‘पुलिसवाले ने कहा- मुसलमान कोरोना फैलाते हैं’:तबलीगी जमात केस में 5 साल बाद 70 लोग बरी, विक्टिम बोले- झूठा केस बनाया
'पुलिसवाले ने कहा- मुसलमान कोरोना फैलाते हैं':तबलीगी जमात केस में 5 साल बाद 70 लोग बरी, विक्टिम बोले- झूठा केस बनाया

‘हमें बोला गया कि तुम मुसलमानों ने कोरोना फैलाया है। गंदी गालियां देते हुए कहा कि इसके प्राइवेट पार्ट में डंडे डालो, ये मुसलमान ऐसा ही करते हैं। उन पुलिस वालों के अंदर हमारे लिए बहुत गलत भावना भरी थी। हमें इतना प्रताड़ित किया गया कि हम बयान नहीं कर सकते।’
दिल्ली की छोटी मस्जिद के इमाम मोहम्मद अनवर को बेकसूर साबित होने की खुशी है, लेकिन वो जानना चाहते हैं कि क्या बीते पांच साल उन्हें मुस्लिम होने की सजा मिली। 17 जुलाई को दिल्ली हाई कोर्ट ने पांच साल पुराने तबलीगी जमात केस में 70 लोगों के खिलाफ आरोप रद्द कर दिए। मोहम्मद अनवर उन में से एक हैं। इन पर आरोप था कि इन्होंने कोविड महामारी के वक्त विदेशी जमातों को मस्जिद में ठहराया और कोरोना फैलाया।
13 मार्च से 15 मार्च 2020 में तबलीगी जमात के प्रोग्राम में देश और विदेश से 2000 से ज्यादा लोग आए थे। इसी वक्त देश में कोविड ने दस्तक दी और केस बढ़ने लगे थे, जिसके लिए जमात के सदस्यों को जिम्मेदार ठहराया गया। जमात प्रमुख मौलाना साद और बाकी जमातियों को सोशल मीडिया और खबरों में ‘कोरोना जिहाद’ और ‘सुपर स्प्रेडर’ तक कहा गया।
अब 5 साल बाद 70 आरोपी बेकसूर साबित हो गए। दिल्ली हाई कोर्ट ने इनके खिलाफ सभी 16 केस की चार्जशीट रद्द कर दी है। हाई कोर्ट ने आदेश में कहा कि दिल्ली पुलिस ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर पाई, जिससे साबित हो कि तबलीगी जमात ने उस वक्त सरकार का आदेश नहीं माना और कोरोना फैलाया। मौलाना साद के केस में अब तक चार्जशीट दाखिल नहीं हुई है।
बेकसूर साबित हुए लोगों से बात करके पूरा मामला और 5 साल चली कानूनी लड़़ाई को समझा।
विक्टिम नंबर-1 मोहम्मद अनवर पुलिस ने कहा- मुसलमानों ने ही कोरोना फैलाया सबसे पहले हम दिल्ली के चांदनी महल इलाके में छोटी मस्जिद के इमाम मोहम्मद अनवर से मिले। मार्च 2020 में जब जमात के लोगों पर कोरोना फैलाने के आरोप लगे और केस दर्ज हुए तो मोहम्मद अनवर भी उनमें से एक थे। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के रहने वाले हैं। पिछले 25 सालों से इस मस्जिद में इमाम की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
अनवर बताते हैं, ‘20-22 मार्च को जब देश के प्रधानमंत्री ने कोविड महामारी को लेकर ऐलान किया और कहा कि जो जहां है वो वहीं रुक जाएं। तब हमारी मस्जिद में भी विदेशी जमात ठहरी थी। वो प्रशासन के आदेश के चलते वापस नहीं लौट सके। हम भी उनकी खिदमत में लगे रहे।‘
‘इन सबके दो-तीन दिन बीतने के बाद करीब दोपहर के 3 बजे पुलिस वाले मस्जिद पर आए। वो यहां ठहरी विदेशी जमात, सदर साहब और मुझे अपने साथ थाने ले गए।‘
