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मौजूदा हालात में मुसलमानों के लिए एक ज़रुरी पैग़ाम


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आर्टिकलराज्य

मौजूदा हालात में मुसलमानों के लिए एक ज़रुरी पैग़ाम

यह आर्टिकल अमीर जमाअत इस्लामी हिन्द जनाब सैयद सआदत उल्लाह हुसैनी की एक हालिया तक़रीर से लिया गया है।

बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम

मोहतरम बुज़ुर्गों और दोस्तों:
जैसे जैसे इलेक्शन करीब आ रहे है, हिंदुस्तानी मुसलमानों की मुश्किलात बढ़ती जा रही है। फ़िरक़ापरस्त क़ुवतों बेशर्मी के सरे हुदूद पार कर दिए हैं। मुल्क में नफ़रत और फ़िरक़ापरस्ती को आम करने के लिए अदालती निज़ाम को, ब्यूरोक्रेसी को, मीडिया को हर जम्हूरी इदारे को आलूदा और करप्ट किया जा रहा है। सियासी और नज़रियाती मफ़ादाद की ख़ातिर पूरे मुल्क की व मुल्क के सरे इदारों की बलि चढ़ाई जा रही है। अवाम की एक बड़ी तादाद को अंदाज़ा नहीं है कि यह कैसी ख़तरनाक आग है जो इस मुल्क में भड़काई जा रही है। यह आग सिर्फ मुसलमानों को ही नहीं नुक्सान पहुचाएंगी, मुल्क के हर तबके को भसम करके रख देगी। इसके नुक्सान जल्द लोगों के सामने आ जाएंगे और हर एक को अहसास होगा की कैसे राक्षस को इस मुल्क में परवान चढ़ाया गया था।

इन हालात पर मुसलमानों में ग़म, गुस्सा और बेचैनी की शदीद कैफ़ियत पाई जाती है और ये बिलकुल फ़ितरी है यह ईमान का तकाज़ा है। मुसलमान बेशक अपने लिए भी परेशां है लेकिन साथ ही इस मुल्क के लिए भी परेशान है। इस मुल्क के मुस्तक़बिल के लिए परेशान है। उन हालात के लिए परेशान है जो मुल्क के हर तबके की ज़िन्दगी को मुश्किल बना रहे हैं। उस समाज के लिए परेशान हैं जो हम अपनी आने वाली नस्लों के लिए छोड़कर जा रहे हैं। लेकिन मोहतरम दोस्तों हम परेशां और फिकरमंद ज़रूर हैं लेकिन मायूस और ख़ौफ़ज़दा हरगिज़ नहीं है। याद रखिए कि रोने धोने से कभी हालात नहीं बदलते। एक दूसरे को कोसने और ब्लैम गेम से कभी सुधार नहीं आता। लाहे अमल और लाहे अमल और लीडरशिप और लीडरशिप की रट लगाने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। गम और ग़ुस्से और बेबसी को सोशल मीडिया पर उंडेल देने से हालात पर कोई असर नहीं पड़ता। हालात बदलते हैं अज़म और हौसले से, हिकमत और बसीरत से, जहदे मुसलसल से, अपने अपने दायरे में लगकर और जुटकर ठोस और मुसलसल काम करने से। तो दोस्तों, सबसे पहले ये कॉन्फिडेंस और ऐतमाद पैदा कीजिए कि दुनिया की कोई ताक़त हमें सफ़े हस्ती से मिटा नहीं सकती। मुसीबतें और मुश्किलात हमारी तारीख़ का हिस्सा रहीं है। उन मुश्किलात को याद कीजिये जो अल्लाह के महबूब रसूल सल्ललाहु अलैहि वसल्लम आपके पूरी हयाते तय्यबा में मुसलसल पेश आती रही। खुद इस मुल्क में यह उम्मत बड़े बड़े तूफानों से गुज़रती रही है। 1857 की पहली जंगे आज़ादी के मौके पर, फिर मुल्क की आज़ादी के मौके पर उसके बाद मुख़्तलिफ़ मरहलों में। लेकिन तारीख़ गवाह है कि किसी बड़े से बड़े तूफ़ान ने हमको ख़त्म नहीं किया है। “आसां नहीं मिटाना नामो निशाँ हमारा” मुश्किलात और मुसीबतें न सिर्फ़ यह के हमें मायूस नहीं कर सकतीं बल्कि क़ुरआन के मुताबिक़ ईमान की अलामत तो यह है कि मुसीबतों और मुश्किलों को देखकर हमारा ईमान और सेल्फ़ कॉन्फिडेंस और बढ़ जाए।

क़ुरआन मजीद में है: कि सच्चे मोमिनों का हाल उस वक़्त ये था कि जब उन्होंने हमला करने वाली ताक़तों को देखा तो पुकार उठे कि यह वही चीज़ है जिसका अल्लाह और उसके रसूल ने हमसे वादा किया था, अल्लाह और उसके रसूल की बात बिलकुल सच्ची थी। और इस वाक़िये ने उनके ईमान और उनकी सुपुर्दगी को और ज़्यादा बढ़ा दिया।

