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खेतड़ीनगर की केसीसी टाउनशिप : कभी रौनक का गढ़, आज वीरानी का आलम


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खेतड़ीनगर की केसीसी टाउनशिप : कभी रौनक का गढ़, आज वीरानी का आलम

खेतड़ीनगर की केसीसी टाउनशिप : कभी रौनक का गढ़, आज वीरानी का आलम

खेतड़ीनगर : कभी हजारों परिवारों की रौनक और बाजारों की चहल-पहल से गुलजार रहने वाला खेतड़ीनगर का केसीसी टाउनशिप आज खंडहरों में बदल चुका है। हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड के खेतड़ी कॉपर प्रोजेक्ट के स्वर्णिम दौर में यह इलाका किसी स्मार्ट सिटी से कम नहीं था। हजारों अधिकारी, कर्मचारी और कामगारों के परिवार यहां के क्वार्टरों में बसते थे। लेकिन खदान और प्लांटों के बंद होने के साथ ही रोजगार और व्यापार की धड़कन थम गई और अब यहां वीरान पड़े क्वार्टर केवल जर्जर हालात की गवाही दे रहे हैं।

1967 में शुरू हुआ निर्माण, 1971 तक बसी टाउनशिप

राजा खेत सिंह राठौड़ के नाम पर बसाए गए खेतड़ी क्षेत्र में 1967 में एचसीएल ने टाउनशिप निर्माण शुरू किया। 1971 तक केसीसी टाउनशिप और कोलिहान नगर में करीब 5224 क्वार्टर बनाए गए। छह प्रकार के इन क्वार्टरों में करीब दस हजार लोग रहते थे। उस समय यहां का जीवन किसी बड़े औद्योगिक शहर से कम नहीं था।

कभी मिनी दुबई कहलाता था बाजार

1985 से 1990 का दौर खेतड़ीनगर का स्वर्णकाल माना जाता है। सात बड़े बाजार – न्यू मार्केट, सुभाष मार्केट, सेंट्रल मार्केट, सब्जी मार्केट, जगदंबा मार्केट और आजाद मार्केट – दिन-रात रौनक से भरे रहते थे। व्यापार इतना फलता-फूलता था कि दुकानदारों को दोपहर में आराम का समय तय करना पड़ता था। कर्मचारी वेतन के साथ ओवरटाइम भी पाते थे और खरीददारी में किसी बड़े शहर के समान ही खर्च करते थे। इस कारण यहां के बाजारों को ‘‘मिनी दुबई’’ तक कहा जाने लगा।

खंडहर बन गए क्वार्टर

आज हालात बिल्कुल उलट हैं। लगभग 3200 क्वार्टर लीज पर दिए गए हैं, जबकि 1800 क्वार्टर खाली पड़े हैं। इनमें से अधिकांश खंडहर हो चुके हैं। केसीसी प्रशासन ने करीब 600 क्वार्टर को गिरने की कगार पर मानते हुए नकारा घोषित कर रखा है। टाउनशिप की जर्जर हालत के चलते अपराधिक गतिविधियों में भी इजाफा हुआ है।

कारोबार और रोजगार पर पड़ा असर

1995 के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजनाओं से कर्मचारियों की संया घटने लगी। 2008 से कई प्लांट बंद होने लगे तो व्यापार पर भी गहरा असर पड़ा। जहां कभी दस हजार कर्मचारी थे, वहां अब ठेकेदार और नियमित कर्मियों को मिलाकर करीब तीन हजार ही बचे हैं। परिणामस्वरूप दुकानदार पलायन कर गए, होटल और लॉज बंद हो गए और बाजार सूने हो गए।

सीआईएसएफ ट्रेनिंग सेंटर भी रहा, फिर बंद हुआ

1971 में एचसीएल प्लांट की सुरक्षा का जिमा सीआईएसएफ को दिया गया था। उस समय यहां 425 जवान व अधिकारी तैनात रहते थे। 1987-88 में यहां 300 जवानों को ट्रेनिंग देने के लिए एडहॉक ट्रेनिंग सेंटर भी खोला गया। लेकिन 1999 तक यहां से सीआईएसएफ पूरी तरह हटा दी गई।

आज की तस्वीर

कभी चहल-पहल से भरा खेतड़ीनगर आज वीरान नजर आता है। जर्जर क्वार्टर, सूने बाजार और पलायन कर चुके लोग, यह सब उस दौर की गवाही देते हैं जब खेतड़ी कॉपर प्रोजेक्ट क्षेत्र की जान हुआ करता था।

इनका कहना है

केसीसी में कर्मचारियों के लिए क्वार्टर हैं लेकिन इनमें से करीब 1000 क्वार्टरो में सैनिक व अध्यापक रहते हैं। वह क्वार्टर भी मरमत की मांग कर रहे हैं केसीसी को क्वार्टरो की मरमत करवानी चाहिए। नहीं तो कोई भी हादसा हो सकता है। – रविंद्र फौजी, अध्यक्ष ठेका मजदूर यूनियन

केसीसी द्वारा कर्मचारियों के लिए आवश्यक क्वार्टरों का निर्माण करवाया था लेकिन काफी समय से मरमत नहीं करवाई गई है जिसकी सत जरूरत है क्वार्टरों की जल्द से जल्द मरमत करवाई जाए। – हरिराम गुर्जर, समाजसेवी

केसीसी में करीब 5000 क्वार्टर बने हुए हैं जिनमें से जर्जर भवन होने की वजह से एक तिहाई क्वार्टरो में लोग रहते हैं इनकी मरमत करवा के सभी क्वार्टर लीज पर देने चाहिए। जिससे रखरखाव हो सके और केसीसी को आमदनी भी हो सके। – जुगल किशोर सैनी, समाजसेवी

केसीसी के अधिकारियों को क्वार्टर में रहने वालों ने कई बार मरमत करवाने के लिए ज्ञापन दे चुके हैं। क्वार्टर में रहने वाले बरसात के मौसम में भय के साए में रह रहे हैं अगर जल्द ही क्वार्टरो की मरमत नहीं करवाई गई तो धीरे-धीरे सभी क्वार्टर खाली हो जाएंगे। – मनोज श्योराण, स्थानीय ग्रामीण

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