स्पीकर को क्यों बोलना पड़ा-आप विधायक बनने लायक भी नहीं?:डोटासरा का जबाव- वो सर्टिफिकेट देने वाले कौन? मुझे जनता ने चौथी बार चुना है
स्पीकर को क्यों बोलना पड़ा-आप विधायक बनने लायक भी नहीं?:डोटासरा का जबाव- वो सर्टिफिकेट देने वाले कौन? मुझे जनता ने चौथी बार चुना है

जयपुर : राजस्थान की सियासत से भाषा की शालीनता गायब हो रही है। सड़क से सदन तक भाषाई हिंसा के कुछ फुटप्रिंट परेशान करने वाले हैं। पक्ष-विपक्ष दोनों ही शब्दों की सीमा रेखा तोड़ रहे हैं। सियासी गुस्से और आक्रामकता की दोनों की अपनी-अपनी दलीलें हैं लेकिन चिंताएं लगातार बढ़ती स्तरहीन भाषा को लेकर है। ताजा विवाद मंत्री अविनाश गहलोत द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दादी कहकर संबोधित करने का है।
विपक्ष मंत्री से माफी पर अड़ा है तो डाइस पर चढ़कर आसन को ललकारने वाले कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष भी सवालों के घेरे में हैं। सदन में पक्ष-प्रतिपक्ष के बढ़ते तनाव के बीच मीडिया कर्मी ने कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद डोटासरा से पूछे सीधे सवाल…जाना भाषा की तल्खी भाजपा के खिलाफ उनका लड़ने का हथियार है या कार्यकर्ताओं को जोश देने का तरीका।
फिर भी अगर मंत्री दादी वाले बयान पर माफी मांग लें तो मैं भी मांग लूंगा… ताकि गतिरोध टूटे, जनता के मुद्दों पर बात हो
इस राष्ट्र के पिता हैं, चाचा नेहरू हैं, चौ. देवी लाल को ताऊ कहते हैं, आप खुद फूफाजी के फटकारों के लिए फेमस हैं तो दादी शब्द से दिक्कत क्यों? दादी शब्द से दिक्कत नहीं है। प्रश्नकाल में बिना किसी संदर्भ मंत्री का ‘आपकी दादी इंदिरा गांधी’ कहना व्यंग्यात्मक और अपमानजनक था। जो इस दुनिया में नहीं हैं, जिन्होंने देश की अखंडता के लिए 36 गोलियां खाईं, उन भारत रत्न इंदिरा गांधी के बारे में इस प्रकार से बोलना गलत था। फिर आग्रह करने पर भी अध्यक्ष ने इसे रिकॉर्ड से नहीं हटाया। शब्द हटाने का आग्रह करने ही मैं और मेरे साथी अध्यक्ष की तरफ बढ़े थे।
विधानसभा अध्यक्ष को आखिर क्यों बोलना पड़ा कि आप विधायक बनने लायक भी नहीं हैं? देवनानी जी इस प्रकार का सर्टिफिकेट देने वाले कौन होते हैं? मुझे लक्ष्मणगढ़ की जनता ने लगातार चौथी बार चुना है। वसुंधरा सरकार में मुझे बेस्ट एमएलए चुना गया था। स्पीकर जैसे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को ऐसा सियासी बयान नहीं देना चाहिए। जो बातें सदन स्थगित होने के बाद की हैं, जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं है, उन पर अध्यक्ष का सदन में प्रतिक्रिया देने का क्या तुक है? फिर भी उनको भावुक देखकर मन को कष्ट पहुंचा है। मैं व्यक्तिगत तौर पर उनसे मिलकर खेद प्रकट करूंगा।
तय हुआ कि आपको माफी मांगनी है, फिर आप पीछे क्यों हट गए? माफी की बात ही नहीं हुई। अध्यक्ष के चैंबर में मैंने साफ कहा था कि मैंने गलती नहीं की तो माफी क्यों मांगूं? जोगाराम जी ने अनुरोध किया कि खेद जता देना। अध्यक्ष का ईगो शांत हो जाएगा। सदन में मैंने तीन बार खेद भी जता दिया, लेकिन मंत्री ने खेद नहीं जताया। शब्द भी कार्यवाही से नहीं हटाए। फिर हमें दोष क्यों? सरकार ही नहीं चाहती कि गतिरोध टूटे। हमने 3 दिन धरना दिया। क्या मुख्यमंत्री एक दिन भी आए? क्या स्पीकर एक दिन भी आए? हमने ही पहल की है।
