दो भाइयों के प्रेम की कहानी… सत्ता दादा महाराज मेला:ऊंटों में हुआ डांस कॉम्पिटिशन, सीकर के छगन ने जीती 11 हजार की कुश्ती
दो भाइयों के प्रेम की कहानी... सत्ता दादा महाराज मेला:ऊंटों में हुआ डांस कॉम्पिटिशन, सीकर के छगन ने जीती 11 हजार की कुश्ती

चिड़ावा : भाई के वियोग में चिता में कूदकर बलिदान देने वाले सत्ता दादा महाराज की आस्था और श्रद्धा का प्रतीक मेला ओजटू गांव में धूमधाम से आयोजित हुआ। सैकड़ों साल पुरानी इस परंपरा की शुरुआत 1566 में हुई थी और 1992 से हर साल भाद्रपद कृष्ण पक्ष दशमी को यह मेला भरता है। मान्यता है कि सत्ता दादा की समाधि पर झाड़ू लगाने से चर्म रोग दूर हो जाते हैं। यही आस्था और विश्वास इस मेले को खास बनाते हैं।
ओजटू गांव में देर रात चले सत्ता दादा महाराज के मेले में कुश्ती दंगल का आयोजन किया गया। मेले में आसपास के कई गांव और ढाणियों से श्रद्धालु पहुंचे। श्रद्धालुओं ने सत्ता दादा को धोक लगाकर मिन्नतें मांगी।
सीकर के छगन ने जीती 11 हजार की कुश्ती
दंगल में 100 रुपए से लेकर 11,000 रुपए तक की कुश्तियां हुईं। सबसे बड़ी 11,000 रुपए की कुश्ती सीकर के पहलवान छगन मीणा ने जीती। इस कुश्ती का आयोजन शिव ईंट उद्योग, ओजटू/श्योपुरा के सुनील कुमार भावरिया ने किया। कार्यक्रम में चिड़ावा शहर के वरिष्ठ पार्षद राजेंद्र पाल सिंह कोच मौजूद रहे। इनके अलावा पूर्व सरपंच शीशराम डांगी, राकेश पुनिया, गिरीश चौधरी, शेर सिंह डांगी और शंकर सरपंच धतरवाल शाहिद भी उपस्थित थे। बड़ी संख्या में श्रद्धालु और कुश्ती प्रेमियों की मौजूदगी में यह आयोजन सफल रहा।
घोड़ी व ऊंट नृत्य ने मोहा मन
मेले के दौरान देर शाम तक घोड़ी और ऊंट नृत्य प्रतियोगिताएं चलीं। घोड़ी नृत्य में सुभाष सुलताना, नेकीराम छावसरी, जयसिंह, मोनू सुलताना और सुनील श्योपुरा की घोड़ियों ने शानदार प्रदर्शन किया। वहीं ऊंट नृत्य में रीशू डारा किशोरपुरा, मोनू सुलताना, मनीष मैनपुरा, सुभाष सुलताना, नेकीराम छावसरी, रोहिताश मास्टर कुल्हरी की ढाणी, भैंरूसिंह डारा किशोरपुरा और जयसिंह डूलानिया के ऊंट विजेता रहे।
आसपास के ग्रामीण जुटे मेले में
मेले में चिड़ावा के अलावा ओजटू, निजामपुरा, धत्तरवालों का बास, नारी, सारी, बृजलालपुरा, जोधा का बास, अरड़ावता, श्योपुरा, नूनियां गोठड़ा, कंवरपुरा, बख्तावरपुरा, अजीतपुरा, गोठड़ी, लांबा गोठड़ा, इस्माइलपुर, नरहड़, अडूका, डांगर, शेखपुरा, भोमपुरा सहित अन्य गांवों के लोग बड़ी संख्या में दर्शनों के लिए पहुंचे।
PHOTOS में देखें मेले की झलकियां …




1992 से मेले की शुरुआत
सत्ता दादा के प्रति लोगों की आस्था निरंतर बढ़ती गई। इसी श्रद्धा भाव के चलते वर्ष 1992 में पहली बार मंदिर परिसर में मेले का आयोजन किया गया। तब से लेकर अब तक प्रत्येक वर्ष यहां भव्य मेला आयोजित होता आ रहा है।
दादा सता की कहानी…
इतिहास के जानकार बताते हैं कि दादा सता का वास्तविक नाम रूड़भक्ष था। उनके बड़े भाई साबराम की 22 वर्ष की आयु में चिड़िया नामक महिला से शादी हुई थी। बड़े भाई के प्रति गहरे स्नेह और सम्मान के कारण रूड़भक्ष ने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प ले लिया था।
कहा जाता है कि एक दिन दोनों भाई खेत में काम कर रहे थे, तभी अचानक साबराम की तबीयत बिगड़ गई। रूड़भक्ष ने उनका इलाज करवाने का पूरा प्रयास किया, लेकिन स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ। इस बीच वे देवली की पहाड़ियों में किसी वैद्य से परामर्श लेने गए हुए थे। वहीं उन्हें किसी अनहोनी का आभास हुआ और वे तत्काल अपने गांव ओजटू लौटने के लिए रवाना हो गए।
जब तक रूड़भक्ष गांव पहुंचे, तब तक उनके बड़े भाई साबराम का अंतिम संस्कार किया जा चुका था। भाई के वियोग को सहन न कर पाने पर रूड़भक्ष ने भी अपने भाई की चिता में कूदकर प्राण त्याग दिए। तभी से उन्हें “सता दादा” के नाम से जाना जाने लगा और लोगों की आस्था उनके प्रति और अधिक गहरी हो गई।
सता दादा रूड़भक्ष मंदिर की मान्यता
1566 में जब बंजारों का एक समूह गांव में रुका, तो उनके पशुओं पर दादा सता की कृपा मानी गई और यहीं से दादा सता की मान्यता शुरू हो गई। 1567 में एक बंजारे ने ग्रामीणों की मदद से चिता की राख पर एक चबूतरा बना दिया, जिसे सता दादा रूड़भक्ष की समाधि कहा जाने लगा। वर्ष 1793 में इस समाधि को मंड का रूप दिया गया। बाद में 1991 में ग्रामीणों द्वारा चंदा एकत्रित कर मंड को मंदिर में परिवर्तित किया गया। तभी से भाद्रपद कृष्ण पक्ष दशमी के दिन 1992 से यहां मेले का आयोजन होने लगा।
चर्म रोग मिटाने की मान्यता
गांव के पूर्व सरपंच शीशराम डांगी ने बताया- मंदिर में झाड़ू लगाने से चर्म रोग दूर हो जाते हैं। लोगों का मानना है कि यदि कोई व्यक्ति चर्म रोग से पीड़ित होकर यहां मन्नत मांगते हुए मंदिर में झाड़ू लगाता है, तो उसे रोग से मुक्ति मिलती है। इसका वैज्ञानिक कारण आज तक स्पष्ट नहीं हो पाया है, लेकिन श्रद्धालुओं के अनुभव बताते हैं कि झाड़ू लगाने से चर्म रोग में काफी राहत मिली है। ऐसे कई उदाहरण ग्रामीणों के बीच प्रचलित हैं।