वे बताते हैं, ‘एक पुलिस वाले ने तो हमारे साथ बदतमीजी की सीमा पार कर दी। वो मां का नाम लेकर हमें गंदी गालियां देने लगे। मेरा हाथ पकड़कर कहने लगा कि इसके प्राइवेट पार्ट में डंडे डालो, ये मुसलमान ऐसे ही काम करते हैं। उस पुलिस वाले के अंदर इतनी गलत भावना भरी हुई थी और उसने हमें इतना प्रताड़ित किया कि हम बयान नहीं कर सकते।‘
अनवर के मुताबिक, उस दिन दोपहर के 3 बजे से लेकर रात 9 बजे तक हमें इसी तरह टॉर्चर किया गया। जब इलाके के कुछ जिम्मेदार लोगों के पहुंचे, तब करीब 6 घंटे बाद हमें छोड़ा गया। थाने के लौटने के एक दो-दिन बाद नोटिस मिला कि मेरे ऊपर केस हो गया है।‘
‘इसके बाद हमारी कोर्ट-कचहरी की दौड़भाग शुरू हुई। हर सुनवाई में बार-बार कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते। कई बार जुमे के दिन भी कोर्ट की तारीख पड़ जाती तब नमाज कराना भी मुश्किल हो जाता था। केस की वजह से बहुत तनाव झेला। अब इससे रिहा हो सके हैं।’
विक्टिम नंबर-2 सफीकुद्दीन सच की जीत हुई, लेकिन ये जीत बहुत महंगी पड़ी
इसके बाद हम ‘छोटी मस्जिद’ के सदर से मिले। 59 साल के सफीकुद्दीन दिल्ली के चांदनी महल इलाके में रहते हैं। मरकज के प्रोग्राम में आए विदेशी मेहमानों के मस्जिद में रुकने से उनकी मुश्किलें भी बढ़ी थीं। सफीकुद्दीन कहते हैं, ‘जब मरकज मुख्यालय में भीड़ ज्यादा हो जाती है तो लोग आसपास की मस्जिदों में भी रुकते हैं। जब कोविड का ऐलान हुआ तब मलेशिया के 10-11 लोग छोटी मस्जिद में भी ठहरे थे।‘
‘पुलिस को उनके बारे में जानकारी मिली। दो-तीन बाद पुलिस ने पूछताछ के लिए हमें और विदेशी नागरिकों को चौकी बुलाया। जैसे ही हम चौकी पहुंचे, वहां इन्चार्ज ने हमारे साथ गाली-गलौज शुरू कर दी। हमें ऐसी-ऐसी गालियां दी गई, जिन्हें कैमरे पर बता नहीं सकता।‘
मुझे और बाकी लोगों को घंटों तक पुलिस ने जमीन पर बैठाकर रखा। पूछताछ के बाद पहले तो सभी को छोड़ दिया गया। दो दिन बाद पुलिस वाले फिर घर आए और मेरा मोबाइल लेकर चले गए। एक महीने तक नहीं लौटाया। जब मोबाइल लेने पुलिस चौकी बुलाया गया तब भी गाली-गलौज की।
उस दिन हम केस दर्ज किया गया। आरोप लगा कि हमने कोरोना महामारी फैलाई। केस होने के बाद आए दिन कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगने लगे। तब पुलिस ने हम पर दबाव बनाते हुए कहा कि हम दोष मान लें तो केस खत्म हो जाएगा, लेकिन हम नहीं मानें। अगर मान जाते तो ये होता कि पुलिस ने जो केस बनाया वही सही है, जबकि ऐसा नहीं था।’
इस केस के कारण हुई दिक्कतों पर सफीकुद्दीन कहते हैं, ‘ये सब कुछ मीडिया और पुलिस का किया हुआ था। मीडिया ने एक कम्युनिटी के खिलाफ काम किया। हमने कभी कोर्ट-कचहरी का चक्कर नहीं लगाया था। इसलिए मैं मानसिक रूप से काफी परेशान रहा। हर तारीख पर सुबह से शाम कोर्ट-कचहरी में ही रहना पड़ता था।’
सबसे पहले मोहम्मद साद पर हुआ था केस
