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रिटायरमेंट के बाद भी ग्रामीण नहीं भूले इस शिक्षक को:गांव वालों ने 2 बार गिफ्ट की कार; ट्रस्ट ने खुलवा कर दिया स्कूल


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रिटायरमेंट के बाद भी ग्रामीण नहीं भूले इस शिक्षक को:गांव वालों ने 2 बार गिफ्ट की कार; ट्रस्ट ने खुलवा कर दिया स्कूल

रिटायरमेंट के बाद भी ग्रामीण नहीं भूले इस शिक्षक को:गांव वालों ने 2 बार गिफ्ट की कार; ट्रस्ट ने खुलवा कर दिया स्कूल

फतेहपुर (सीकर) : एक शिक्षक का भागीरथी प्रयास, ऐसा कि जिस भी स्कूल में रहे उसे राज्य स्तर पर पहचान दिला दी। बच्चों की जिंदगी बन जाए इसलिए घर परिवार छोड़ खुद स्कूल में ही रुकने लगे। रात को एक्स्ट्रा क्लासेज लगा दी। रिजल्ट ये रहा कि जहां भी रहे, इनकी स्कूल से कोई बच्चा कभी बोर्ड एग्जाम में फेल नहीं हुआ। इसीलिए जब कभी इनका तबादला होता तो गांव वाले जाने के लिए मना करते। बेहतरीन परिणाम देने पर गांववालों ने दो बार गाड़ी भेंट की। रिटायरमेंट के बाद भी एक ट्रस्ट ने उन्हें स्कूल खुलवाकर एमडी बना दिया।

शिक्षक भागीरथ सिंह महिचा।
शिक्षक भागीरथ सिंह महिचा।

ये भागीरथी प्रयास करने वाले शिक्षक हैं सीकर के फतेहपुर के समीप बड़ागांव रहने वाले भागीरथ सिंह महिचा। ये 1984 में महज 25 साल की उम्र में थर्ड ग्रेड टीचर बने। पहली पोस्टिंग फतेहपुर के ढांढण के राजकीय सेकेंडरी स्कूल में हुई। छोटे से गांव की इस स्कूल में उनके सामने कई चुनौतियां थी। लगातार दस साल तक उन्होंने यहां बच्चों को पढ़ाया और गांव वालों के सहयोग से विकास कार्य करवाए। दस साल बाद 8 महीने के लिए उनका तबादला हो गया, लेकिन फिर वापस ढांढण ही आ गए। 2018 में भागीरथ सिंह महिचा प्रधानाध्यापक पद से प्रमोशन होकर जिला शिक्षा अधिकारी बन गए। इस पद से 2019 में रिटायर हुए। रिटायरमेंट सुजानगढ़ में हुआ, लेकिन ढांढ़ण के ग्रामीण इन्हें कभी नहीं भूले और अपने गांव में बुलाकर इन्हें विदाई में कार गिफ्ट की।

रिटायरमेंट के बाद भागीरथ सिंह अपने गांव लौट गए और खेती बाड़ी करने लगे, लेकिन एक बार फिर ढांढ़ण के ग्रामीण उनके पास पहुंचे और गांव में बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी संभालने की मांग की। तारा देवी रामेश्वर लाल बजाज चेरेटिबल ट्रस्ट ने गांव में एक स्कूल खुलवाया और उसमें उन्हें एमडी बना दिया। भागीरथसिंह अब इसी स्कूल में बच्चों को पढ़ा रहे हैं।

थर्ड ग्रेड टीचर से शुरुआत, जिला शिक्षा अधिकारी पद से रिटायर

शिक्षक दिवस पर हम भागीरथसिंह से मिले। करीब 65 साल की उम्र में भी उनके अंदर पूरा उत्साह था। वे बताते हैं कि मेरा जन्म गांव में हुआ, पूरी नौकरी भी गांवों में बीती। इसलिए मैं वहां के बच्चों के संघर्ष को समझता हूं। मैंने तय कर लिया था कि इन बच्चों को सरकारी स्कूल में ही बेहतरीन शिक्षा दिलाऊंगा। इसके बाद उन्होंने अपनी पूरी कहानी बताई।

