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भारतीय संस्कृति को लील रही रील संस्कृति


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भारतीय संस्कृति को लील रही रील संस्कृति

भारतीय संस्कृति को लील रही रील संस्कृति

राजेंद्र शर्मा झेरलीवाला पिलानी, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक

सोशल मीडिया एक संभ्रांत लोगों का एक ऐसा मंच था जिस पर किसी भी विषय को लेकर तार्किक बहस की जा सकती थी । लेकिन अब यह देखा जा रहा है कि यह मंच भी फूहड़ता की मिसाल कायम करने की तरफ बढ़ गया है । रील संस्कृति ने भारतीय सभ्यता और परम्पराओं को इस कदर दफन कर दिया है जिसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल हो गया है । किसी भी देश की प्रगति में युवा पीढ़ी का विशेष योगदान रहता है या यह कहे कि युवा पीढ़ी देश की रीढ़ होती है । युवा पीढ़ी अपने संस्कारों से विमुख होकर इस रील संस्कृति में इतनी लीन हो गई है कि उसको खुद ही नहीं पता कि संस्कृतिक पतन की कितनी कितनी गहरी खाई में लुढ़क गई है । आखिर यह फूहड़ता का नंगा नाच सोशल मीडिया पर दिखाकर किस टेलेंट का प्रदर्शन कर रहे हैं यह समझ से परे है । इस रील बनाने के चक्कर में बहुत से युवा अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं । इस रील संस्कृति को हमारे सनातनी मूल्यों में गिरावट की पराकाष्ठा कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । इसी के साथ सोशल मीडिया पर एक और नया दौर देखने को मिल रहा है । कामेडी के जरिये खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं । लेकिन जिस कामेडी को देखकर हंसी नाभि से उठकर होंठों तक आये वहीं कामेडी सार्थक होती है । कामेडी होने के साथ ही उसमें एक ऐसा संदेश भी होना चाहिए जो समाज व युवा वर्ग को सही दिशा प्रदान करें । लेकिन जो कामेडी हो रही है उससे तो युवा वर्ग शराब के नशे की तरफ भागेगा क्योंकि हर कामेडियन खुद को किंग साबित कर केवल शराब के ठेके पर से शराब लेना या शराब का सेवन करते हुए कामेडी की रील बनाकर सोशल मीडिया पर परोस रहा है ।

किसी भी समाज को सही दिशा देने में साहित्य का बड़ा योगदान रहता है । अच्छा साहित्य अपने संदेश के माध्यम से युवाओं में नया जोश भरने के साथ ही उसे सामाजिक सरोकार व मर्यादाओ से रूबरू करवाता है । साहित्य की आड़ में फूहड़ता परोसते यह रीलवीर हमारे सभ्य समाज को इतना नुक्सान पहुंचा चुके हैं जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया है । इस रील संस्कृति ने समाज में दुराचार व अपराध बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए ।

सोशल मिडिया पर रील संस्कृति के माध्यम से परोसी जा रही फूहड़ता को लेकर सरकार का संचार मंत्रालय भी आंख मूंदकर बैठा हुआ है । सरकार को युवा पीढ़ी को गर्त में धकेल रही इस रील संस्कृति पर तुरंत प्रतिबंध लगाने की ठोस कार्रवाई करें जिससे सनातन संस्कृति के उच्चतम मूल्यों को जिवित रखा जा सके ।

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