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मणिपुर : अपने समुदाय के दंगाइयों से खतरा, बचने के लिए पोस्टर:इम्फाल अब भी जल रहा; राशन खत्म, पेट्रोल 200 रु. लीटर


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मणिपुर : अपने समुदाय के दंगाइयों से खतरा, बचने के लिए पोस्टर:इम्फाल अब भी जल रहा; राशन खत्म, पेट्रोल 200 रु. लीटर

अपने समुदाय के दंगाइयों से खतरा, बचने के लिए पोस्टर:इम्फाल अब भी जल रहा; राशन खत्म, पेट्रोल 200 रु. लीटर

मणिपुर : मणिपुर की राजधानी इम्फाल का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘यम’ यानी सुंदर और ‘फाल’ यानी घर। इम्फाल ऐसी घाटी है, जहां बहुत सुंदर घर हैं, लेकिन 6 मई को जब हम इम्फाल पहुंचे, तो सड़कों पर सन्नाटा था। एयरपोर्ट से सिर्फ 200 मीटर दूर जली हुई गाड़ियों का ढेर नजर आया। मैतेई दंगाइयों की भीड़ से बचने के लिए खुद मैतेई लोग ही घरों पर पोस्टर लगा रहे हैं।

वर्ल्ड चैंपियन रहीं बॉक्सर मैरी कॉम ने 4 मई को ट्वीट किया, ‘मेरा राज्य मणिपुर जल रहा है, मदद करें।’ मैरी कॉम सही थीं, इम्फाल हमारे सामने था और वो जल रहा था। ट्रेनें बंद थीं, सड़क पर सामान, टायर बिखरे हुए थे, जिनमें आग लगाई गई थी। सख्त कर्फ्यू था, सिर्फ सेना के जवान सड़कों पर फ्लैग मार्च कर रहे थे। दुनिया भर में मशहूर इमा कैथल मार्केट भी सूना पड़ा है। ये मार्केट मणिपुरी महिलाएं चलाती हैं।

मैतेई समुदाय को रिजर्वेशन देने के मसले पर मैतेई और नगा-कुकी समुदायों के बीच हिंसा हो रही है। 3 मई को चुराचांदपुर जिले में हुई एक रैली के बाद ये हिंसा भड़की। अब तक 23 हजार लोगों को रेस्क्यू किया गया है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक 52 लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन सरकार ने कोई आंकड़ा जारी नहीं किया है।

मणिपुर में हिंसा वाले इलाकों में असम राइफल्स और सेंट्रल फोर्स की तैनाती की गई है। सुरक्षाबलों के जवान दंगाइयों से निपटने के साथ ही फंसे लोगों को भी रिलीफ कैंप तक पहुंचा रहे हैं।

​​​​​​इम्फाल घाटी में कुकी और पहाड़ी इलाकों में मैतेई निशाने पर
इम्फाल मैतेई बहुल है, कुकी समुदाय यहां अल्पसंख्यक हैं। इम्फाल में चुन-चुनकर कुकी समुदाय के घरों को टारगेट किया जा रहा है। पहाड़ी इलाकों में कुकी और नगा समुदाय रहते हैं और मैतेई अल्पसंख्यक हैं। यहां मैतेई लोगों के घरों पर हमला किया जा रहा है। इम्फाल में आयकर अधिकारी लेमिनथांग हाओकिप को घर से खींचकर उनकी हत्या कर दी गई। IRS एसोसिएशन ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी है। वे कुकी समुदाय के बताए जा रहे हैं।

इससे पहले चुराचांदपुर जिले में मैतेई समुदाय से आने वाले CRPF के कोबरा कमांडो की ऐसे ही हत्या कर दी गई थी। वे छुट्टी पर आए थे। उन्हें घर से निकाला और गोली मार दी।

फोटो इम्फाल की है, जहां 'ट्राइबल सॉलिडेरिटी मार्च' के बाद 4 मई को हिंसा भड़क गई थी। भीड़ ने दुकानों और कारों में आग लगा दी।
फोटो इम्फाल की है, जहां ‘ट्राइबल सॉलिडेरिटी मार्च’ के बाद 4 मई को हिंसा भड़क गई थी। भीड़ ने दुकानों और कारों में आग लगा दी।