याद रखिए कि दुनिया में कभी किसी कमज़ोर और बेहैसियत गिरोह को सताने और परेशान करने में कोई अपनी क़ुव्वत और ताक़त ज़ाया नहीं करता। आपको इसलिए परेशान किया जाता है क्योंकि आप ज़ुल्म और नाइंसाफ़ी की राह में एक बड़ी रुकावट हैं। आपका दीन और आपके उसूल वो अज़ीम ताक़त हैं जो बुराई की अलम्बरदार ताक़तों को चेन लेने नहीं देती। आपके होते हुए ज़ालिमाना निज़ाम इस मुल्क में अपनी मुक़म्मल वहशत के साथ खड़ा नहीं हो सकता। तो अपनी इस ताक़त को महसूस कीजिये। इंशा अल्लाह यह हालात हमारी ताक़त और बढ़ाएंगे। हम और मज़बूत और ताक़तवर बनकर निकलेंगे। एक बात और समझ लीजिये कि हमारे मसाइल का कोई फ़ौरी और शार्ट टर्म हल नहीं है। यह मुश्किलात का और चैलेंजों का एक दौर है और मुक़ाबला करते हुए हमें इस दौर से गुज़ारना है। इस दौर की मुश्किलात बर्दाश्त करनी हैं और लॉन्ग टर्म सलूशन पर यानी मसाइल के असल और देरपा हल पर अपनी तवज्जोहात को फोकस करना है।

हल क्या है? हल के 2 पहलू हैं: 

पहला पहलू एक्सटर्नल यानि बैरूनी है, हमें इस मुल्क को यहाँ के समाज को, उसके ज़हन को, बदलने की संजीदा और मुसलसल कोशिश करनी है। लोगों को उस जज़्बाती व हिजानी कैफ़ियत से निकालना है जो शरपसंद सियासतदानों ने पैदा कर दी है, और उनके ज़हन को हक़ीक़ी मसाइल पर सोचने के लायक बनाना है। यक़ीनन यह आसान काम नहीं है फ़ौरी रिजल्ट का एक्सपेक्टेशन भी बहुत कम है लेकिन अज़ीज़ दोस्तों यही सलूशन है। और इस ही रस्ते पर लम्बे वक़्त तक सब्र के साथ हमें मेहनत करनी है।

दूसरा पहलू इंटरनल है: हमें अपनी कमज़ोरियों पर काबू पाना है। हमारे अंदर तालीम कम है, हमारी मआशी हालत खराब है, विज़न की, विज़नरी लीडरशिप की, नस्बुलेन की, इत्तेहाद की कमी है। जज़्बातियत है, कोई अफ़सोसनाक वाक़िया पेश आता है तो हम ग़ैज़ व गज़ब की और झुंझलाहट की पूरी क़ुव्वत के साथ उठते हैं। एक दूसरे पर लान-तान का तूफ़ान बरपा कर देते हैं और चंद दिनों पर फ़िर अपनी दुनिया में मगन हो जाते हैं। ठोस काम पर हमारी तवज्जेह कम और एक दूसरे की टांग खींचने में दिलचस्पी ज़्यादा है। यह ऐसी कमज़ोरियाँ हैं जो हमारे पैरों की बेड़ियाँ हैं। हमें इन कमज़ोरियों को दूर करना है। यह हालात हमें इस बात का मौका फ़राहम करते हैं कि हम अपना संजीदा एहतेसाब करें और इन कमज़ोरियों को दूर करने एक ताक़तवर-बाअसर उम्मत बनें। जब तक ऐसा नहीं होगा हम वुल्नरबले बने रहेंगे। तो दोस्तों यह तय कीजिये कि हम सब अपने अपने मक़ाम पर, अपने इम्मिजिएट ग्राउंड पर तवज्जोह मर्कूज़ करेंगे। अपने अपने दायरे में, अपने सर्किल ऑफ़ इन्फ्लुएंस में ठोस तब्दीली लाने की कोशिश, और उसमें अपना रोल अदा करने की कोशिश यह हमारा असल हदफ़ होगा। अपने अपने मक़ाम पर हम सब मिलकर चंद छोटी-छोटी बातों पर मुसलसल काम और मुसलसल जद्दोजहद करेंगे। तो इंशा अल्लाह इसी के नतीजे में हालात में तब्दीली आएगी।

मैं छः बातें तजवीज़ कर रहा हूँ:

1. पहली यह कि हम अपने मक़ाम पर बिरादराने वतन के साथ, ग़ैर मुस्लिम भाइयों के साथ ताल्लुकात बनाएँगे। उनकी ग़लतफ़हमियों का इज़ाला करेंगे। नफरतों को ख़त्म करेंगे। इस्लाम का सही पैग़ाम पहुँचाएंगे।

