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मशीन में आने से हाथ कटा लेकिन हौसला नहीं हारा:सरकारी टीचर बनकर नेशनल-इंटरनेशनल खिलाड़ी किए तैयार, खेल में 30 गोल्ड जीते


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मशीन में आने से हाथ कटा लेकिन हौसला नहीं हारा:सरकारी टीचर बनकर नेशनल-इंटरनेशनल खिलाड़ी किए तैयार, खेल में 30 गोल्ड जीते

मशीन में आने से हाथ कटा लेकिन हौसला नहीं हारा:सरकारी टीचर बनकर नेशनल-इंटरनेशनल खिलाड़ी किए तैयार, खेल में 30 गोल्ड जीते

‘मैं दिव्यांग था। मुझे मोटिवेशन मिला और इस मुकाम तक पहुंच गया। दिव्यांग और आर्थिक रूप से कमजोर खिलाड़ियों को मोटिवेशन मिले, तो वह भी क्या कुछ नहीं कर सकते …’ ये कहना है, सीकर के रहने वाले पीटीआई टीचर महेश नेहरा का।इनका महज 15 साल की उम्र में हाथ कट गया था। इसके बाद हिम्मत नहीं हारी और खेल में करियर बनाया।

नेशनल पैरालिंपिक सहित कई गेम्स में हिस्सा लेकर गोल्ड, सिल्वर मेडल जीते। स्पोर्ट कोर्ट से ही सरकारी नौकरी भी लगी। आज इनके तैयार किए करीब 1000 से ज्यादा खिलाड़ी अलग-अलग गेम्स खेल रहे हैं। जिसमें इंटरनेशनल खिलाड़ी भी है। टीचर्स- डे पर हमारे मीडिया कर्मी ने पीटीआई से बात उनके संघर्ष, खेल और उनके तैयार खिलाड़ियों के बारे में बात की…

अलग-अलग चैंपियनशिप में 30 गोल्ड जीते
पीटीआई महेश नेहरा सीकर में काछवा की सरकारी स्कूल में पोस्टेड है। ये दौड़ के साथ ही वॉलीबाल सहित अन्य गेम्स भी खेलें है। 2016 में महाराणा प्रताप पुरस्कार मिला। पीटीआई ने बताया- उनका जन्म 27 जुलाई 1986 को सीकर में हुआ था। पिता किशनलाल BSF (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) में सैनिक थे और मां छोटी देवी गृहिणी है। तीन-भाई बहनों में वे सबसे छोटे हैं। अब तक अलग-अलग चैंपियनशिप में खेलते हुए करीब 30 गोल्ड, 50 सिल्वर और 20 ब्रॉन्ज मेडल हासिल किए हैं। करीब एक हजार ऐसे खिलाड़ियों को तैयार किया जो डिस्ट्रिक्ट,स्टेट, नेशनल और इंटरनेशनल खेल चुके हैं।

फैक्ट्री में काम करते कटा दांया हाथ

पीटीआई बताते है- दसवीं तक की पढ़ाई सीकर के बजाज रोड स्थित सरकारी चितलांगिया स्कूल में की। इसके बाद पुणे में अपने मामा के लड़के धर्मपाल के पास चले गए। पुणे में ममेरा भाई प्लास्टिक बाल्टी बनाने की फैक्ट्री में नौकरी करता था। साल 2001 उन्होंने भी फैक्ट्री में नौकरी करना शुरू दिया। दिसंबर 2001 काम करते हुए उनका दांया हाथ मशीन में आ गया। हाथ का 80% तक का हिस्सा कट गया। उनका पुणे में ही इलाज करवाया गया। हाथ को डॉक्टर्स की टीम ने जोड़ा लेकिन ब्लड सर्कुलेशन शुरू नहीं हुआ। हाथ काला पड़ने लगा। इलाज के करीब दो सप्ताह बाद उनका काटना पड़ा।

6 महीने तक बाएं हाथ से लिखने की प्रैक्टिस की

पीटीआई टीचर ने बताया- जनवरी 2002 में वे वापस सीकर आ गए। हाथ कट चुका था। ऐसे में उनका नौकरी कर पाना बेहद मुश्किल था। तब उन्होंने दोबारा पढ़ाई करने की ठानी। एसके स्कूल में 11वीं क्लास में आर्ट्स स्ट्रीम में एडमिशन लिया। करीब 6 महीने तक बाएं हाथ से लिखने की प्रैक्टिस की। 11th क्लास तो पास कर ली लेकिन 12वीं क्लास में फेल हो गए। दोबारा 12वीं परीक्षा की तैयारी की और 2004 में 12वीं क्लास पास की। इसके बाद सीकर के एसके कॉलेज से BA की पढ़ाई पूरी की।