लौटते हैं इम्फाल की सड़कों पर…
दुकानें बंद हैं, घरों में सन्नाटा है, सड़कों पर आर्मी और सुरक्षाबलों की गाड़ियों के सायरन गूंज रहे हैं। एयरपोर्ट से आगे बढ़े तो कई सारे जले हुए घर नजर आने लगते हैं। गाड़ी रोककर पूछा कि यहां के घर क्यों जले? तो दबी आवाज में जवाब मिला- ‘कुकी लोग का कुछ-कुछ घर है इधर’।

44 साल के सुभाष शर्मा इम्फाल के सुपरमार्केट इलाके में रहते हैं। उनके घर के आस-पास भारी आगजनी हुई है। सुभाष जिस इलाके में रहते हैं, वहां मैतेई और कुकी दोनों समुदाय के लोग रहते हैं। सुभाष खुद मैतेई समुदाय से हैं। उन्हें डर रहता है कि हिंसक भीड़ हमला ना कर दे।

डर सिर्फ दूसरे समुदाय की हिंसक भीड़ से नहीं, बल्कि मैतेई समुदाय के दंगाइयों से भी है। इसलिए उनके मोहल्ले में लोगों ने घरों के बाहर ‘मैतेई हाउस’ और ‘मैतेई शॉप’ के पोस्टर चिपका दिए हैं।

फोटो इम्फाल के सुपरमार्केट इलाके की है, यहां घरों और दुकानों पर लिखा है कि ये मैतेई समुदाय के लोगों की प्रॉपर्टी है।

सुभाष बताते हैं, ‘हिंसा की शुरुआत पहाड़ी इलाके से हुई। चुराचांदपुर में 3 मई को बवाल हुआ। इसके बाद फेसबुक, वॉट्सऐप पर वीडियो-फोटो आने लगे। हिंसा की तस्वीरें देखकर शहर में रहने वाले मैतेई भी भड़क गए। लड़ाई-झगड़े, आगजनी और लूटपाट शुरू हो गई। केंद्र और राज्य सरकार को ये मामला जल्द सुलझाना चाहिए, नहीं तो बवाल चलता रहेगा।’

इम्फाल शहर के बीच बना रिलीफ कैंप
इम्फाल शहर में ज्यादातर कुकी समुदाय वाली बस्तियों पर हमला हुआ है। हमले के बाद इस समुदाय के लोगों ने घर छोड़ना शुरू कर दिया है। इम्फाल महिला थाना के पास हम जिस बस्ती में पहुंचे, वहां से कुकी समुदाय के लोग घर छोड़कर जा चुके हैं।

स्थानीय लोगों ने बताया कि वो सरकार के बनाए रिलीफ कैंप में चले गए हैं। कई जगह सेना और सुरक्षाबल के जवान कुकी लोगों को सुरक्षित ठिकानों पर ले जा रहे हैं। इम्फाल शहर के बीच बने रिलीफ कैंप में करीब 15 हजार लोग हैं।

मणिपुर रायफल्स की छावनी फर्स्ट एमआर में भी रिलीफ कैंप बना है। हमने इस कैंप में जाकर लोगों से बात करने की कोशिश की, तो गेट पर तैनात जवानों ने अंदर नहीं जाने दिया।

5 दिन बाद भी हिंसा जारी, हमारे सामने ही घर जला दिए
NIT मणिपुर के रास्ते होते हुए हम हॉस्पिटल की तरफ बढ़ रहे थे। करीब आधा किलोमीटर दूर घरों से धुआं उठता दिखा। गाड़ी का ड्राइवर मैतेई समुदाय से था और जिस इलाके से धुंआ उठ रहा था, वहां कुकी आबादी रहती है। वो जाने से डर रहा था, तभी हमें बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) का एक दस्ता उसी तरफ जाता दिखा।

