अजमेर : अजमेर दरगाह में 812वें उर्स के मौके पर शुक्रवार को देश के विभिन्न हिस्सों से कलंदर और मलंग पहुंचें। यहां उन्होंने हैरतअंगेज करतब दिखाए। कलंदर ने जुबान में लोहे की नुकिली छड़ घुसा ली तो दूसरे ने तलवार से आंख की पुतलियां बाहर निकाल दी। उर्स में कलंदरों ने चाबुक से शरीर पर चोट पहुंचाने जैसे करतब भी दिखाए। इन करतबों ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया।
गंज स्थित गरीब नवाज के चिल्ले से शुक्रवार शाम कलंदर व मलंगों के जुलूस की शुरुआत हुई। सबसे आगे कलंदर और मलंगों की एक टोली धारदार हथियारों और नुकीली वस्तुओं से करतब पेश करते हुए चल रहीं थीं। इस मौके पर उन्हें देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा।
दरगाह से दिल्ली गेट तक निकाला जुलूस
दरगाह से जुलूस दिल्ली गेट पहुंचा, जहां इनका स्वागत किया गया। ख्वाजा गरीब नवाज की शान में बैंड वादकों ने धुन बजाई। ढोल और नगाड़े वादकों ने भी अपने हूनर का प्रदर्शन किया। गंज, दिल्ली गेट और दरगाह बाजार में भी कलंदर व मलंगों का पुष्प वर्षा कर स्वागत किया गया। यहां से जुलूस धान मंडी और दरगाह बाजार होते हुए रात को रोशनी के वक्त से पहले दरगाह पहुंचा। दरगाह के निजाम गेट पर छड़ियों को लगाया। दरगाह पहुंच कर जुलूस का विसर्जन हुआ।
13 दिन में दिल्ली से अजमेर पहुंचे
मलंग दिल्ली से अजमेर तक का करीब 455 किलोमीटर का सफर तय कर 13 दिनों में अजमेर पहुंचें। दिनभर चलने के बाद रात को किसी सुरक्षित स्थान पर रुक जाते। फिर रात को 3 बजे से वापस चलना शुरू किया जाता। शेख अब्दुल्ला बताते हैं कि बुखार, जुकाम और दर्द की दवाएं साथ लेकर चले। रास्ते में भी कई जगहों पर लोगों ने दवाएं और ट्यूब आदि आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई।
बांग्लादेश से दो जमात आईं
बांग्लादेश के कलंदर व मलंगों की दो जमात आई हैं। रुबेल हसन ने बताया कि वे बांग्लादेश में पंजेतन दरबार से जुड़े हैं। प्रत्येक दल में 22-22 लोग शामिल हैं। पहले वे सियालदह स्थित जलाल बाबा की दरगाह पहुंचे। फिर ट्रेन से दिल्ली आए और वहां से अजमेर आए हैं। हसीनुल्लाह ने बताया कि अलवर के सरिस्का वन क्षेत्र में जब वे घुसे तो कोहरा था। जंगल पार करने में करीब 4 घंटे लग गए।
800 साल पहले बाबा कुतुब ने शुरू की थी परंपरा
गरीब नवाज के खलीफा हजरत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी ने 800 साल पूर्व छड़ियों की परंपरा शुरू की थी। उनकी इस निशानी को आज तक यह कलंदर व मलंग निभा रहे हैं। बाबा कुतुब दिल्ली से छड़ियां लेकर चलते और रास्ते भर लोगों को गरीब नवाज के उर्स का पैगाम देते आते थे। उस जमाने में प्रचार- प्रसार के कोई अन्य साधन नहीं थे।
देश की प्रमुख दरगाहों के काफिले
दिल्ली स्थित हजरत निजामुद्दीन औलिया, हजरत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, बू अली कलंदर पानीपत, कलियर शरीफ के अलावा पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम की दरगाहों के कलंदर और मलंगों के काफिले शामिल हैं। इन दलों में 18 से 65 साल और इससे ज्यादा उम्र के हैं।