टीकाराम जूली नेता प्रतिपक्ष हैं और सदन आपने हाईजैक कर रखा है। क्या आप नहीं चाहते कि जूली ताकतवर हों? सदन में मेरी जिम्मेदारी डबल है, लेकिन सदन में हम सबके नेता टीकाराम जूली ही हैं। अब तक के सत्रों में मेरी तीन ही स्पीच हुई हैं और एक प्रश्न पूछा है। पूरी कमान जूली ही संभालते हैं। उनका प्रदर्शन हमारे लिए गड़े हुए मतीरे की तरह है। उस दिन भी उन्होंने ही मंत्री के बोलने पर विरोध जताया। जब अध्यक्ष ने बात नहीं सुनी तो मैं उनकी तरफ गया था।
वो सर्टिफिकेट देने वाले कौन? मुझे जनता ने चौथी बार चुना है: डोटासरा…
इसी सदन में आपके वरिष्ठ नेता भी राजस्थान को मर्दों का प्रदेश कह चुके हैं। जूते-चप्पलों के साथ अब आप भी शामिल हो गए हैं। अर्मायदित भाषा की यह कैसी अभिव्यक्ति है? सदन स्थगित होने के बाद अध्यक्ष होने के नाते मैं अपने विधायकों से बात कर रहा था। मैंने कोई असंसदीय या अनर्गल बात नहीं कही। ऐसा होता तो अध्यक्ष मुझे उसी दिन निलंबित होने के बाद भी बोलने के लिए क्यों बुलाते? मुझे चैंबर में बिठाकर खाना क्यों खिलाते? मैं 16 साल से विधायक हूं, 4 साल प्रधान भी रहा। कभी हल्के शब्दों का प्रयोग नहीं किया। विधानसभा में कभी अनर्गल नहीं बोला, जिस पर दूसरे पक्ष ने आपत्ति जताई हो उसे कार्यवाही से हटाया गया हो।
पक्ष-विपक्ष खिलाफ खड़े रहेंगे तो गतिरोध कैसे टूटेगा? हम चाहते हैं कि गतिरोध टूटे, पक्ष-विपक्ष मिलकर सदन चलाएं और जनता के मुद्दों पर सार्थक चर्चा हो। पूरे घटनाक्रम पर जूली जी, हमारे वरिष्ठ सदस्य और मैं खुद खेद प्रकट कर चुका हूं, पर अब तक न तो मंत्री ने माफी मांगी है और न ही अपमानजनक टिप्पणी कार्यवाही से हटाई गई है। क्या ये इतने बड़े काम हैं? जिस दिन ये दोनों बातें मान ली जाएंगी, कांग्रेस के विधायक सदन में चले जाएंगे।
प्रदेशाध्यक्ष के तौर पर आपका कार्यकाल पूरा हो रहा है, यदि बदलाव होता है तो कौनसे नाम ऐसे हैं, जिन्हें आप अध्यक्ष के तौर पर देखना चाहते हैं? नाम तो पार्टी आलाकमान तय करता है। किसी को भी भेजे। जो आएगा वो हमारा अध्यक्ष होगा। सब अच्छे नहीं, बहुत अच्छे हैं। चाहे गहलोत जी हों, पायलट जी हों, हरीश चौधरी जी हों या टीकाराम जी हों। ये सब मेरे से हजार गुना अच्छे हैं। इन लोगों से तो हम सीख रहे हैं। आज मुझे कह रखा है कि आप संगठन का काम देखिए, तो मैं देख रहा हूं।
आएलपी प्रमुख हनुमान बेनीवाल से आपकी क्या अदावत है? उनका आरोप है कि आपने पार्टी तोड़ दी? गठबंधन का फैसला पार्टी हाईकमान करता है, प्रदेशाध्यक्ष नहीं। लोकसभा चुनाव में गठबंधन हुआ ही था। हमें भी इसका लाभ मिला और वो खुद एमपी बन गए। उपचुनाव में आलाकमान ने अलग ढंग से सोचा और गठबंधन नहीं किया। लोकसभा चुनाव में उम्मेदाराम बेनीवाल को कांग्रेस ने जबरन टिकट नहीं दिया था, उन्होंने खुद कांग्रेस जॉइन की थी।
गहलोत और पायलट दो ध्रुव हैं, सुनने में आ रहा है- अब आप और जूली भी नए ध्रुव बन गए हैं? यह छोड़ दीजिए। जब से मैं प्रदेशाध्यक्ष हूं, तब से एक ही गुट है- कांग्रेस गुट। इसमें मेरे पास प्रदेशाध्यक्ष का दायित्व है, जूली जी नेता प्रतिपक्ष हैं, गहलोत जी सीनियर ऑब्जर्वर-लीडर हैं और पायलट जी जनरल सेक्रेटरी हैं। सब अपना-अपना काम कर रहे हैं। सदन में हमारा लीडर टीकाराम जूली है। जो वो तय करते हैं, उसे हम एमएलए के तौर पर करते हैं। प्रदेशाध्यक्ष होने के नाते मुझे संगठन में जो काम करना होता है, वो सीनियर लोगों की राय लेकर करता हूं।