वैष्णव जन तो तेने कहिए… गांधी जयंती पर चूरू के बाल कलाकारों ने मूल गुजराती लिपि में रचा नया इतिहास
वैष्णव जन तो तेने कहिए… गांधी जयंती पर चूरू के बाल कलाकारों ने मूल गुजराती लिपि में रचा नया इतिहास
चूरू : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रिय भजन “वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीर पराई जाणे रे…” की पावन ध्वनि इस गांधी जयंती पर एक बार फिर शेखावाटी में गूंज उठी। 15वीं सदी के संत कवि नरसिंह मेहता द्वारा रचित इस अमर भजन को गांधीजी अपनी प्रार्थनाओं में गाया करते थे। इस वर्ष गांधीजी की 156वीं जयंती पर चूरू के शिक्षाविद् संगमानंद की प्रेरणा से बाल कलाकार पुनीत सोनी और अनिका सोनी ने इस भजन को मूल गुजराती लिपि में मुद्रित कर इतिहास रच दिया।
156 शिक्षाविदों और अधिकारियों को वितरित की गई प्रति
गांधी जयंती के अवसर पर दोनों बाल कलाकारों ने इस सुसज्जित भजन प्रति को 156 शिक्षाविदों, प्रशासनिक अधिकारियों और प्रबुद्धजनों को भेंट किया। यह आयोजन बाल सृजनशीलता और गांधीवादी मूल्यों के पुनर्स्मरण का सशक्त उदाहरण बना।
संगमानंद ने रखे गांधी दर्शन के विचार
इस अवसर पर प्रेरक शिक्षाविद संगमानंद ने कहा कि “वैष्णव जन तो” भजन मानवता, सहानुभूति और करुणा का प्रतीक है-और यही गांधीजी के जीवन का मूल दर्शन रहा।
कलेक्टर और एसपी को भेंट की गई साहित्यिक कृतियां
संगमानंद ने झुंझुनूं के जिला कलेक्टर अरुण गर्ग तथा पुलिस अधीक्षक बृजेश उपाध्याय को भी इस भजन की प्रति भेंट की।
साथ ही उन्होंने भारत के 101 वर्षीय वरिष्ठ कवि की ग़ज़ल संग्रह की प्रति भी प्रदान की, जिसमें यह पंक्तियाँ विशेष रूप से उद्धृत की गईं “बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे, खुले मेरे सवालों के पर धीरे-धीरे…”
संस्कृति, शिक्षा और संवेदना का संगम
यह आयोजन श्रद्धांजलि से आगे बढ़कर संवेदना, संस्कृति और शिक्षा का अद्भुत संगम बन गया।
संगमानंद ने कहा कि वे इस गांधीवादी पहल को शेखावाटी के जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प लेकर आगे बढ़ेंगे।