बीएलओ ने SIR का काम 17 दिन में पूरा किया:झुंझुनूं में टारगेट पूरा करने के लिए वॉट्सऐप पर ग्रुप बनाया, 12 से 15 घंटे काम किया
बीएलओ ने SIR का काम 17 दिन में पूरा किया:झुंझुनूं में टारगेट पूरा करने के लिए वॉट्सऐप पर ग्रुप बनाया, 12 से 15 घंटे काम किया
झुंझुनूं : झुंझुनूं जिले में इस बार मतदाता सूची के विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (एसआईआर) में बीएलओ ने 30 दिन का काम 17 दिन में पूरा कर दिया है। ऐसे करीब 12 से ज्यादा बीएलओ है, जिन्होंने सभी फॉर्म को ऑनलाइन कर 100 प्रतिशत टारगेट कर लिया है। इन अधिकारियों ने बताया कि उन्होंने अपने बूथ के युवा मतदाताओं का वॉट्सऐप ग्रुप बनाया। इसमें हर रोज एसआईआर से जुड़ी जानकारी शेयर की जा रही थी।
जिनके पास फोटो नहीं थे, उन्हें मोबाइल से फोटो लेकर उसी समय फॉर्म भर दिया गया। कई ग्रामीणों को एसआईआर 2002 की मतदाता सूची से अपना नाम ढूंढकर दिखाया गया। बुजुर्गों व महिलाओं के ई-पिक के लिए उनके माता-पिता की डिटेल रात को सर्च की गई। अलसुबह होने वाले ऑनलाइन अपलोड का काम भी इन बीएलओ ने बिना किसी देरी के पूरा किया।
चार बीएलओ की कहानी, जिन्होंने एक महीने का काम 17 दिन में पूरा किया…
1. अमित कड़वासरा, बीएलओ- श्यामपुरा-चारणवास
पातुसरी निवासी और शिक्षक अमित कड़वासरा ने तकनीक का सबसे बेहतरीन उपयोग किया। उन्होंने अपने बूथ के सभी मतदाताओं का वॉट्सऐप ग्रुप बनाया और पूरे एसआईआर अभियान की जानकारी उसी पर शेयर करते रहे। इनके पास पुराने दस्तावेज नहीं थे, उन्हें तुरंत समाधान भेजा। 2002 की मतदाता सूची भी ग्रुप में डाल दी, ताकि हर व्यक्ति अपने परिवार का नाम खुद खोज सके।
इनके पास फोटो भेजने का समय नहीं था, उनकी फोटो मोबाइल से लेकर फॉर्म तैयार कर दिया। उनकी इस सक्रियता ने वोटर्स की भागीदारी बढ़ाई और पूरे बूथ का काम निर्धारित समय से पहले ही पूरा हो गया।
2. सुनील कुमार चाहर, बीएलओ- समसपुर
कनिष्ठ सहायक सुनील चाहर जब गांव में पहुंचे तो लोगों का अधिकांश समय खेतों में बीत रहा था। फोटो और डॉक्यूमेंट शामिल करने में समस्या आ रही थी। उन्होंने रणनीति बदली- फोटो ना होने पर मौके पर ही मोबाइल से क्लिक कर दी।
ज्यादा समय न लगे, इसलिए 85% लोगों की उनके माता-पिता से मैपिंग पहले ही कर दी थी। इससे रात को ऑनलाइन विवरण भरना बेहद आसान हो गया।
3. बसंतलाल, बीएलओ- पातूसरी
बीबासर निवासी अध्यापक बसंतलाल ने एसआईआर शुरू होने से पहले ही तैयारी कर ली थी। उन्होंने लोगों से फोटो, आधार नंबर और मोबाइल नंबर पहले ही शामिल करना शुरू कर दिया था।
2002 की मतदाता सूची डाउनलोड कर ग्रुप में डाल दी, ताकि लोगों को स्वयं अपने पुराने नाम खोजने में आसानी हो। जो भी मतदाता अपने ससुराल या मायके की वोटर लिस्ट मांगता, उसे उसी दिन उपलब्ध करा दी। इससे न सिर्फ समय बचा, बल्कि मतदाताओं का भरोसा भी बढ़ा।
4. सुरेंद्र सिंह काजला, बीएलओ- चिड़ासन
लोयल निवासी शिक्षक सुरेंद्र सिंह ने मेहनत की एक अलग मिसाल पेश की। वे रोजाना 15 से 16 घंटे काम करते। शाम तक फॉर्म एकत्रित करते और रात को ई-पिक नंबर से माता-पिता की डिटेल ढूंढते। यह काम बेहद मेहनत वाला था, क्योंकि कई बार एक-एक व्यक्ति का विवरण ढूंढने में घंटों लग जाते थे। इसके बावजूद उन्होंने अपने बूथ के सभी फॉर्म समय से पहले ऑनलाइन कर दिए।
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