उन्होंने बताया– मेरी पहली पोस्टिंग ढांढ़ण गांव में हुई। इस गांव के सरकारी स्कूल में तब नागौर, बाड़मेर, जैसलमेर और जोधपुर के बच्चे भी पढ़ने आते थे। उनके लिए एक हॉस्टल भी था। ये स्कूल अच्छा था। मैं यहां थर्ड ग्रेड टीचर्स लगा था। करीब सात आठ साल तक मैं वहां पढ़ाता रहा। 1993 में मैं आरपीएससी की परीक्षा देकर प्रधानाध्यापक बन गया और मेरा तबादला हो गया। इसके आठ महीने बाद ही मैं वापस ढांढ़ण स्कूल में आ गया। बतौर प्रधानाध्यापक मैंने वहां सभी शिक्षक साथियों के साथ मिलकर तय किया कि इस स्कूल को वापस पुरानी पहचान दिलानी है। हम रात को बच्चों के लिए क्लासेज लगाने लगे। हॉस्टल में सुविधाएं बढ़ाई और गांव वालों को साथ लेकर स्कूल का विकास किया। नतीजा ये रहा कि स्कूल की पहचान बनने लगी। सरकार नौकरी थी सो वापस तबादला हो गया। हालांकि मुझे जाना पड़ा। कुछ साल बाद 2009 में मेरा ट्रांसफर वापस ढांढण स्कूल में हो गया। उस समय स्कूल में 400 बच्चे थे। इनमें से करीब 25 बच्चे हॉस्टल में थे। हमने वापस मेहनत शुरू की और तीन साल में ही स्कूल से 1200 बच्चों को जोड़ा। स्कूल में रहने वाले बच्चों की संख्या भी 175 तक पहुंच गई।

महिचा की पहली पोस्टिंग ढांढण स्कूल में हुई।
महिचा की पहली पोस्टिंग ढांढण स्कूल में हुई।

भामाशाहों को तैयार कर बनवाया स्कूल भवन और हॉस्टल

महिचा बताते हैं कि– 2016 में स्कूल में बच्चों की संख्या तो बढ़ गई, लेकिन अब कमरे कम पड़ने लगे। तब गांव के भामाशाह तारा देवी रामेश्वर लाल बजाज से संपर्क किया। हमारी मेहनत देखकर वे स्कूल का नया भवन बनाने को तैयार हो गए और उसके लिए डेढ़ करोड़ रुपए की मदद की। इसके बाद हमें हॉस्टल के लिए भी एक भवन की जरुरत पड़ी। जिस पर हमने 2018 में फतेहपुर के मोहनलाल सजनी देवी भरतिया परिवार को तैयार किया। परिवार ने 4 करोड़ की लागत से हॉस्टल बनवाया और बच्चों को रहने के लिए सौंप दिया। हॉस्टल में बच्चों से रहने की कोई फीस नहीं ली जाती है। केवल खाने का खर्चा जोड़कर बच्चों के हिसाब से डिवाइड कर दिया जाता है।

100 फीसदी परिणाम देने और रिटायरमेंट पर ग्रामीणों ने दो बार कार गिफ्ट की।
100 फीसदी परिणाम देने और रिटायरमेंट पर ग्रामीणों ने दो बार कार गिफ्ट की।