हमने अपनी गाड़ी BSF के दस्ते के बीच ले ली। मौके पर पहुंचे तो BSF जवानों ने हालात काबू में कर लिए थे। जहां घर जल रहे थे, वहां करीब जाना खतरे से खाली नहीं था। BSF के अधिकारी ने नाम न लिखने की शर्त पर बताया, ‘हमें खबर मिली कि इस इलाके में आगजनी शुरू हुई है। 3-4 घरों को जलाकर लूटपाट की गई है।’

इम्फाल में बस्तियों में अब भी आगजनी और लूटपाट की घटनाएं हो रही हैं। BSF के एक अफसर के मुताबिक, शहर के अलग-अलग इलाकों से इस तरह की खबरें आ रही हैं।
इम्फाल में बस्तियों में अब भी आगजनी और लूटपाट की घटनाएं हो रही हैं। BSF के एक अफसर के मुताबिक, शहर के अलग-अलग इलाकों से इस तरह की खबरें आ रही हैं।

मणिपुर के तीन प्रमुख अस्पतालों से पता चला है कि अब तक 52 लोगों की डेडबॉडी आई हैं। मणिपुर के DGP पी डाउंजेल ने बताया, ‘सुरक्षा कारणों से हम कोई आंकड़ा जारी करने से बच रहे हैं। हालात में सुधार हो रहा है। हिंसा के दौरान कई जगहों पर दंगाई भीड़ ने मणिपुर पुलिस के हथियार भी छीने हैं। हम अपील करते हैं कि लोग पुलिस के हथियार वापस कर दें। अगर लोग चाहते हैं कि पुलिस जाकर किसी ठिकाने से ये हथियार ले ले, तो हम वो भी करने को तैयार हैं।’

राशन और तेल खत्म, पेट्रोल पंप पर लंबी कतारें
पेट्रोल पंप पहुंचे तो हमें बाइक और कार की लंबी कतारें नजर आईं, लोग घंटों से पेट्रोल मिलने का इंतजार कर रहे थे। हमें एयरपोर्ट से होटल छोड़ने वाले ड्राइवर ने बताया कि ब्लैक में पेट्रोल 200 रुपए लीटर तक मिल रहा है।

उधर मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने 6 मई यानी शनिवार को सभी दलों की बैठक के बाद कहा- ‘राज्य में ‘कानून-व्यवस्था’ की स्थिति सुधर रही है। राज्य सरकार और विवाद से जुड़े सभी पक्षों के बीच बातचीत ठीक रही है। चुराचांदपुर और इम्फाल में हालात काबू में हैं। यहां आंशिक तौर पर कर्फ्यू हटाया जाएगा।

इससे पहले मणिपुर सरकार के सुरक्षा अधिकारी कुलदीप सिंह ने कहा था, ‘राज्य में आर्टिकल-355 (आपातकाल लागू करने का अधिकार देने वाला कानून) लागू नहीं किया गया है। कुछ लोगों ने इसका भ्रम फैलाया है, उन पर कार्रवाई की जाएगी।’

हिंसा कैसे शुरू हुई…
ये हिंसा 3 मई को बॉर्डर के पास पड़ने वाले जिले बिष्णुपुर और चुराचांदपुर से भड़की। चुराचांदपुर में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर नाम के संगठन ने ‘ट्राइबल सॉलिडेरिटी मार्च’ निकाला था। कुकी और नगा समुदाय के ये छात्र मैतेई समुदाय को जनजातीय यानी एसटी स्टेटस देने के फैसले का विरोध कर रहे थे।

हालांकि ये पूरा सच नहीं है, मैतेई और कुकी नगा समुदायों के बीच ये तनाव फरवरी में शुरू हुआ था। राज्य सरकार ने जब संरक्षित इलाकों से अतिक्रमण हटाना शुरू किया, तभी ये समुदाय आमने-सामने आ गए।

पहला हिंसक प्रदर्शन 10 मार्च को हुआ था, जब कुकी बहुल गांव से अवैध प्रवासियों को निकाला गया था। तीन मई को मणिपुर हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह 10 साल पुरानी सिफारिश को लागू करे, जिसमें गैर-जनजाति मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने की बात कही गई थी।