2. अपने मक़ाम पर मुसलमानों की हालत को बेहतर बनाने की कोशिश करेंगे। उन्हें तालीम में आगे बढ़ाएंगे। मईशत में आगे बढ़ाएंगे। उनकी कमज़ोरी दूर करेंगे। सबसे बढ़कर उनकी अख़लाक़ी और दीनी हालत में बेहतरी लाएंगे।

3. हम कोशिश करेंगे कि मुसलमान ख़ैर उम्मत का किरदार अदा करने के लिए आगे आएं। हमारे मक़ाम पर तमाम कमज़ोरों के लिए, तमाम मज़लूमों के लिए वो रहमत बनें। बाकी लोग उन्हें एसेट के रूप में देखें।

4. हमारे मक़ाम पर कोई ज़ुल्म होता है, किसी के साथ भी नाइंसाफी होती है तो हम मज़लूमों के साथ खड़े होंगे। मुल्क के संजीदा और इंसाफ पसंद लोगों के साथ मिलकर मज़लूमों की हर मुमकिन मदद करेंगे और ज़ुल्म की भरपूर लेकिन पुरअमन मज़ाहमत करेंगे।

5. सोशल मीडिया की ताक़त को तामीरी मक़सद के लिए इस्तेमाल करेंगे। हर छोटे बड़े मौक़े पर मातम-नोहा, मायूसी का, फ़्रस्ट्रेशन का इज़हार और मायूसी को आम करना, एक दूसरे पर लान-तान करना यह सब सोशल मीडिया का मनफ़ी(नेगेटिव) इस्तेमाल है। ऐसा करने से हम हालात को और खराब करने के मुजरिम बनते हैं। पॉजिटिव इस्तेमाल यह है कि हम हक़ीक़ी मसाइल पर मुल्क के लोगों को बेदार करें। इस्लाम का मुसबत तआरुफ़ कराएं, उम्मत के अंदर अज़म हौसला और ख़ुदएत्मादी की फ़िज़ा आम करें। उम्मत को रास्ता दिखाएं।

6. आने वाले इन्तेख़ाबात(चुनाव) इस मुल्क के मुस्तक़बिल को बेहतर बनाने के लिए बहुत अहम् हैं। हमारी ज़िम्मेदारी है कि संजीदा और इंसाफ पसंद लोगों के साथ मिलकर कोशिश करें कि मुल्क की आवाम इन चुनाव में भरपूर तरीक़े से हिस्सा ले और सही सिम्त में अपनी ज़िम्मेदारी अदा करे।

तो आइए इन हालात को हम एक नए दौर के आगाज़ का ज़रिया बनाएं। ग़म व ग़ुस्से की शदीद कैफ़ियत को हम एक ऐसी तामीरी तवानाई यानि कंस्ट्रक्टिव एनर्जी में बदलें जो हमारे हालात को बदलने में मददग़ार हो। मौजूदा हालात में उम्मत की बेहतरी के लिए जो भी जिस सतह पर भी जितनी भी ख़िदमत कोई कर रहा है वो हमारा असासा(असेट) है। आइए उनके हाथ मज़बूत करें, उनके अंदर कुछ कमज़ोरी है, रास्ते में कुछ मुश्किलात हैं तो हमारा ग़म व ग़ुस्सा उनकी मुश्किलात को बढ़ाने का ज़रिया न बने बल्कि हमारा मुख़लिस सपोर्ट और हमारा हमदर्दाना तआवुन उनकी क़ुव्वत को और उनके ऐतमाद को बढ़ाने का सबब बने, इसकी कोशिश करें। हमारी दुश्मन ताक़तें एक तरफ़ यह चाहतीं हैं कि हम रोज़ रोज़ के वाक़ियात में उलझ कर रह जाएं और मुल्क के हालात को बदलने और अपनी तामीर व तरक्की के किसी ठोस प्रोग्राम पर तवज्जोह ही न दे सकें। और दूसरी तरफ़ वो यह चाहतें हैं कि हम आपस में उलझ कर रह जाएं। हमारे ग़ैज़ व गज़ब की तवानाई एक दूसरे पर सर्फ़ हो कर हर एक को कमज़ोर कर दे। बदक़िस्मती से हर बड़े हादसे के बाद हमारे रवैय्ये और हमारा रिएक्शन इन्ही मकरूह मक़ासिद को तक़वियत देता है। तो आइए अब हम ऐसा न होने दें और मिलजुलकर जहदे मुसलसल के एक नए दौर का आग़ाज़ करें। अल्लाह तआला हमारा हामी व नासिर हो। आमीन

पूरी तक़रीर सुनने के लिए इस लिंक पर जाएं – https://youtu.be/UPzvuFWhsCY?si=9Osnd2mQd8GJ8PXC

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