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शहर व ग्रामीण अंचल में गोबर को इकट्ठा कर हाथों से बड़कुले तैयार करते हैं ‌ होलिका दहन के लिए


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शहर व ग्रामीण अंचल में गोबर को इकट्ठा कर हाथों से बड़कुले तैयार करते हैं ‌ होलिका दहन के लिए

शहर व ग्रामीण अंचल में गोबर को इकट्ठा कर हाथों से बड़कुले तैयार करते हैं ‌ होलिका दहन के लिए

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : मोहम्मद अली पठान

चूरू : होली पर्व केवल रंगों और उमंग का त्योहार नहीं है. बल्कि यह परंपराओं,आस्था और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है। राजस्थान के चूरू जिले में होली का उत्सव कुछ अलग और अनोखे अंदाज में मनाया जाता है। चूरू के निकटवर्ती ग्राम रामसरा अंचल में महिलाएं और बुजुर्ग कई दिनों पहले से ही गोबर की गुलरियां बनाने में जुट जाते हैं। गोबर को इकट्ठा कर उसे हाथों से छोटे-छोटे ढाल तलवार के आकार में ढालकर सुखाया जाता है ताकिपूरी तरह से जलने योग्य हो जाए। कुछ स्थानों पर इन गुलरियों को खास आकृतियों में भी बनाया जाता है. जिससे यह देखने में आकर्षक लगती हैं. गोबर की गुलरियों को जलाने की परंपरा सदियों पुरानी है। इसे धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। होलिका दहन पर गोबर की गुलरिया जलाई जाती है।

गाय के गोबर को हिंदू धर्म में शुद्ध और पवित्र माना गया है. प्राचीन मान्यताओं के अनुसार होलिका दहन में गाय के गोबर की गुलरियों को जलाने से घर-परिवार में नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है तथा समृद्धि आती है।  यह परंपरा पर्यावरण से जुड़ी श्रद्धा को भी दर्शाती है. गोबर जैविक होता है. पर्यावरण को किसी भी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचाता।

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