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कारगिल युद्ध में पैर कटा, फिर भी पीछे नहीं हटे:साढ़े चार घंटे तक करते रहे फायर, बह रहा था खून; वाजपेयी ने थपथपाई थी पीठ


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कारगिल युद्ध में पैर कटा, फिर भी पीछे नहीं हटे:साढ़े चार घंटे तक करते रहे फायर, बह रहा था खून; वाजपेयी ने थपथपाई थी पीठ

कारगिल युद्ध में पैर कटा, फिर भी पीछे नहीं हटे:साढ़े चार घंटे तक करते रहे फायर, बह रहा था खून; वाजपेयी ने थपथपाई थी पीठ

13 जून 1999, कारगिल का युद्ध चल रहा था। हमारी बटालियन ने पहाड़ी पर चढ़ाई कर दुश्मनों पर हमला करना शुरू किया था। तब मेरा पैर पाकिस्तानी सेना की ओर से बिछाई गई माइन पर लगा और मैं उछल कर नीचे गिरा। दाहिना पैर घुटनों के नीचे से कट चुका था। इसके बाद भी साढ़े चार घंटे तक पाकिस्तानी सेना के हर वार का जवाब दिया। पाकिस्तानी सेना हमारे जवानों को पकड़कर अपने एरिया में ले जाकर मौत देती थी। ऐसे में सोच लिया था- ‘चाहे खुद को गोली मारनी पड़े, लेकिन दुश्मनों के हाथ नहीं आऊंगा…।’

जनमानस शेखावाटी ने कारगिल विजय दिवस के 25 साल पूरे होने पर नीमकाथाना जिले के पाटन क्षेत्र की श्यामपुरा गांव के रहने वाले लांस नायक राजेंद्र सिंह तंवर से बात की। उन्होंने कारगिल में दुश्मनों का सामना किया था। राजेंद्र सिंह ने उस वक्त की पूरी कहानी और वॉर का आंखों देखा हाल हमसे साझा किया।

राजेंद्र सिंह तंवर 6 दिसंबर 1989 को फौज में भर्ती हुए थे। कारगिल वॉर के दौरान उनका दाहिना पैर घुटनों के नीचे से गंवाना पड़ा था।
राजेंद्र सिंह तंवर 6 दिसंबर 1989 को फौज में भर्ती हुए थे। कारगिल वॉर के दौरान उनका दाहिना पैर घुटनों के नीचे से गंवाना पड़ा था।

1999 में कुपवाड़ा में थी पोस्टिंग
राजेंद्र सिंह तंवर ने बताया- कारगिल विजय दिवस के 25 साल पूरे हो गए हैं। इस युद्ध ने भारतीय सेना के कई जवानों को देश से छीन लिया। वहीं कई जवान आज भी अपने शरीर पर युद्ध के जख्म लिए हुए हैं। उन्हीं में से एक मैं हूं। अपने देश के किसी काम आए, इस बात का हमेशा गर्व रहता है।

उन्होंने बताया- मैं 6 दिसंबर 1989 को 2 राजपूताना राइफल्स में भर्ती हुआ था। शुरुआती पोस्टिंग दिल्ली, उदयपुर, कुपवाड़ा (जम्मू-कश्मीर) और ग्वालियर में रही। 1999 में वापस कुपवाड़ा में पोस्टिंग दी गई। उस दौरान कारगिल युद्ध छिड़ गया था। जून महीने में बटालियन को मैसेज मिला कि 2 दिन में युद्ध के लिए पहुंचना है।

दो दिन तक साथी जवानों के साथ सोनमर्ग में वातावरण संबंधी ट्रेनिंग और परीक्षण लिया। इसके बाद 12 जून को द्रास सेक्टर में तोलोलिंग चोटी से पहले बिंबट बेस कैंप पहुंच गए। रात को पहाड़ी पर चढ़ाई करने का आदेश मिला। रात करीब 2:30 बजे पाकिस्तानी सेना के कब्जे में ली गई जगह से डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर पहुंच गए। इसके बाद पाकिस्तानी सेना के साथ वार्ता, कभी जुबानी जंग तो कभी फायरिंग चलती रही।

जवानों ने पहाड़ी पर चढ़ाई की और फायर कर दुश्मनों को खदेड़ा था। (फाइल फोटो)
जवानों ने पहाड़ी पर चढ़ाई की और फायर कर दुश्मनों को खदेड़ा था। (फाइल फोटो)

माइन पर पैर लगने पर हवा में उछला, पैर कटा
बकौल राजेंद्र, 13 जून… वह समय आ चुका था, जब भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना की तरफ बढ़ना था। लगातार हो रही फायरिंग के बीच वे अपने कमांडिंग ऑफिसर एमबी रविंद्र नाथ और अन्य साथियों के साथ पाकिस्तानी सेना से करीब 50 मीटर की दूरी पर पहुंच गए। पत्थरों के पीछे से पाकिस्तानी सेना पर हमला करना शुरू कर दिया।

इस बीच खबर मिली कि कंपनी के मेजर विवेक गुप्ता सहित कई जवान वीरगति को प्राप्त हो गए। राजेंद्र ने बताया- रात करीब 11:30 बजे तक हमने 5 से 7 पाकिस्तानी सेना के जवानों को भी मार गिराया था।

दुश्मनों का सामना करते हुए अचानक पैर पाकिस्तानी सेना की ओर से पहाड़ी पर दबाई गई माइन पर लग गया। मैं हवा में उछल कर पहाड़ी पर 20 से 30 फीट नीचे गिरा। जब अपना दाहिना पैर देखा तो पता चला कि घुटने के नीचे का ज्यादातर हिस्सा कट चुका था और खून बह रहा था, लेकिन सोच लिया था कि यह दर्द किसी सैनिक की शहादत से बड़ा नहीं है।

साथी के शव के पीछे छुपकर किया फायर
राजेंद्र ने बताया- सिर पर लगा काला कपड़ा कटे हुए पैर पर रस्सी से बांध दिया। वापस ऊंचाई पर गया और एक पत्थर के पीछे छुप गया। साथी जवानों को अपने घायल होने की सूचना दी। राजेंद्र ने बताया- उस वक्त मेरे पास चार ग्रेनेड, 150 राउंड थे। कुछ देर छुपकर लड़ाई की, लेकिन पाकिस्तानी सेना को हमारी लोकेशन का पता चल गया था। ऐसे में जगह बदलकर पास ही साथी जवान के शव के पास छुप गया। सुबह 4:30 बजे तक यानी करीब साढ़े चार घंटे तक पाकिस्तानी सेना पर हमला करते रहे। आखिर में मेरे पास केवल तीन राउंड बचे। तीनों राउंड को जानबूझकर अपने पास बचाकर रखा।

युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना हमारे जवानों को अपने एरिया में ले जाती थी और बेरहम तरीके से मौत के घाट उतारती थी। ऐसे में सोच लिया था कि चाहे खुद को गोली ही क्यों न मारनी पड़े, लेकिन पाकिस्तान की सेना के हाथ नहीं आऊंगा।

पैर से बहता रहा खून, रेंगते हुए बेस कैंप पहुंचे
अगले दिन 14 जून की सुबह करीब 4:30 बजे दूसरी बटालियन पीछे से आ गई। यह संभव नहीं था कि वह घायल जवानों को बेस कैंप तक ले जा सके, क्योंकि दुश्मनों का सामना करना था। मेरे पैर से काफी खून बह रहा था। कभी रेंग कर तो कभी पीठ के सहारे आगे होकर शाम 4 बजे बिंबट बेस कैंप पहुंचे। वहां फर्स्ट एड मिली।

कारगिल में दुश्मनों का सामना करने वाले जांबाजों के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी। (फाइल फोटो)
कारगिल में दुश्मनों का सामना करने वाले जांबाजों के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी। (फाइल फोटो)

इलाज के लिए हेलिकॉप्टर के जरिए श्रीनगर लाया गया। वहां तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और सेना के कई बड़े अधिकारी मौजूद थे। वाजपेयी ने मेरी पीठ भी थपथपाई थी। 4 महीने तक मेरा दिल्ली और पुणे में इलाज चला। अक्टूबर में अपने घर आया।

राजेंद्र ने बताया- उस वक्त पत्नी ममता देवी 3 महीने की प्रेग्नेंट थी। वर्तमान में मेरा बेटा गजेंद्र सिंह मल्टी नेशनल कंपनी में नौकरी करता है। बेटी रितु सिंह है।

रिटायरमेंट के बाद ओएनजीसी में असिस्टेंट एचआर एग्जीक्यूटिव
अब राजेंद्र सिंह देहरादून में ओएनजीसी में असिस्टेंट एचआर एग्जीक्यूटिव के पद पर सेवाएं दे रहे हैं। रिटायर होने के बाद वह गेम्स से भी लगातार जुड़े हुए हैं। उन्होंने 10 मीटर एयर पिस्टल में नेशनल खेला है। इसके अलावा पेट्रोलियम सेक्टर के पैरा नेशनल गेम्स में बैडमिंटन गेम में 2 गोल्ड मेडल हासिल किए हुए हैं।

राजेंद्र सिंह और उनकी पत्नी ममता देवी। (फाइल फोटो)
राजेंद्र सिंह और उनकी पत्नी ममता देवी। (फाइल फोटो)

पिता को देखकर सेना में जाने का सपना देखा था
राजेंद्र का जन्म 1 दिसंबर 1970 को हुआ था। उनके पिता सुरजन सिंह तंवर 8 राजपूताना राइफल्स में थे। राजेंद्र ने बचपन से पिता को सेना की वर्दी में देखा था। उन्हें देखकर उनके मन में भी सेना में जाने का सपना था, जिसे उन्होंने पूरा भी किया। राजेंद्र ने आईटीआई इलेक्ट्रॉनिक्स और 12वीं कक्षा तक पढ़ाई की। 6 दिसंबर 1989 को 2 राजपूताना राइफल्स में सिपाही के पद पर भर्ती हुए।

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