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Success Story Of Champaran Meat : बिहार-नेपाल बॉर्डर पर हांडी में मटन बनते देख आया आइडिया, अब पूरे देश में फैला बिजनेस


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Success Story Of Champaran Meat : बिहार-नेपाल बॉर्डर पर हांडी में मटन बनते देख आया आइडिया, अब पूरे देश में फैला बिजनेस

Success Story of Champaran Meat : चंपारण मीट आज देश-दुनिया के कोने-कोने में मौजूद है। लेकिन असली वाला कौन है, यह कहना मुश्किल है। बिहार के रहने वाले गोपाल कुमार कुशवाहा का कहना है कि उन्होंने इसे शुरू किया था। हालांकि पहले ट्रेड मार्क नहीं लिया था जिससे इसे कोई भी शुरू कर देता है। अब ट्रेड मार्क ले लिया है। गोपाल बताते हैं कि इसे ब्रांड बनाने में उन्होंने काफी मेहनत की है।

Success Story of Old Champaran Meat House : अगर आप नॉनवेज के शौकीन हैं तो आपने चंपारण मीट का नाम सुना होगा। हो सकता है कि आपने इसे खाया भी हो। आज जगह-जगह चंपारण मीट वाले मिल जाएंगे, लेकिन इनमें असली कौन है, इसे पहचानना मुश्किल है। हम आपको बता दें कि असली चंपारण मीट वाले गोपाल कुमार कुशवाहा हैं। इनके ब्रांड का नाम ओल्ड चंपारण मीट हाउस है। बिहार के रहने वाले गोपाल को बिहार-नेपाल बॉर्डर पर मटन बनते देख आइडिया आया था। इसके बाद इन्होंने इसमें कुछ परिवर्तन किया और लोगों के सामने नए तरीके से हांडी में मटन बनाया, जिसे इन्होंने अहुना मटन नाम दिया। गोपाल कुशवाहा का यह प्रयोग इतना सफल रहा कि कुछ ही समय में पूरे बिहार में फेमस हो गया। आज इनका बिजनेस देश के कई हिस्सों में फैला है।

नाम को लेकर जारी है संघर्ष

आज आपको हर जगह चंपारण मीट के नाम से दुकान मिल जाएगी। इसे लेकर गोपाल कुशवाहा दुखी रहते हैं। गोपाल कुशवाहा ने बताया कि चंपारण मीट के नाम से ट्रेड मार्क लेने और नाम को रजिस्ट्रेशन कराने के बाद भी देशभर में काफी जगह उनके नाम का इस्तेमाल हो रहा है। इसे लेकर मामला कोर्ट में भी है। कई लोगाें पर केस चल रहा है। गोपाल कुशवाहा कहते हैं उन्हें शुरू में ट्रेड मार्क को लेकर कुछ पता नहीं था। चूंकि इनका मटन पूरे बिहार में फेमस हो गया था और बिहार से निकलकर देश के दूसरे राज्यों में फैल गया था, इसके बाद इन्हें किसी ने ट्रेड मार्क के बारे में बताया। गोपाल कुशवाहा बताते हैं उन्हें शुरू में ट्रेड मार्क के बारे में कुछ नहीं पता था। यहां कहां से मिलता है, कैसे मिलता है आदि। बाद में इनके किसी जानने वाले शख्स ने दिल्ली के एक वकील का फोन नंबर दिया। फिर ट्रेड मार्क लेने की प्रक्रिया शुरू हुई। लेकिन तब तक चंपारण मटन जगह-जगह फैल गया था।

Champaran Meat

गोपाल कुमार कुशवाहा कई तरह के मसाले भी बनाते हैं।

एक घटना और छोड़ दी रेलवे की नौकरी

गोपाल कुशवाहा पहले रेलवे में जॉब करते थे। वह टीटीई के साथ थे। एक बार उन्होंने देखा कि टीटीई एक यात्री से गलत तरीके से पेश आ रहे थे। उन्होंने टीटीई से कहा कि वह कुछ रहम दिखाएं, लेकिन टीटीई ने उनकी एक न सुनी और उल्टा उन्हें ही डांटने लगे। इससे आहत होकर उन्होंने रेलवे की नौकरी छोड़ दी और 2013 में केटरिंग का काम शुरू कर दिया।

…और बदल गई किस्मत

गोपाल कुशवाहा बिहार-नेपाल बॉर्डर के पास स्थित मोतिहारी में हांडी में मटन बनता हुआ देख चुके थे। ऐसे में उन्होंने इसमें कुछ प्रयोग किए और देसी तरीके से खुद हांडी में मटन बनाना शुरू कर दिया और इसका नाम दिया अहुना मटन। अहुना का मतलब है मिट्टी का बर्तन। इसे अब हांडी मटन के नाम से भी जानते हैं। वह कैटरिंग में इसे बनाते थे। लोगों को इस तरीके से मटन के बारे में बहुत ज्यादा पता नहीं था। इस दौरान एक शादी का ऑर्डर आया। शादी में करीब 500 मेहमान आने थे। इस शादी में गोपाल कुशवाहा को अहुना मटन बनाने का भी ऑर्डर मिला। इसके बाद इनकी गाड़ी चल निकली और बहुना मटन बिहार से निकलकर दूसरे राज्यों में फैल गया। गोपाल कुशवाहा के चंपारण मीट नाम से आउटलेट्स देश के कई हिस्सों में हैं। इसमें बिहार के पटना और समस्तीपुर के अलावा बनारस, नोएडा, चंडीगढ़ आदि शहर शामिल हैं।

मसाले की भी खुशबू फैलाई

गोपाल कुशवाहा BMH नाम से मसाले भी बेचते हैं। इनमें किचन मसाला, मटन मसाला, अहुना हांडी मटन मसाला, गरम मसाला, पनीर मसाला आदि शामिल हैं। गोपाल बताते हैं कि अगर आप अहुना मटन बना रहे हैं तो इस मसाले के अलावा किसी और मसाले की जरूरत नहीं पड़ती। बस हांडी या किसी दूसरे बर्तन में ऑइल डालें और फिर उसमें जिंजर-गार्लिक का पेस्ट डालना होगा। इनके मसाले में से मिर्च और हल्दी समेत दूसरे मसाले मौजूद हैं। यह मसाला फ्लिपकार्ट और अमेजन पर ही मौजूद है।

20 हजार रुपये से 1 करोड़ तक का सफर

ओल्ड चंपारण मीट हाउस की शुरुआत गोपाल कुशवाहा ने करीब 20-25 हजार रुपये में की थी। उस समय उनके साथ करीब 3-4 लोग ही थे। साल 2016 में इन्होंने कंपनी बनाई और ब्रांड रजिस्टर कराया। साथ ही ट्रेड मार्क के लिए अप्लाई किया जो बाद में उन्हें मिल गया। आज इनकी टीम में 10 से 15 लोग हैं और सालाना टर्नओवर करीब एक करोड़ रुपये है।

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