बेटी की शादी में गई,पड़ोसियों ने घर पर किया कब्जा:12 साल बाद मिला न्याय, हाईकोर्ट का आदेश- मकान खाली करो और हर्जाना भी भरो
बेटी की शादी में गई,पड़ोसियों ने घर पर किया कब्जा:12 साल बाद मिला न्याय, हाईकोर्ट का आदेश- मकान खाली करो और हर्जाना भी भरो
जोधपुर : सिरोही जिले के आबू रोड की एक महिला को अपनी ही जमीन वापस पाने के लिए 12 साल तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। मामला इतना हैरान करने वाला था कि जब महिला अपनी बेटी की शादी के लिए शहर से बाहर गई, तो पीछे से पड़ोसियों ने उसके मकान का ताला तोड़कर घर पर कब्जा कर लिया।
राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस कुलदीप माथुर ने इस मामले में अब सख्त फैसला सुनाते हुए कब्जाधारियों की अपील खारिज कर दी है। साथ ही उन्हें तुरंत मकान खाली करने और हर्जाना भरने का आदेश दिया है।
17 दिन में लौटी, तो घर पर दिखा पड़ोसियों का कब्जा
यह विवाद आबू रोड के किवरली गांव का है। हुलसी देवी (वादी) ने 2 मार्च 1989 को सरदार सिंह से 652.5 वर्ग फीट का एक प्लॉट और मकान खरीदा था। सरदार सिंह ने यह जमीन अपने भाई लक्ष्मणसिंह के साथ हुए बंटवारे के बाद अपने हिस्से से बेची थी।
सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन जुलाई 2011 में एक घटना ने हुलसी देवी की जिंदगी बदल दी। 2 जुलाई 2011 को वह अपनी बेटी की शादी के सिलसिले में आबू रोड से बाहर गई थीं। पीछे से सरदारसिंह की विधवा मीठा बाई और उनके बेटों (जसवंतसिंह और भरतसिंह) ने मौके का फायदा उठाया। उन्होंने हुलसी देवी के घर के ताले तोड़कर जबरन कब्जा कर लिया।
जब 19 जुलाई 2011 को हुलसी देवी वापस लौटीं, तो देखा कि उनके घर पर दूसरों का राज है। उन्होंने कब्जा छोड़ने की विनती की, लेकिन आरोपी नहीं माने। उल्टा, आरोपियों ने हुलसी देवी के पति के खिलाफ कोर्ट से एकतरफा स्टे भी ले लिया।
निचली अदालत का फैसला
हुलसी देवी ने हार नहीं मानी और 2012 में सिविल सूट दायर किया। उन्होंने मांग की कि कब्जा हटाया जाए और उन्हें हर्जाना मिले। आरोपियों ने कोर्ट में दलील दी कि सरदारसिंह और लक्ष्मणसिंह के बीच कभी बंटवारा हुआ ही नहीं था, इसलिए सरदारसिंह को जमीन बेचने का हक ही नहीं था। उन्होंने हुलसी देवी की रजिस्ट्री (Sale Deed) को भी फर्जी बताया।
अक्टूबर 2024 में आबू रोड की एडीजे कोर्ट ने हुलसी देवी के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने माना कि रजिस्ट्री असली है और कब्जा अवैध है।
कोर्ट की टिप्पणी: भाई ने खुद दी थी एनओसी
मीठा बाई के वारिसों (अपीलार्थी) ने निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। उनके वकील ने तर्क दिया कि संपत्ति पैतृक थी और बिना बंटवारे के बेची गई थी।
दूसरी ओर, हुलसी देवी के वकील ने कोर्ट को बताया कि रजिस्ट्री 30 साल पुरानी (1989 की) है और कानूनन 30 साल पुरानी रजिस्टर्ड डीड को सही माना जाता है। उन्होंने यह भी साबित किया कि बिजली का बिल हुलसी देवी के नाम पर आता था, जो उनके कब्जे का सबूत था।
जस्टिस कुलदीप माथुर ने पत्रावली देखने के बाद पाया कि सरदार सिंह के भाई लक्ष्मणसिंह ने अपनी गवाही में संपत्ति बेचने पर ‘अनापत्ति’ दी थी। कोर्ट ने कहा-
- “केवल पट्टा संयुक्त होने से यह साबित नहीं होता कि संपत्ति पैतृक है, खासकर जब विभाजन के सबूत मौजूद हों।’
- “प्रतिवादियों ने महिला की अनुपस्थिति का फायदा उठाकर मकान पर अवैध कब्जा किया और तोड़फोड़ की, जो साबित हो चुका है।’
- “निचली अदालत ने जब प्रतिवादियों का काउंटर-क्लेम खारिज किया, तो उन्होंने उसके खिलाफ अपील नहीं की। अब वे इस मुद्दे को दोबारा नहीं उठा सकते।’
- “रजिस्टर्ड सेल डीड की वैधता को चुनौती देने के लिए प्रतिवादियों ने 2012 तक (23 साल तक) कोई कदम नहीं उठाया। अब वे इसे फर्जी नहीं कह सकते।’
कोर्ट ने एडीजे कोर्ट, आबूरोड के 7 अक्टूबर 2024 के फैसले को सही ठहराते हुए मीठा बाई के वारिसों की अपील खारिज कर दी है। अब प्रतिवादियों को न केवल मकान खाली करना होगा, बल्कि अवैध कब्जे के दौरान हुए नुकसान और ‘मीन प्रॉफिट’ (संपत्ति के उपभोग का किराया) भी हुलसी देवी को देना होगा।
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