गांव वालों ने दो बार गिफ्ट की कार
अपनी कई सालों की मेहनत के बाद महिचा ने ढांढ़ण गांव की स्कूल की सूरत बदल दी। 2012 में ढांढण राजकीय स्कूल को जयपुर संभाग का सर्वश्रेष्ठ राजकीय स्कूल का पुरस्कार मिला। वहीं 2013 में राजस्थान का सर्वश्रेष्ठ स्कूल का पुरस्कार मिला। 2009 से लेकर 2014 तक एक बार फिर स्कूल का परिणाम 100 फीसदी रहा। शिक्षा के साथ-साथ महिचा चाहते थे कि स्कूल में खेल गतिविधियों का भी विकास हो। इसलिए उन्होंने स्कूल में खेलों को बढ़ावा दिया। नतीजा ये रहा कि 2016 में इस स्कूल में पहली बार राज्य स्तरीय खेलकूद प्रतियोगिता हुई और इसके अगले ही साल 2017 में राष्ट्रीय वॉलीबॉल प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इन सभी उपलब्धियों के कारण स्कूल की अलग पहचान बनी और ग्रामीणों ने खुश होकर महिचा को एक कार गिफ्ट की। 2019 में महिचा सुजानगढ़ में जिला शिक्षा अधिकारी के पद से रिटायर हुए तब ढांढ़ण के ग्रामीणों ने उन्हें वापस बुलाया और एक और कार गिफ्ट की।

भागीरथ सिंह ने बच्चों को खुद ट्रेनिंग थी। कई बच्चे राष्ट्रीय और राज्य स्तर तक पहुंचे।
भागीरथ सिंह ने बच्चों को खुद ट्रेनिंग थी। कई बच्चे राष्ट्रीय और राज्य स्तर तक पहुंचे।

खेलों को बढ़ावा देने के लिए ट्रेनिंग दी
महिचा की नियुक्ति 1997 में चूरू जिले के रतनगढ़ के जांदवा गांव में भी हुई। इस स्कूल में उन्होंने खेलों को बढ़ावा दिया। महिचा बताते हैं कि मैंने देखा कि बच्चों में खेलों के प्रति रूचि नहीं थी। इसलिए बच्चों को खेलों के लिए तैयार किया। उन्हें ट्रेनिंग दी। इसके बाद जिला शिक्षा अधिकारी को स्कूल में टूर्नामेंट करवाने के लिए पत्र लिखा। हमें टूर्नामेंट मिल गया। इसका नतीजा ये रहा कि हमारी स्कूल में भी बच्चे खेल से जुड़ने लगे। स्कूल की दो छात्राओं का खोखो और एथेलेटिक्स (लंबी दौड़ में) चयन राष्ट्रीय स्तर पर हुआ। वहीं 102 खिलाड़ियों का चयन प्रदेश स्तर पर हुआ। इसके बाद महिचा की नियुक्ति रतनगढ़ के मैणासर गांव में हुई। वहां भी उन्होंने खेल को बढ़ावा दिया और स्कूल के 50 छात्र-छात्राओं का चयन प्रदेश स्तर पर हुआ।

स्कूल को 2016 में सर्वश्रेष्ठ स्कूल का पुरस्कार मिला। पुरस्कार लेते भागीरथ सिंह महिचा।
स्कूल को 2016 में सर्वश्रेष्ठ स्कूल का पुरस्कार मिला। पुरस्कार लेते भागीरथ सिंह महिचा।

निजी स्कूलों की जगह सरकारी स्कूल को विश्वसनीय बनाया
शिक्षक भागीरथसिंह महिचा के साथ ही हम उनके स्टूडेंट्स से भी मिले। पूर्व छात्र और अभी प्रोफेसर रिछपालसिंह सुंडा ने बताया कि मैं गुरुजी की वजह से ही स्कूल का टॉपर बना हूं। आज जब अभिभावक निजी स्कूलों पर ज्यादा भरोसा करते है, तब उन्होंने सरकारी स्कूलों को विश्वसनीय बनाया। ढाढ़ंण स्कूल के पूर्व छात्र मनीष पारीक ने बताया कि हमारे आसपास केवल प्राइवेट हॉस्टल थे, केवल हमारे स्कूल में सरकारी हॉस्टल था। सर ने उस समय एक्स्ट्रा क्लास चलवाई और स्कूल का अच्छा रिजल्ट दिया। इसी प्रकार पूर्व छात्र रहे डॉ. प्रदीप चौधरी ने बताया कि भागीरथ सर ने हमेशा जरूरत मंद बच्चों की मदद की है। उनके कारण कई बच्चों का जीवन सुधरा है।

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