राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक
राजनिति संभावनाओं का खेल होती है कब किस नेता के सितारे गर्दिश में चले जाएं या कब वह बुंलदी पर चला जाए पता नहीं चलता । चुनावों मे हार के बावजूद जो नेता जमीन से जुड़ा रहे और आमजन के बीच में रहकर उनकी समस्याओं को लेकर तत्पर रहे उस नेता के क्रियाकलापों पर शीर्ष नेतृत्व भी नजर रखता है । अनूमन यह देखा गया है कि जीत जाने पर नेता खुद को अलग बिरादरी का व्यक्ति समझने लगता है लेकिन पराजय के बावजूद जो नेता जनता के बीच रहे उसके बारे में जनता भी सोचने के लिए मजबूर हो जाती है ।
विदित हो झुंझुनूं विधानसभा में विजेन्द्र ओला के सांसद बन जाने से वहां उपचुनाव होने है । झुंझुनूं विधानसभा ओला परिवार का अभेद किला रहा है और कांग्रेस आलाकमान से समझौते के तहत ही विजेन्द्र ओला ने विधायकी छोड़ लोकसभा चुनावों में उतरे थे । वह समझौता था अपने बेटे को उपचुनाव में टिकट दिया जाए । इसमें संदेह नहीं कि टिकट ओला परिवार को न मिले । अब सवाल आता है भाजपा से उम्मीदवारी का तो एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति देखने को मिल रही है । भारतीय राजनीति में जातीय समीकरण हावी रहते हैं इसी के चलते जाट समुदाय के नेता की उम्मीदवारी प्रबल दिखाई देती है । उपरोक्त तथ्यों के मध्य नजर बबलू चौधरी टिकट के प्रबल दावेदार के रूप में उभर कर आए हैं । पराजय के बावजूद झुंझुनूं के जनमानस की समस्यायों को लेकर सजग रहना उनकी राजनीतिक पटल पर वापसी के संकेत के तौर पर देखा जा सकता है । लेकिन यदि भाजपा शीर्ष नेतृत्व उनपर दांव लगाता है तो बागी उम्मीदवार से निपटना बबलू चौधरी के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी । विगत चुनावों में यह देखा गया है कि भाजपा को कांग्रेस नहीं बल्कि भाजपा ही हराती है । जब मुकाबला त्रिकोणीय हो जाता है तो ओला परिवार की जीत आसान हो जाती है । यदि भाजपा बागी रूपी बीमारी से मुक्त होती है और बबलू चौधरी का सीधा मुकाबला ओला परिवार से होता है तो निश्चित रूप से चुनाव बहुत दिलचस्प होने के साथ ही भाजपा की झोली में यह सीट आ सकती है । लेकिन बबलू चौधरी को अपनी छवि को निखारने के लिए ऐसे कदम नहीं उठाने चाहिए जिससे उनकी छवि धूमिल हो । झुंझुनूं में आम चर्चा है कि नगर परिषद में भ्रष्ट अधिकारी को लाने में बबलू चौधरी का हाथ है । यदि इस बात में सच्चाई है तो अपनी ईमानदारी की छवि बरकरार रखने के लिए उस अधिकारी को अन्यत्र कहीं भेजने की दिशा में कार्यवाही होनी चाहिए ।
कांग्रेस की तरफ से तो ओला के मैदान में होंगे क्योंकि बिना ऐसे समझौते बिना बिजेंद्र ओला ने सांसद का चुनाव नहीं लड़ा । लेकिन भाजपा की तरफ से हर दावेदार नेताओं को लेकर आकलन विभिन्न कड़ियों में जनता की अदालत में रखने का प्रयास होगा ।
अन्य भावी उम्मीदवारो का आकलन अगले अंक में …………
राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक