण कांग्रेस के बड़े नेता धारीवाल को फायदा देकर लोकसभा चुनाव में उनसे लाभ उठाने की चर्चाएं चली थीं।

एकल पट्‌टा मामले में पूर्व मंत्री धारीवाल सहित तीन अधिकारियों को क्लीन चिट दे दी गई थी।
एकल पट्‌टा मामले में पूर्व मंत्री धारीवाल सहित तीन अधिकारियों को क्लीन चिट दे दी गई थी।

आदेश नं. 4 : प्रधानमंत्री के दौरे से ठीक पहले मंत्री पुत्र से मांगना पड़ा इस्तीफा

पहले आदेश : राजस्थान के विधि मंत्री जोगाराम पटेल के बेटे मनीष पटेल को इसी साल मार्च में हाईकोर्ट का अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) बनाए जाने से राजस्थान सरकार विवादों में आ गई थी। विपक्ष लगातार निशाना साध रहा था। मनीष को पद देने से भाजपा के कुछ नेता और विधायक भी अंदरखाने नाराज थे। विधानसभा में ये मामला गूंज रहा था और बड़ा राजनीतिक रूप लेता जा रहा था। विरोध कर रहे कांग्रेस विधायक मुकेश भाकर को विधानसभा से 6 माह के लिए निलंबित भी कर दिया गया था।

फिर यू-टर्न, क्योंकि:

अगस्त में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जोधपुर का कार्यक्रम था। कार्यक्रम से ठीक पहले बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनते देख सरकार ने मनीष पटेल से इस्तीफा मांग लिया। उन्होंने इस्तीफा दे भी दिया। मनीष ने इसकी जानकारी सोशल मीडिया पर भी डाल दी। इस घटनाक्रम से राजनीति तो शांत हो गई, लेकिन इस्तीफा मंजूर नहीं किया गया। मनीष आज भी एएजी के पद पर काम कर रहे हैं। मनीष पटेल पूर्व में बीजेपी की वसुंधरा राजे सरकार में साल 2013 से 2018 तक अतिरिक्त महाधिवक्ता रह चुके हैं।

प्रधानमंत्री के दौरे से पहले विधि मंत्री जोगाराम पटेल के बेटे मनीष पटेल से सरकार ने इस्तीफा मांग लिया था।
प्रधानमंत्री के दौरे से पहले विधि मंत्री जोगाराम पटेल के बेटे मनीष पटेल से सरकार ने इस्तीफा मांग लिया था।

आदेश नं. 5 : किरोड़ी-दिलावर आपस में भिड़े और फिर यू-टर्न

पहले आदेश : राजस्थान में तबादलों को लेकर कैबिनेट मंत्री किरोड़ीलाल मीणा और मदन दिलावर आमने-सामने हो गए थे। दो मंत्रियों के विभागों में टकराव की स्थिति पैदा हो गई थी। कृषि विभाग ने इंजीनियरों के तबादले कर उन्हें जिला परिषद और पंचायत समिति में लगाया। पंचायती राज विभाग ने आपत्ति जताकर यह आदेश मानने से इनकार कर दिया। साथ ही,पंचायती राज विभाग ने सभी जिला परिषद को लेटर लिखकर कृषि विभाग से आए इंजीनियरों को जॉइन नहीं करवाने और उन्हें फिर से मूल विभाग में भेजने के आदेश दिए थे।

फिर यू-टर्न, क्योंकि:

विवाद की जड़ विभाग बंटवारे को ही माना गया। किरोड़ीलाल मीणा की मंजूरी के बाद दिए गए तबादलों को रोकने के आदेश से पंचायतीराज विभाग ने यू-टर्न ले लिया। हालांकि किरोड़ीलाल मीणा की मंजूरी के बाद तबादलों को रोकने के आदेश को बदल दिया गया। पहले कृषि विभाग से जिला परिषदों और पंचायत समितियों में इंजीनियरों के ट्रांसफर, पोस्टिंग को पंचायतीराज विभाग ने गलत बताया, लेकिन बाद में उन्हीं आदेशों को सही ठहराया है। सरकार का ये यू-टर्न भी काफी चर्चित रहा था।

