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वर्किंग वुमन 180 दिन की मैटरनिटी लीव की हकदार:हाईकोर्ट ने कहा-ये लाभ नहीं, अधिकार है; सरकार सभी सरकारी-निजी संस्थानों में लागू करवाए नियम


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वर्किंग वुमन 180 दिन की मैटरनिटी लीव की हकदार:हाईकोर्ट ने कहा-ये लाभ नहीं, अधिकार है; सरकार सभी सरकारी-निजी संस्थानों में लागू करवाए नियम

वर्किंग वुमन 180 दिन की मैटरनिटी लीव की हकदार:हाईकोर्ट ने कहा-ये लाभ नहीं, अधिकार है; सरकार सभी सरकारी-निजी संस्थानों में लागू करवाए नियम

जयपुर : राजस्थान में सरकारी और ​प्राइवेट संस्थानों में काम करने वाली वर्किंग वुमन के लिए हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा- कोई भी वर्किंग वुमन (कामकाजी महिला) 180 दिन के मातृत्व अवकाश (मैटरनिटी लीव) की हकदार है।

किसी भी नियम और रेगुलेशन से उसका यह अधिकार नहीं छीना जा सकता है। यदि ऐसा होता है तो यह महिला के संवैधानिक अधिकारों का हनन माना जाएगा। जस्टिस अनूप ढंढ की अदालत ने यह आदेश रोडवेज में कार्यरत महिला परिचालक (कंडक्टर) मीनाक्षी चौधरी की याचिका पर फैसला सुनाते हुए दिया।

90 दिन की मैटरनिटी लीव ही दी थी याचिका में कहा गया था कि राजस्थान रोडवेज ने उसका केवल 90 दिन का मातृत्व अवकाश ही स्वीकृत किया था। जबकि केंद्र और राज्य सरकार के अन्य विभागों में महिला कर्मचारी को 180 दिन का मातृत्व अवकाश मिलता है।

इस पर सुनवाई के दौरान रोडवेज प्रबंधन की ओर से कहा गया कि रोडवेज एक स्वायत्तशासी संस्था है। हम पर राजस्थान सर्विस रूल्स 1951 लागू नहीं होते हैं। हमारे 1965 के रेगुलेशन के अनुसार हम अधिकतम 90 दिन का मातृत्व अवकाश ही स्वीकृत कर सकते हैं। ऐसे में महिला कर्मचारी की याचिका को खारिज किया जाए।

‘कामकाजी महिला को उसके पेशेवर कर्तव्य से अवकाश दिया जाए’ हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मां बनना एक महिला के जीवन का सबसे अलग अनुभव है। गर्भावस्था और प्रसव एक महिला के जीवन में विशेष चरण होते हैं। ऐसे में जरूरी है कि एक कामकाजी महिला को उसके पेशेवर कर्तव्य से अवकाश दिया जाए।

यह अवकाश महिलाओं को काम के दबाव से मुक्त होकर पूरी तरह से अपनी सेहत और बच्चों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने की परमिशन देता है। इसलिए मैटरनिटी लीव केवल एक लाभ नहीं, बल्कि एक अधिकार है।

हाईकोर्ट ने कहा- एक महिला, जो सेवा में है, उसे बच्चे के जन्म की सुविधा के लिए जो कुछ भी आवश्यक है, संस्थान को देना होगा। ताकि महिलाएं अपनी मातृत्व भूमिकाओं को प्रभावी ढंग से संतुलित कर सकें। संस्थान को उन कठिनाइयों का एहसास होना चाहिए, जो एक कामकाजी महिला को कार्य स्थल पर अपने कर्तव्यों का पालन करने में, गर्भ में बच्चे को पालने में या जन्म के बाद बच्चे का पालन-पोषण करने में आती हैं।

सरकार सभी संस्थाओं में नियमों में करवाए संशोधन याचिकाकर्ता के अधिवक्ता (वकील) रामप्रताप सैनी ने बताया- इस पूरे मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट के सामने आया कि अभी भी कई संस्थान ‘मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961’ के नियमों के तहत ही काम कर रहे हैं। जबकि साल 2017 में इस कानून में संशोधन हो चुका है। इसके बाद सभी कामकाजी महिलाएं 180 दिन के मातृत्व अवकाश की हकदार हैं, लेकिन रोडवेज ने इस संशोधन के अनुसार अपने नियमों को संशोधित नहीं किया।

ऐसे में अब हाईकोर्ट ने रोडवेज को आदेश दिए हैं कि वह याचिकाकर्ता को बाकी रहे 90 दिनों की मैटरनिटी लीव भी दे।

वहीं केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश देते हुए कहा है कि वह सभी सरकारी, गैर सरकारी असंगठित और निजी क्षेत्र के संस्थानों में मैटरनिटी लीव से जुड़े नियमों को संशोधित करवाए। इससे सभी कामकाजी महिलाओं को 180 दिन का मातृत्व अवकाश बिना किसी रुकावट के मिल सके।

19 दिन पहले रेट ने भी सुनाया था ऐसा ही फैसला 19 दिन पहले राजस्थान सिविल सर्विसेज अपील ट्रिब्यूनल (रेट) ने संविदा पर काम कर रही महिला डॉक्टर को मैटरनिटी लीव (मातृत्व अवकाश) देने का आदेश दिया था। न्यायिक सदस्य अनंत भंडारी और सदस्य शुचि शर्मा ने डॉ. अक्षिता की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया। सुनवाई ने दौरान रेट ने कहा था- राज्य सरकार और उच्च न्यायालय के निर्णयों में संविदा, अस्थायी तौर पर कार्यरत महिला कार्मिकों को भी मातृत्व अवकाश का हकदार माना है। लेकिन, याचिकाकर्ता के मामले में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने उसे न तो मातृत्व अवकाश स्वीकृत किया, न ही फिर से कार्यग्रहण करवाया। जबकि याचिकाकर्ता नियमानुसार मातृत्व अवकाश का लाभ लेने की हकदार है। लिहाजा उसको 180 दिन का मातृत्व अवकाश स्वीकृत कर कार्यग्रहण करवाया जाए।

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