ताने मिलते- हाथ कटा, जीवन में क्या करोगे

टीचर ने बताया- स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई के दौरान साथियों ने उनके कटे हाथ को लेकर कई बार उपहास किया। ताने देकर कहते थे- तुम्हारा एक हाथ तो कट चुका है। अब तुम जीवन में कर ही क्या लोगे लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। BA के बाद साल 2008 में लाइब्रेरियन का कोर्स करने के लिए अपनी बहन सुमित्रा और जीजा जयराम के पास उदयपुर चला गया।

इस तरह शुरू हुआ खेल का सफर

टीचर ने बताया- उनके जीजा हर दिन फुटबॉल खेलने जाते थे। उन्हें भी अपने साथ ले जाने लगे। मैदान में एथलीट शंकर मेनारिया भी आते थे। एक दिन उन्होंने मुझसे कहा- तुम हमारे साथ दौड़ क्यों नहीं लगाते। तुम्हारी तो हाइट भी अच्छी है, एक बार दौड़ लगाकर तो देखो।

तब उनके साथ 5 किलोमीटर की दौड़ लगाई। दोनों ने एक साथ और एक समय में दौड़ पूरी की। इसके बाद दोनों रेगुलर प्रैक्टिस करने लगे। उस दौरान कई इंटर कॉलेज चैंपियनशिप और अन्य मैराथन दौड़ में भी हिस्सा लिया। इस तरह आगे खेल कंपीटिशन में हिस्सा लेने लगे।

स्पोर्ट्स कोटे से मिली सरकारी नौकरी
टीचर ने बताया- 2016 में ही आउट ऑफ टर्म स्पोर्ट्स से राजस्थान सरकार में पीटीआई के पद पर नौकरी लग गई। पहली पोस्टिंग सीकर के बावड़ी की सरकारी स्कूल में मिली। तब खुद को कहा था- ‘मैं दिव्यांग था। मुझे मोटिवेशन मिला और इस मुकाम तक पहुंच गया। इसी तरह दिव्यांग और आर्थिक रूप से कमजोर खिलाड़ियों को मोटिवेशन मिले, तो वह भी क्या कुछ नहीं कर सकते। ‘ स्कूल में भी स्टूडेंट्स को स्पोर्ट्स से जोड़े रखा।

नौकरी में रहते हुए भी खेलना रखा जारी
पीटीआई ने बताया- सरकारी नौकरी में रहते हुए खुद भी खेलना नहीं छोड़ा। नौकरी में रहते 2023 में हांगकांग में हुए फर्स्ट एशियन टेनपिन बॉलिंग चैंपियनशिप और 2024 में कंबोडिया में टेनपिन बॉलिंग चैंपियनशिप में हिस्सा लिया।

पीटीआई अपने तैयार किए खिलाड़ियों के साथ। ये खिलाड़ी स्टेट लेवल पर अलग-अलग चैंपियनशिप में हिस्सा ले चुके है।
पीटीआई अपने तैयार किए खिलाड़ियों के साथ। ये खिलाड़ी स्टेट लेवल पर अलग-अलग चैंपियनशिप में हिस्सा ले चुके है।

बच्चों को खेल में तराशना किया शुरू
सरकारी नौकरी में रहते हुए अपने स्तर पर ऐसे बच्चों की तलाश शुरू की, जो दिव्यांग है लेकिन खेल में रूचि है। बच्चों का चयन होने के बाद उन्हें सुबह-शाम प्रैक्टिस करवाना शुरू किया। बावड़ी में उनकी ओर से तैयार की गई खिलाड़ी लड़कियों में 5 नेशनल, 13- 14 बच्चे स्टेट लेवल पर अलग-अलग चैंपियनशिप में हिस्सा ले चुके हैं।

इंटरनेशनल खिलाड़ी में कूदन निवासी दिव्यांग सुमन ढाका, साबरमल बावरिया और मानसिक विमंदित अमरचंद को भी नेहरा ने ही तैयार किया है। 2018 में काछवा में पोस्टिंग होने के बाद उनके ओर से तैयार किए गए स्कूल के दो लड़के स्टेट लेवल पर फुटबॉल, लड़कियों की टीम डिस्ट्रिक्ट लेवल पर फुटबॉल खेल चुकी है।

मानसिक विमंदित अमरचंद और रजनी के भी रहे कोच

पीटीआई कहते है- उन्होंने मानसिक विमंदित अमरचंद और रजनी को भी कोच किया। वे बाकी लोगों की बजाय मानसिक रूप से काफी कमजोर है लेकिन आज नेशनल और इंटरनेशनल चैंपियनशिप में हिस्सा लेते हैं। ऐसे बच्चों को तैयार करने के लिए पहले उनका व्यवहार देखा जाता है। फिर उसके आधार पर उन्हें गाइड करके ट्रेनिंग दी जाती है।

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