इस पूरे मामले में सबसे पहला केस 31 मार्च 2020 को दर्ज किया गया था। इसमें तबलीगी जमात के अमीर यानी प्रमुख मौलाना मोहम्मद साद और मरकज समिति के 6 लोगों का नाम दर्ज थे। इन पर कोविड-19 महामारी फैलाने का आरोप लगा था। कहा गया कि मरकज प्रबंधन ने सरकार के कोविड-19 से जुड़े आदेशों का पालन नहीं किया।
लिहाजा इस पूरे विवाद में सबसे चर्चित चेहरा तबलीगी जमात के प्रमुख मौलाना साद रहे। हम उनसे मिलने के लिए हम निजामुद्दीन मरकज में उनसे मिलने भी पहुंचे। हालांकि उनसे हमारी मुलाकात नहीं हो पाई। मरकज में मिले लोगों ने बताया कि मौलाना साद जमात के कामों में व्यस्त हैं और किसी से मुलाकात नहीं करते हैं।
मरकज के एक सदस्य ने ऑफ द रिकॉर्ड हमें ये भी बताया, ‘वो (साद) ना किसी मसले पर मीडिया को बयान देंगे और ना आपसे मुलाकात करेंगे। वे केस पर भी कुछ नहीं बोलेंगे। उनके पास ये सब बातें करने का वक्त नहीं है। वे अल्लाह रसूल के अलावा कुछ नहीं बोलते हैं। अभी वो अमेरिका और कनाडा से जमात के प्रोग्राम में शामिल होकर आए हैं।’
मोहम्मद साद के वकील फुजैल अहमद अय्यूबी के मुताबिक, मौलाना साद वाले केस में अब तक चार्जशीट फाइल नहीं हुई है।
विक्टिम नंबर-3 मोती-उर-रहमान हम खुद थाने में बताने गए, फिर भी हमें मुजरिम बनाया
बिहार के अररिया जिले के रहने वाले मोती-उर-रहमान के खिलाफ भी 5 सालों तक केस चला। रहमान दिल्ली के दरियागंज की ‘चमन वाली मस्जिद’ में इमाम हैं। वे बताते हैं कि मस्जिद में जमात के सदस्यों का आना-जाना लगा रहता है।
2020 की घटना को याद करते हुए रहमान कहते हैं, ‘जमात के लोग भी देश की मंजूरी मिलने के बाद ही आते हैं। निजामुद्दीन मरकज में पहुंचने के बाद उन्हें अलग-अलग मस्जिदों में भेज दिया जाता है। तब हमारे यहां भी इंडोनेशिया और मलेशिया से आए कुछ लोग ठहरे हुए थे।‘
जब लॉकडाउन लगा तो उसके एक या दो दिन बाद हम खुद थाने में बताने गए थे कि हमारे यहां मस्जिद में लोग ठहरे हैं, लेकिन पुलिस वालों ने हमें अलग नजर से देखा। वो हमारे साथ बदतमीजी करने लगे कि जैसे कि हमने किसी मुजरिम को छिपा रखा हो।
‘मैं नियम-कानून का पालन कर रहा था फिर भी मेरे और मस्जिद के बाकी लोगों के खिलाफ केस दर्ज हो गया। इन सब में घरवाले बहुत परेशान हो गए। माता-पिता ने दबाव बनाया कि मस्जिद छोड़कर घर आ जाओ। छुट्टी लेकर मैं घर भी गया लेकिन एक हफ्ता रहने के बाद ही दिल्ली पुलिस का फोन आ गया कि आपको थाने आकर साइन करना होगा।‘
‘मैंने उन्हें बताया कि गांव आया हूं। तब पुलिस वाले कहने लगे कि बिना बताए कैसे चले गए। जबकि मैं घर जाने से पहले एसडीएम और थाने दोनों जगह जानकारी देने गया था, लेकिन मुझे वहां घुसने भी नहीं दिया गया। पुलिस के कहने पर हमें गांव से एक हफ्ते में ही वापस दिल्ली आना पड़ा।‘
रहमान अपने खिलाफ हुए केस के लिए मीडिया को भी जिम्मेदार मानते हैं।
70 लोगों के नाम इस केस में कैसे आए?
31 मार्च 2020 को दर्ज हुए केस में दिल्ली पुलिस ने मई 2020 में पहली चार्जशीट फाइल की। इसमें 955 विदेशी नागरिकों के नाम भी थे। उन पर भी कोविड फैलाने का आरोप लगा। ये सभी वही विदेशी नागरिक थे, जो निजामुद्दीन मरकज में ठहरे थे। जुलाई 2020 में 908 विदेशी नागरिकों ने प्ली बारगेनिंग (अपराध स्वीकार कर लेना) कर ली। इसके लिए उन्हें 5 से 10 हजार रुपए तक जुर्माना भरना पड़ा। वहीं बाकियों के केस खारिज हो गए।
तबलीगी जमात की तरफ से केस लड़ रहीं वकील अशिमा मांडला कहती हैं, इनमें से 193 विदेशियों और 70 भारतीयों के खिलाफ 22 मार्च से 30 मार्च 2020 के बीच कुछ और केस भी दर्ज हुए थे। इन पर अलग-अलग मस्जिद में रुकने और रोकने का आरोप लगा था। इसके खिलाफ हम दिल्ली हाई कोर्ट गए। हमने ये 29 FIR रद्द करने की याचिका लगाई थी।’
‘विदेशी नागरिकों के खिलाफ केस खारिज हो गए। 29 में से 16 केस 70 भारतीयों के खिलाफ दर्ज थे। सभी पर आरोप लगे कि इन्होंने विदेशी नागरिकों को मस्जिदों में रखा और इसके कारण महामारी फैली।’
इनमें से तीन FIR ऐसी थी, जिन्होंने जमात में शामिल विदेशी महिलाओं को अपने घर में जगह दी। क्योंकि जमात के नियम के मुताबिक औरतें मस्जिद या मरकज में नहीं रह सकती हैं।
2021 में इन आरोपों के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई। आशिमा मांडला कहती हैं, ‘हमने कोर्ट में दलील दी थी कि पहली नजर में इनके खिलाफ कोई केस नहीं बनता है। क्योंकि इनके खिलाफ IPC की धारा 188 (सरकारी आदेश की अवहेलना) लगाई गई थी।‘
‘दिल्ली सरकार ने 24 मार्च 2020 को आदेश जारी किया था कि आप कोई धार्मिक सभा नहीं कर सकते। जबकि पुलिस की FIR ही कहती है कि मरकज में लोग 20 मार्च से थे। कोई भी आदेश जारी होने के बाद वहां नहीं पहुंचा। हमारी दलील यही थी कि उस वक्त जब सबकुछ बंद हो गया था, बिना पास के बाहर निकलने की परमिशन नहीं थी, तो ये विदेशी नागरिक कहां जाते।‘
अशिमा कहती हैं कि मानवीय आधार पर मस्जिदों में उन्हें रखा गया था, वहां कोई धार्मिक सभा नहीं हो रही थी। पुलिस की चार्जशीट में भी लिखा था कि ये विदेशी नागरिक वहां सिर्फ रह रहे थे।‘
चार्जशीट में किसी को कोविड होने का जिक्र ही नहीं
इन 70 लोगों के खिलाफ IPC की धारा-269 (लापरवाही बरतने जिससे किसी जानलेवा बीमारी के संक्रमण फैलने की संभावना हो), धारा-270 (जानबूझकर बीमारी को फैलाना, जिससे जान जा सकती है) भी लगाई थी। इस पर आशिमा कहती हैं, ‘इन 16 में से एक भी चार्जशीट ऐसी नहीं है, जिसमें कोई मेडिकल रिपोर्ट हो या कोई एक लाइन लिखी हो कि इनमें से कोई एक व्यक्ति कोविड संक्रमित था। जब कोई बीमारी ही नहीं थी, तो आप उसे फैलाएंगे कैसे? हाई कोर्ट ने इस पर भी साफ कहा कि ये कोविड फैलाने का मामला नहीं बनता है। सरकार को सबूत लाना चाहिए था कि अगर किसी व्यक्ति को संक्रमण हुआ था। दिल्ली पुलिस चार्जशीट को डिफेंड नहीं कर पाई।‘
इस मामले में हमने दिल्ली पुलिस के जन संपर्क अधिकारी (PRO) से जवाब मांगने की कोशिश की लेकिन हमें उनका जवाब नहीं मिल सका। हमने दिल्ली पुलिस आयुक्त और PRO को ईमेल के जरिए केस से जुड़े कुछ सवाल भेजे हैं। जवाब मिलने पर हम इस रिपोर्ट को अपडेट करेंगे।