झुंझुनूं : झुंझुनूं विधानसभा सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है। यहां अब तक हुए 17 चुनावों में से 13 बार कांग्रेस को जीत मिली है। भाजपा यहां से सिर्फ दो चुनाव जीत पाई है। इनमें एक बार आम चुनाव में तो दूसरी बार उपचुनाव में सफलता मिली। इनमें एक बार तो भाजपा 1585 वोटों के अंतर से जीती, जबकि उपचुनाव में 12407 वोटों से जीती।
तब उपचुनाव में कांग्रेस के दो प्रत्याशी मैदान में होने के कारण वोट बंट गए थे। तब कांग्रेस से सुमित्रासिंह व तिवाड़ी कांग्रेस से बृजेंद्र ओला मैदान में थे। इन दोनों ने क्रमशः 20434 व 30645 वोट लिए थे, जबकि भाजपा के डॉ. मूलसिंह शेखावत 43052 वोट लेकर विजयी रहे। इसके अलावा एक बार जनता दल को और एक बार निर्दलीय को भी जीत की सफलता मिली है। यह जानकारी पिछले 17 विधानसभा चुनावों का विश्लेषण करने पर सामने आई।
इस सीट के परिणामों को देखने पर एक रोचक बात यह भी सामने आई कि तीन चुनावों को छोड़ दें तो यहां पर हमेशा (13 चुनाव में) 60 फीसदी से अधिक पोलिंग हुई है। इनमें भी आठ चुनाव में तो 65 फीसदी से अधिक वोटिंग हुई है। 1957, 1977 व 1980 के चुनाव में मतदान प्रतिशत 60 से कम रहा। इसी तरह पिछले तीन चुनावों 2013 में 72.10%, 2018 में 71.90% व 2023 में 71.14% मतदान हुआ। यानी पिछले तीन चुनावों में 70 फीसदी से अधिक वोटिंग हुई। इसके अलावा 1962 में 65.53%, 1967 में 65.89%, 1990 में 67.30%, 1993 में 65.10% व 1998 में 65.70% वोटिंग हुई। इनमें 65 से 70% के मध्य वोटिंग हुई। 1957 में 58.30%, 1977 में 58.80% व 1980 में 59.50% वोटिंग हुई।
एनालिसिस : 1993 के बाद से अपने ही अपनों को हराते आ रहे हैं
झुंझुनूं सीट पर रोचक तथ्य यह भी है कि यहां अपने ही अपनों को हराते रहे हैं। इसकी शुरुआत 1993 के चुनाव में हुई। तब से यहां लगातार त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा है। बागी के वोट काट लेने के कारण पार्टी प्रत्याशी की हार होती रही है। 1993 में भाजपा ने सांवरमल वर्मा को टिकट दिया था। तब यहां से टिकट मांग रहे ओमप्रकाश आबूसरिया चुनाव मैदान में कूद गए और 17350 मत लेकर पार्टी प्रत्याशी की हार में भूमिका निभाई। इसके बाद 2013 में भाजपा ने राजीवसिंह शेखावत को प्रत्याशी बनाया।
इस चुनाव में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष रहीं सुमित्रासिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़कर 32584 मत लिए थे। शेखावत को 42517 मत मिले, जबकि विजयी बृजेंद्र ओला ने 60929 मत हासिल किए। यानी भाजपा के दोनों प्रत्याशी एक होकर लड़ते तो भाजपा की जीत तय थी। इसके बाद 2018 व 2023 के चुनाव में भी ऐसा ही हुआ। 2018 में भाजपा ने राजेंद्र भांबू को टिकट दिया। इस चुनाव में टिकट के दावेदार रहे बबलू चौधरी बागी हो गए। 2023 में भाजपा ने बबलू चौधरी को टिकट दिया तब टिकट मांग रहे राजेंद्र भांबू बागी हो गए। इस चुनाव में बबलू व भांबू को एक लाख से अधिक मत मिले, जबकि विजयी रहे बृजेंद्र ओला को 86798 मत ही मिले। इसके अलावा 1998 के चुनाव में भी त्रिकोणीय मुकाबला रहा। तब भाजपा ने गुल मोहम्मद को प्रत्याशी बनाया। गुल मोहम्मद ने कांग्रेस के परम्परागत अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंध मार दी। इस कारण इस चुनाव में निर्दलीय सुमित्रासिंह विजयी रही। 2008 के चुनाव में बसपा के बुधराम सैनी ने माली वोटों में सेंध लगाकर भाजपा प्रत्याशी डॉ. मूलसिंह शेखावत की हार में भूमिका निभाई। इस चुनाव में कांग्रेस के बृजेंद्र ओला पोल मतों का महज 34.10 फीसदी मत लेकर विजयी हो गए। इसी तरह 1996 के चुनाव में भी त्रिकोणीय मुकाबला रहा। इसमें तिवाड़ी कांग्रेस से बृजेंद्र ओला व कांग्रेस से सुमित्रासिंह ने चुनाव लड़ा। दोनों ने 51079 वोट लिए थे, जबकि विजयी भाजपा प्रत्याशी डॉ. मूलसिंह को 43052 मत मिले थे।
इस बार क्या: भाजपा-कांग्रेस व निर्दलीय में टक्कर
झुंझुनूं सीट पर हो रहे दूसरे उपचुनाव में इस बार त्रिकोणीय मुकाबले की तस्वीर बन रही है। यहां से भाजपा ने राजेंद्र भांबू को मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने ओला परिवार पर विश्वास जताते हुए सांसद बृजेंद्र ओला के पुत्र अमित ओला को टिकट दिया है। पूर्व मंत्री राजेंद्रसिंह गुढ़ा यहां से निर्दलीय ताल ठोंक रहे हैं। भाजपा इस बार बागियों को मनाने में कामयाब रही। ऐसे में भाजपा का मजबूत पक्ष यह है कि उनके वोट बंटेंगे गे नहीं। जबकि कांग्रेस के लिए आजाद समाज पार्टी से आमीन मणियार, निर्दलीय राजेंद्र गुढ़ा, निर्दलीय अलतीफ, अमित महला व अमित कुमार चुनौती बने हुए हैं।
पहली बार उपचुनाव में खुला था भाजपा की जीत का खाता : झुंझुनूं सीट पर भाजपा की जीत का खाता पहली बार 1996 के उपचुनाव में खुला था। तब भाजपा ने यहां से डॉ. मूलसिंह शेखावत को मैदान में उतारा था। उस समय राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस दो गुटों में बंटी हुई थी। तब तिवाड़ी कांग्रेस (AIIC) से बृजेंद्र ओला व कांग्रेस (INC) से सुमित्रासिंह मैदान में थी।
दोनों में वोट बंट जाने के कारण पहली बार भाजपा की जीत हुई थी। भाजपा के डॉ. शेखावत को 43052 मत मिले थे, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी रहे ओला को 30645 व सुमित्रासिंह को 20434 मत मिले थे। इसके बाद दूसरी बार 2003 के आमचुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुमित्रासिंह 1585 मतों के अंतर से विजयी रहीं
1996 के उपचुनाव में आम चुनाव से 1.20% कम हुई वोटिंग
झुंझुनूं सीट पर पहली बार उपचुनाव 1996 में हुए। तब विधायक शीशराम ओला के इस्तीफा देने के कारण उपचुनाव हुए थे। वे विधायक रहते हुए पहली बार सांसद चुने गए थे। तब आम चुनाव की तुलना में उपचुनाव में 1.20 फीसदी कम वोटिंग हुई थी। 1993 के आमचुनाव में 65.10% वोटिंग हुई थी। तीन साल बाद हुए उपचुनाव में मतदान प्रतिशत 63.90 ही रहा।
1990 के बाद किसी प्रत्याशी को नहीं मिले पोल मतों के आधे मत : झुंझुनूं सीट पर 1990 के चुनाव के बाद किसी भी विजयी प्रत्याशी को पोल मतों के आधे मत नहीं मिले। इसकी बड़ी वजह त्रिकोणीय मुकाबला रहा। यानी इस सीट पर जब भी तीसरा उम्मीदवार मजबूत रहा, तब विजयी प्रत्याशी को मिले मत 45% से कम रहे। 1990 में विजयी रहे जनता दल के माहिर आजाद को 49.60%, 1993 में कांग्रेस के शीशराम ओला को 46.30%, 1996 के उपचुनाव में भाजपा के डॉ. मूलसिंह शेखावत को 39.43%, 1998 में निर्दलीय सुमित्रासिंह को 43.10%, 2003 में भाजपा की सुमित्रासिंह को 47.50%, 2008 में कांग्रेस के बृजेंद्र ओला को 34.10% मत मिले। इसके बाद लगातार बृजेंद्र ओला जीत रहे हैं। 2013 में ओला को 42.70%, 2018 में 45.50% व 2023 में 44.50 फीसदी मत मिले।