राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक
एक समय था जब चाय की थड़ी, गांव की चौपाल, पान की दुकान पर लोग अखबार पढ़ते थे तत्पश्चात खबरो को लेकर मंथन होता था । खबरों की विश्वसनीयता इतनी थी कि लोग दुहाई देते थे कि अखबार में छपा है । यानी यह समाचार पत्रों की विश्वसनीयता को इंगित करती थी । समय बदला इलैक्ट्रिक मिडिया ने पैर पसारे तो सबसे पहले सबसे तेज का आवरण ओढ़ कर पत्रकारिता को अर्थ युग की अंधी दौड़ में शामिल कर लिया । तत्पश्चात यूट्यूब चैनलों ने रही सही कसर पूरी कर दी । दसवीं पास पत्रकारों ने एक बढिया मोबाइल और एक माउथ पीस को ही पत्रकारिता का मापदंड मान लिया । इस दौड़ मे उन पत्रकारों की आवाज को दबा दिया जो पत्रकारिता को ही अपना धर्म मानते थे ।
भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था का यह स्तंभ अर्थ के बोझ तले दब गया । पत्रकारिता आमजन व सरकार में बैठे नुमाइंदों के बीच सेतु का काम करता है । सरकार के कल्याणकारी कदमों को सदैव उजागर करना व सरकार के गलत निर्णयों का विरोध तथा गलत कदमों का साथ न देना ही पत्रकारिता का धर्म होता है । सरकार व नेताओं के गुणगान करने में जब पत्रकार उसी को पत्रकारिता समझने लगे तो आमजन का विश्वास उठना लाजिमी है और आज के परिदृश्य में यही देखा जा रहा है । गृह जिले झुंझुनूं की बात करें तो पत्रकार नेताओं की प्रेस कांफ्रेंस का ठेका ले लेते हैं और उस प्रेस कान्फ्रेंस में उन्हीं पत्रकारो को स्थान मिलता है जो इस गठबंधन का हिस्सा होते हैं । पत्रकारिता को लेकर देश के पूर्व प्रधानमंत्री व किसान नेता चौधरी चरणसिंह ने कहा था “जब तक मिडिया मेरे खिलाफ लिखती रहेगी , किसानो मै आपके साथ रहूंगा , जिस दिन प्रशंसा करेंगे समझ लेना मैं बिक चुका हूं ।”
इस वक्तव्य को देखें तो इसमें मिडिया के प्रति चौधरी साहब का क्या दृष्टिकोण था यानी खिलाफ लिखने को उन्होंने कभी बुरा नहीं माना उससे उनको लगता था कि यह खिलाफ नहीं बल्कि सरकार या नेताओ को आइना दिखाना है । लेकिन आज के परिवेश में आलोचना करना नेताओं को अखरने लगता है व उस पत्रकार को प्रेस कांफ्रेंस में नहीं बुलाया जाता व अखबार के मालिक को भी चेतावनी दी जाती है । बहुत से पत्रकारों को तो इस इसके चलते इलैक्ट्रिक मिडिया मालिकों ने बाहर का रास्ता दिखा दिया । दूसरा पहलू से चौधरी साहब का तात्पर्य था कि यदि प्रशंसा करें तो समझो में बिक गया हूं इससे उनके बिकने का नहीं बल्कि पत्रकारिता अपने नैतिक मूल्यों से विमुख होकर नेताओ को महिमान्वित करती है जो आधुनिक पत्रकारिता पर सटीक बैठता है । सार्थक आलोचना करना ही पत्रकारिता के उच्चतम आयाम स्थापित करने की दिशा में एक प्रशंसनीय कदम कहा जा सकता है ।
पत्रकारिता के गिरते मूल्यों को बचाने के लिए सरकार को भी गंभीरता से सोचना होगा कि जो यूट्यूब चैनलों की भरमार ने आमजन को भ्रमित करने का काम कर रहे हैं उन पर लगाम लगाई जाए । केवल वही अखबार मालिक जिनके पास आरएनआई नंबर है वहीं यदि यूट्यूब चैनल चलाए तो चला सकते हैं बाकी सभी चैनलो को बैन कर दिया जाए ।