कोचिंग संस्थानों और डमी स्कूलों पर अंकुश लगाने के लिए महत्वपूर्ण सुझाव
शिक्षा में प्रामाणिकता बढ़ाने के लिए ऐतिहासिक पहल, निसा ने प्रतिनिधि मंडल ने उच्च शिक्षा सचिव के समक्ष रखे अपने विचार

झुंझुनूं : देश में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता को सुदृढ़ करने और छात्रों की कोचिंग संस्थानों पर बढ़ती निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल्स अलायन्स (निसा) के प्रतिनिधि मंडल ने बुधवार को दिल्ली में उच्च शिक्षा सचिव विनीत जोशी एवं संयुक्त सचिव रीना सोनोवाल कौली से मुलाकात कर अपने विचार और सुझाव प्रस्तुत किए। जिसमें कोचिंग संस्थानों पर छात्रों की निर्भरता को कम करना एवं छात्रों को कोचिंग की अनुमति केवल 12वीं कक्षा के बाद ही दिए जाने, जिससे विद्यालयी शिक्षा को प्राथमिकता मिले पर बल दिया गया। केंद्र सरकार द्वारा जनवरी 2024 में कोचिंग संस्थानों पर नियंत्रण के लिए जारी की गई गाइडलाइन को सख्त केंद्रीय कानून में बदल कर पूरे देश में कड़ाई से लागू करने, 16 वर्ष तक कोचिंगों पर प्रतिबंध को 18 वर्ष अर्थात कक्षा 12 तक कोचिंग प्रतिबंधित किए जाने, बोर्ड परीक्षाओं की महत्ता को बढ़ाने के लिए कक्षा मेडिकल वो इंजीनियरिंग तथा अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों में 10वीं और 12वीं के अंकों को मिलाकर कम से कम 50 प्रतिशत वेटेज देने का सुझाव प्रतिनिधि मंडल द्वारा दिया गया। डमी स्कूलों की बढ़ती प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए किसी भी प्रवेश परीक्षा में आवेदन के समय बोर्ड की मूल मार्कशीट, प्रमाण पत्र और पूर्ण परिणाम प्रस्तुत करना अनिवार्य हो। वर्तमान में दिए जा रहे 20 प्रतिशत आंतरिक मूल्यांकन और 30 प्रतिशत प्रेक्टिकल अंकों को समाप्त करने की सिफारिश की गई। जिससे स्कूल मूल्यांकन की निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके।
स्कूल व प्रतियोगी परीक्षाओं के पाठ्यक्रम, परीक्षा एवं मूल्यांकन प्रणाली में एकरूपता लाने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा गया कि स्कूल बोर्ड और प्रवेश परीक्षा के स्तर को अधिकतम समान बनाया जाए। प्रतियोगी परीक्षाओं पर कोचिंग संस्थानों के प्रभाव को कम करने के लिए नियमित व प्रभावी निरीक्षण और नियमों का कठोर पालन सुनिश्चित करने की आवश्यकता जताई गई। सभी विद्यालयों और कोचिंग संस्थानों में जियो टैगिंग तथा विद्यार्थी की अपार आईडी के साथ फेस रीडिंग युक्त बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली वो लीगल फ्रेमवर्क को अनिवार्य करने, विज्ञापन एवं प्रचार सामग्री में पूर्ण पारदर्शिता अनिवार्य की जाए, कोचिंग के किसी भी व प्रत्येक केंद्र से सिलेक्ट होने वाले छात्रों की कुल संख्या के साथ प्रविष्ट होने वाले कुल छात्रों की संख्या अलग अलग और उनका रेश्यो अनिवार्यतः स्पष्ट लिखा जाय। अन्य केंद्रों के सिलेक्शन नहीं दिखाए जाएं, ताकि छात्रों और अभिभावकों को भ्रमित करने वाली जानकारियों पर अंकुश लगे साथ ही छात्रों को मेडिकल एवं इंजीनियरिंग ही नहीं बल्कि स्वतंत्र रूप से अन्य कोई भी करियर चुनने की आजादी हो और उन्हें समग्र विकास की दिशा में मार्गदर्शन दिया जाए। इस दिशा में स्कूलों में प्रभावी करियर काउंसलिंग लागू की जाए।
डॉ. मोदी समेत निसा के प्रतिनिधियों ने कहा – एनईपी हो रही प्रभावित
निसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा, राजस्थान प्रांतीय प्रभारी डॉ. दिलीप मोदी, पंजाब से अनिरुद्ध गुप्ता और निसा इनिशिएटिव के उपाध्यक्ष डॉ. सुशील गुप्ता ने शिक्षा सचिव को अवगत करवाया कि इस मीटिंग इनका मुख्य उद्देश्य कोचिंग संस्थानों के बढ़ते प्रभाव को कम करना और स्कूलों को शिक्षा के मुख्य केंद्र के रूप में फिर से स्थापित करना है। उन्होंने बताया कि इन विशेषज्ञों का मानना है कि ‘डमी स्कूल’ और कोचिंग संस्थान छात्रों पर अनावश्यक दबाव डालते हैं और एनईपी 2020 तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को प्रभावित करते हैं। इन संस्थानों के कारण छात्र केवल रटने और रैंक लाने की होड़ में फंस जाते हैं जिसका शिक्षा से कोई लेना देना नहीं होता है, जिससे उनका समग्र विकास रुक जाता है। उन्होंने कहा कि इस समस्या का समाधान सिर्फ़ स्कूलों की भूमिका को सशक्त करके ही किया जा सकता है।