कुकी-नगा और अन्य ट्राइबल्स विरोध में क्यों..
कुकी-नगा और अन्य जनजातियों का मानना है कि मैतेई का मणिपुर की राजनीति और दूसरे पावर सेंटर्स में दबदबा है। ये पढ़ने-लिखने के साथ संपत्ति के मामले में भी आगे हैं। अगर मैतेई को भी जनजाति यानी एसटी का दर्जा मिल गया, तो ट्राइबल्स हाशिए पर चले जाएंगे। सरकारी नौकरियों में उनकी हिस्सेदारी पहले से ही कम है।

एसटी का दर्जा मिलते ही मैतेई पहाड़ों पर जमीन खरीद सकेंगे, वे आर्थिक रूप से मजबूत हैं, ऐसे में वहां के संसाधनों पर उनका कब्जा हो जाएगा। ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर के मुताबिक मैतेई समुदाय की भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है। इन्हें पहले ही अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति और इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन यानी EWS जैसे रिजर्वेशन का फायदा मिलता है। इन्हें ST समुदाय में शामिल करना सिर्फ पॉलिटिक्स है।

मैतेई समुदाय क्या कह रहा…
मैतेई ट्राइब यूनियन की याचिका पर ही मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को 19 अप्रैल को केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की 10 साल पुरानी सिफारिश फिर से पेश करने के लिए कहा था। इस सिफारिश में मैतेई को एसटी का दर्जा देने की बात है। शेड्यूल ट्राइब डिमांड कमेटी ऑफ मणिपुर ने ये सिफारिश साल 2012 में की थी।

मैतेई ट्राइब यूनियन ने कोर्ट से कहा है कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ, उससे पहले इस समुदाय को एसटी का दर्जा मिला हुआ था। इसके अलावा पूर्वजों की जमीन, परंपरा, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए ये दर्जा दिया जाना जरूरी है। उनके पास सिर्फ इम्फाल वैली में जमीन खरीदने का अधिकार है और ये पूरे मणिपुर का सिर्फ 10% हिस्सा है, ये अन्याय है।

मैतेई और कुकी-नगा की बहस के बीच फैक्ट्स क्या हैं…
मणिपुर के ठीक बीच में इम्फाल वैली है, चारों तरफ पहाड़ हैं। ये इम्फाल वैली मणिपुर का 10% हिस्सा है। यहां मैतेई बहुसंख्यक हैं और वे सिर्फ इसी इलाके में जमीन खरीद सकते हैं। हालांकि मणिपुर की कुल आबादी में मैतेई की हिस्सेदारी 53% से भी ज्यादा है।

मणिपुर के कुल 60 विधायकों में 40 मैतेई समुदाय से हैं। मणिपुर के 90% पहाड़ी इलाके में राज्य की 41% जनसंख्या रहती है, जो कि कुकी और नगा जैसी जनजातियां हैं, लेकिन इन जनजातियों से 20 विधायक ही विधानसभा में हैं। मणिपुर में जिन 33 समुदायों को जनजाति का दर्जा मिला है, वे नगा और कुकी हैं। ये दोनों जनजातियां ईसाई हैं।

क्या सीएम की ड्रग्स के खिलाफ जंग बनी वजह
मैतेई समुदाय और सरकार के समर्थकों का आरोप है कि सीएम नोंगथोंबन बीरेन सिंह ने जब से ड्रग्स के खिलाफ अभियान चलाया है, तभी से उनके विरोध के लिए जनजातियों को भड़काया जा रहा है। मैतेई मानते हैं कि कुकी म्यांमार से आए लोगों की एक जनजाति है, इसे म्यांमार में कुकी-जोमी जनजाति कहा जाता है। अभी भी लगातार म्यांमार से अवैध प्रवासी आकर कुकी गांवों में बस रहे हैं।

म्यांमार से आए अवैध प्रवासी अफीम की खेती करते हैं और CM के अभियान से उन्हें नुकसान हो रहा है। अफीम की खेती बंद न हो, इसलिए ही मैतेई समुदाय को पहाड़ों से दूर रखना है।

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