लोकसभा में अतारांकित प्रश्न के जरिए उठाया मुद्दा, आयात बढ़ने–निर्यात घटने पर जताई चिंता
व्यापार घाटे में बढ़ोतरी और चीन से असंतुलन सरकार की नीतिगत विफलता : बृजेंद्र सिंह ओला
नई दिल्ली/झुंझुनूं : माननीय सांसद बृजेंद्र सिंह ओला ने देश में बढ़ते व्यापार घाटे और चीन के साथ लगातार गहराते व्यापार असंतुलन का मुद्दा आज लोकसभा में अतारांकित प्रश्न के माध्यम से प्रमुखता से उठाया। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की ओर से दिए गए लिखित उत्तर का हवाला देते हुए सांसद ओला ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में भारत का व्यापार घाटा लगातार बढ़ा है, जबकि चीन के साथ निर्यात लगभग आधा और आयात लगभग दोगुना हो गया है। यह स्थिति केंद्र सरकार की आर्थिक और व्यापार नीतियों की गंभीर विफलता को दर्शाती है।
सांसद ओला ने कहा कि सरकार एक ओर आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया के बड़े-बड़े दावे करती है, वहीं दूसरी ओर आयात में भारी वृद्धि और निर्यात में निरंतर गिरावट देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार ने स्वयं स्वीकार किया है कि सोना, चांदी, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा, मशीनरी और औद्योगिक इनपुट के आयात में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है।
उन्होंने बताया कि चीन के साथ भारत का व्यापार संतुलन लगातार भारत के खिलाफ बना हुआ है। वर्ष 2024-25 में चीन से आयात बढ़कर 113.45 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जबकि भारत का निर्यात मात्र 14.25 बिलियन डॉलर रहा। यह अंतर न केवल आर्थिक दृष्टि से चिंताजनक है, बल्कि देश की आर्थिक संप्रभुता के लिए भी खतरा है।
MSME और रोजगार पर सीधा असर
सांसद ओला ने सवाल उठाया कि जब सरकार घरेलू विनिर्माण को मजबूत करने की बात करती है, तो फिर आयात पर निर्भरता क्यों बढ़ रही है? उन्होंने कहा कि इस स्थिति का छोटे उद्योगों, MSME सेक्टर और रोजगार पर सीधा नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
सरकार जनता को भ्रमित कर रही
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार व्यापार घाटे को सामान्य बताकर जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है, जबकि वास्तविकता यह है कि बढ़ता आयात, कमजोर निर्यात रणनीति और चीन पर बढ़ती निर्भरता देश की अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती बन चुकी है।
नीति में बदलाव की मांग
सांसद बृजेंद्र सिंह ओला ने मांग की कि चीन के साथ बढ़ते व्यापार असंतुलन को देखते हुए घरेलू उद्योगों और MSME सेक्टर को वास्तविक संरक्षण दिया जाए तथा आयात-आधारित विकास मॉडल की समीक्षा कर निर्यात-आधारित और रोजगार-सृजन वाली नीति बनाई जाए। उन्होंने कहा कि जब तक सरकार जमीनी सच्चाई को स्वीकार कर ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाएगी, तब तक देश में व्यापार घाटा और आर्थिक असंतुलन दोनों बढ़ते रहेंगे।
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