निसा द्वारा दिए गए कई सुझाव
निसा द्वारा समिति को प्रस्तुत किए गए सुझावों में यह भी शामिल है कि स्कूलों को शिक्षा का ऐसा केंद्र बनाया जाए। जहां छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान, नैतिक मूल्य, और जीवन कौशल सिखाए जाए। इसके लिए पाठ्यक्रम में बदलाव, मूल्यांकन प्रणाली को अधिक पारदर्शी बनाने, और शिक्षण विधियों को बेहतर करने जैसे कदम उठाने पर ज़ोर दिया गया। इन विशेषज्ञों का मानना है कि अगर स्कूल अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को फिर से हासिल कर लें, तो छात्रों को कोचिंग पर निर्भर रहने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और वे सिर्फ़ परीक्षा की तैयारी तक सीमित न रहकर वास्तविक और जीवन-उपयोगी शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे। इन दूरगामी सुझावों को शिक्षा के क्षेत्र में एक सकारात्मक और क्रांतिकारी बदलाव लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
शिक्षा सचिव से मिलना एक बदलाव की शुरूआत – डॉ. मोदी
निसा के प्रांतीय प्रभरी डॉ. दिलीप मोदी ने बताया की इस प्रतिनिधि मंडल का शिक्षा सचिव से मिलना एक बदलाव की शुरुआत है। क्योंकि शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ़ नौकरी पाना नहीं, बल्कि एक व्यापक सोच और दृष्टिकोण विकसित करना है। एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था ज़रूरी है जो छात्रों को आत्मनिर्भर, चिंतनशील और समाज के प्रति ज़िम्मेदार नागरिक बनाए। इसी दिशा में, हम ऐसे सुधार कर रहे हैं जो छात्रों और पूरी शिक्षा व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन सुधारों का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि छात्र केवल परीक्षा की तैयारी तक सीमित न रहें, बल्कि वे वास्तविक ज्ञान, नैतिक मूल्यों और जीवन के जरूरी कौशल भी सीखें। हम चाहते हैं कि स्कूल शिक्षा का मुख्य केंद्र बनें, और कोचिंग की संस्कृति पर लगाम लगे ताकि छात्रों पर मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक दबाव कम हो। मूल्यांकन प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो निष्पक्ष, पारदर्शी और सबके लिए समान अवसर वाली हो, जहां हर छात्र की मेहनत और योग्यता को पहचान मिले। छात्रों को अपने कॅरिअर का चुनाव करने में मार्गदर्शन और आज़ादी मिले, ताकि वे अपने सपनों को पूरा कर सकें। शिक्षा सिर्फ़ किताबी ज्ञान न होकर, व्यावहारिक अनुभवों और सामाजिक जागरूकता का मेल हो। अब समय आ गया है कि हम शिक्षा को फिर से परिभाषित करें एक ऐसी शिक्षा जो प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ चरित्र निर्माण, रचनात्मकता और नवाचार को भी बढ़ावा दे।
जानिए निसा के बारे में
इंडिपेंडेंट स्कूल्स अलायंस (निसा) एक ऐसा मंच है जो देश भर के स्कूलों को एक साथ लाता है। ताकि उन्हें उन कानूनों और उप-नियमों के बारे में अपनी चिंताओं को दूर करने और स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए एक एकीकृत आवाज़ दी जा सके। आज, निसा 20 राज्य संघों के 36 हजार 400 से ज़्यादा स्कूलों का प्रतिनिधित्व करता है, जो प्रति स्कूल औसतन लगभग 250 बच्चों की दर से लगभग 9.35 मिलियन बच्चों की ज़रूरतों को पूरा करते हैं। स्कूल के साथ-साथ व्यवस्थागत स्तर पर बदलाव लाने के लिए प्रयासरत है साथ ही एक मज़बूत मंच बनाने, स्कूलों के बारे में जागरूकता पैदा करने, नीतिगत बदलाव लाने और स्कूल की गुणवत्ता में सुधार लाने पर केंद्रित है।