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सरकार ने रोकी कैंसर-पीड़ित की पेंशन, हाईकोर्ट से अंतरिम राहत:पीड़ित के तर्क- आरोप 2018 के, चार्जशीट 2020 में, पेंशन रोकने की सजा जुलाई’2025 में


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सरकार ने रोकी कैंसर-पीड़ित की पेंशन, हाईकोर्ट से अंतरिम राहत:पीड़ित के तर्क- आरोप 2018 के, चार्जशीट 2020 में, पेंशन रोकने की सजा जुलाई’2025 में

सरकार ने रोकी कैंसर-पीड़ित की पेंशन, हाईकोर्ट से अंतरिम राहत:पीड़ित के तर्क- आरोप 2018 के, चार्जशीट 2020 में, पेंशन रोकने की सजा जुलाई’2025 में

चूरू : राजस्थान हाईकोर्ट ने चूरू जिले के 62 साल के रिटायर्ड टीचर फूलाराम फगेड़िया की 100% पेंशन रोकने के राज्य सरकार के आदेश पर रोक लगा दी है। जस्टिस रेखा बोराणा की कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश जारी किया है। मामले की विशेष बात यह है कि कैंसर पीड़ित और मौत की कगार पर खड़े व्यक्ति की आय का एकमात्र स्रोत रोक दिया गया था, जिसे कोर्ट ने फिलहाल स्थगित कर दिया।

दरअसल, चूरू जिले के घांघू गांव निवासी फूलाराम फगेड़िया पुत्र मुकना राम पर जानबूझकर गैर हाजिर रहने के आरोप लगे थे, जो साल 2018 से संबंधित थे। इस मामले में उन्हें 2020 में चार्जशीट दी गई थी। बाद में कार्मिक विभाग ने 1 जुलाई को उनकी पूरी पेंशन रोक दी। इसी आदेश के खिलाफ फूलाराम ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

आपराधिक मामला लंबित, फिर भी सजा

फगेड़िया की ओर से एडवोकेट नरपतसिंह चारण ने राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उन्होंने कोर्ट में तर्क दिया कि यह सजा अवैध रूप से लगाई गई है, क्योंकि आपराधिक कार्रवाई भी लंबित है और याचिकाकर्ता को दोषी नहीं ठहराया गया है। इसलिए यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि उनके खिलाफ आरोप सिद्ध हो गए हैं।

उन्होंने कहा कि फगेड़िया पर आरोप 2018 से संबंधित थे, जबकि उन्हें चार्जशीट 2020 में दी गई थी। वहीं, रिटायरमेंट के बाद पेंशन रोकने की सजा दी गई है, वो भी तब, जब वह खुद कैंसर जैसी बीमारी से जूझ रहे हैं। यह देरी और समय की गंभीर अनियमितता को दर्शाता है।

कैंसर से जूझते रहे लेकिन नहीं मिली छुट्टी

वकील ने कोर्ट को बताया कि जानबूझकर अनुपस्थिति के आरोपों के संबंध में रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता कैंसर सहित गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे। उन्होंने विभिन्न समय पर मेडिकल लीव के लिए आवेदन भी दिए थे, लेकिन उन पर विचार नहीं किया गया। यह केस का सबसे संवेदनशील पहलू है कि गंभीर बीमारी से जूझ रहे कर्मचारी को छुट्टी नहीं दी गई और बाद में उसी आधार पर पेंशन रोक दी गई।

पेंशन अधिकार है, उपकार नहीं

एडवोकेट चारण ने जयपुर की समन्वय पीठ के एक महत्वपूर्ण फैसले का हवाला दिया जो महेश चंद्र सोनी बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य में 6 मार्च 2024 को दिया गया था। इस फैसले में कहा गया है कि 100% पेंशन रोकना कठोर सजा है, क्योंकि पेंशन कोई उपकार नहीं, बल्कि अधिकार है और कर्मचारी को इससे वंचित नहीं किया जा सकता।

उन्होंने कोर्ट में कहा कि रिटायर्ड कर्मचारी के पास आय का कोई अन्य स्रोत नहीं होता है। विशेष रूप से जब कर्मचारी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहा हो और उसके पास जीवन यापन का कोई अन्य साधन न हो, तो पेंशन पूरी तरह रोकना न्यायसंगत नहीं माना जा सकता।

कोर्ट ने दिया नोटिस जारी करने का आदेश

जस्टिस रेखा बोराणा ने सुनवाई के बाद राजस्थान सरकार के कार्मिक विभाग के सचिव, उप सचिव (ग्रुप-क-3 जांच) और उच्च शिक्षा विभाग के सचिव को नोटिस जारी करने का आदेश दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने स्थगन आवेदन पर भी नोटिस जारी किया है। अदालत ने नोटिस की वापसी की तारीख 10 नवंबर तय की है। इस बीच, 1 जुलाई 2025 के आदेश का असर और क्रियान्वयन स्थगित रहेगा।

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