पिछली कांग्रेस सरकार ने भी लिए थे कई यू-टर्न

राजस्थान में पिछली कांग्रेस सरकार ने भी 12 से ज्यादा यू-टर्न लिए। कई बार आदेश बदले गए। सबसे चर्चित मामला अक्टूबर 2021 का बाल विवाह रजिस्ट्रेशन विधेयक वापस लेने का रहा। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तब कहा था कि बिल वापस लेना प्रतिष्ठा का सवाल नहीं है। राज्यपाल से आग्रह है कि विधेयक सरकार को वापस भेज दें।

  • मानसून सत्र के दौरान सितंबर महीने में बाल विवाह के भी रजिस्ट्रेशन का प्रावधान गहलोत सरकार ने भारी विरोध के बीच पारित करवाया। सरकार की छवि खराब होते देख सीएम अशोक गहलोत ने इस बिल को वापस लेने की घोषणा की। बाद में इस बिल को राजभवन से वापस ले लिया गया।
  • जुलाई 2020 में सचिन पायलट खेमे की बगावत के बाद बर्खास्त किए गए मंत्रियों को 16 महीने बाद वापस मंत्री बनाना।
  • वसुंधरा सरकार का फैसला पलटते हुए नगरपालिका चेयरमैन, नगर परिषद सभापति और नगर निगमों के मेयर के चुनाव पार्षदों की जगह सीधे जनता से करवाने का फैसला किया। लेकिन अक्टूबर 2019 में गहलोत सरकार ने अपने ही फैसले को पलटते हुए वापस पार्षदों के जरिए ही निकाय प्रमुखों के चुनाव करवाने का प्रावधान कर दिया।
  • अक्टूबर 2019 में उपचुनाव के दौरान शहरी निकायों में गैर पार्षद के भी चेयरमैन व मेयर बनने का प्रावधान रखा गया। पार्टी में अंदरखाने विरोध होने के बाद सरकार को अपना फैसला तुरंत वापस लेना पड़ा।
  • 2021 की शुरुआत में ही प्रदेश भर में ग्राम पंचायतों को उनके अकाउंट की जगह नए पीडी अकाउंट खुलवाने का आदेश जारी किया। कांग्रेस समर्थित सरपंच ही इसका विरोध करने लगे। सरपंचों का विरोध देखते हुए सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा और बजट सीधे पंचायत को देने का फैसला लिया।
  • केंद्र सरकार के पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी कम करके सस्ता करने के फैसले के बाद गहलोत ने प्रदेश में वैट कम करने से साफ मना कर दिया। बाद में जोधपुर जिले के दौरे में पेट्रोल-डीजल पर वैट कम करने की घोषणा कर दी। वैट घटाकर पेट्रोल-डीजल पर 5 रुपए की कमी की गई।

आदेश वापस लेने से साख पर उठते हैं सवाल : एक्सपर्ट

राजनीतिक विश्लेषक नारायण बारेठ का कहना है कि राज्य सरकार की ओर से बार-बार अपने आदेश को वापस लेना या पलटना सीधे छवि से जुड़ा मामला है। साफ जाहिर होता है कि सरकार में कई पॉवर सेंटर्स का दखल है। सरकार की साख पर असर पड़ता है। लोग भी ऐसे मामलों को गंभीरता से लेते हैं। कोई भी आदेश निकालने से पहले पूरी जांच-परख कर लेनी चाहिए। सरकार को कोई भी आदेश निकालने से पहले पूरी सावधानी बरतनी चाहिए। आदेश निकालना एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो सीधे जनता को प्रभावित करती है।

 

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