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चित्रकार शाकिर अली की अनकही कहानी:सरकार रेड कारपेट पर सम्मान देती है, सरकारी कारिंदे कहते हैं- पद्मश्री क्या होता है? रामदेवरा में पुलिस ने डेढ़ घंटे तक खड़ा रखा


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चित्रकार शाकिर अली की अनकही कहानी:सरकार रेड कारपेट पर सम्मान देती है, सरकारी कारिंदे कहते हैं- पद्मश्री क्या होता है? रामदेवरा में पुलिस ने डेढ़ घंटे तक खड़ा रखा

चित्रकार शाकिर अली की अनकही कहानी:सरकार रेड कारपेट पर सम्मान देती है, सरकारी कारिंदे कहते हैं- पद्मश्री क्या होता है? रामदेवरा में पुलिस ने डेढ़ घंटे तक खड़ा रखा

जयपुर : मेरी कहानी में कालबेलिया परिवेश के घाघरे से भी ज्यादा कलियों वाले घेर-घुमेर है। लटकन-झालर से भी ज्यादा सजावटी सम्मान है। सुखद अहसास होता है, जब अब तक की अपनी जीवन यात्रा को याद करती हूं, किसी के साथ साझा करती हूं… मगर एक टीस भी है, जो मुझे बेचैन रखती है।

सरकारी कारिंदों को हमारी उपलब्धियों का पता ही नहीं है! सरकार राष्ट्रपति भवन के रेड कारपेट पर बुलाकर हमें पद्म सम्मान देती है, लेकिन उसकेे बाद भूल जाती है। सरकार के ही कारिंदे सम्मान पत्रक को परे रख सार्वजनिक रूप से अपमान तक कर देते हैं। यहां तक कह देते हैं कि ‘पद्मश्री’ क्या होता है, हमें नहीं पता। अपना पहचान-पत्र और पद्म सम्मान के दस्तावेज दिखाने के बाद भी हमसे औसत व्यवहार किया जाता है। जिन राष्ट्रपति के हाथों सम्मान मिला, उन्हीं से मिलने के लिए समय मांगा तो जवाब तक नहीं मिला।

कुछ दिन पहले ही रामदेवरा मंदिर गई थी। वहां तैनात पुलिसकर्मी ने मुझे बाहर रोक लिया। एक घंटे तक खड़ा रखा। बेटे ने कहा कि ये पद्मश्री गुलाबो हैं, आप जानते तो होंगे? पुलिसवाले का जवाब था- तो मैं क्या करूं, क्या होता है पद्मश्री मैं नहीं जानता। मैंने उसे टोकन दिखाया, पद्मश्री का सम्मान पत्रक दिखाया, मगर वो नहीं माना। मैं लाइन में खड़ी रही… तभी मंदिर प्रशासन ने मुझे देखा, अपने साथ मंदिर में ले गए। …ऐसा लगा कि हम सरकारी पत्रक योग्य सम्मानित हैं, सार्वजनिक सम्मान लायक सेलिब्रिटी नहीं!

अपनी जीवन यात्रा बताती हूं- मेरा जन्म 9 नवंबर 1970 (धनतेरस) को अजमेर की कोटडा ढाणी कालबेलिया बस्ती में हुआ। हमारे समाज की दकियानूसी रिवाजों के चलते मुझे जिंदा जमीन में गाड़ दिया था। मां को पता लगा तो उसने विरोध किया। पिताजी घर पर नहीं थे। मां ने अपनी बहन की मदद से मुझे जमीन से निकाल लिया, मैं जिंदा थी। धन्वन्तरि नाम मिला। पिता ने गुलाब कहा।

हरियाणा में गुलाबो सपेरा बनी। 1981 में पुष्कर मेले में पर्यटन विभाग की अधिकारी तृप्ति पांडे ने मौका दिया। 1985 में मुझे अमेरिका जाने वाले दल में रखा। मेरी उम्र बढ़ी दिखाकर पासपोर्ट बना। उड़ान से एक दिन पहले पिता चल बसे, फिर भी मां ने मुझे भेजा। अमेरिका में परफॉर्मेंस के बाद वहीं रहने का ऑफर मिला। मैंने कहा- मुझे भारत में ही रहना है। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मुझे राखी बांधकर बहन कहा। पद्मश्री सम्मान देते वक्त तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने कहा था- भारत को आप पर गर्व है गुलाबो…

जन्म लेते ही मुझे समाज ने जमीन में गाड़ दिया था। मां को होश आया तो अपना बच्चा ढूंढ़ा, फिर मौसी की मदद से जमीन खोदकर मुझे वापस निकाला। ईश्वर की कृपा से मैं जिंदा हूं। बचपन में फुटपाथों पर सांपों के साथ नाची, हाथ फैलाकर लोगों से सिक्के मांगे। 11 साल की उम्र में पुष्कर मेले में पहली बार मंच मिला, फिर विदेशों तक कालबेलिया नृत्य को पहचान दिलाई। भारत सरकार ने पद्मश्री से नवाजा। जिस समाज ने अभिशाप समझ कर मुझे दफना दिया था, आज उसे ही मुझ पर अभिमान है…

1985 में क्वीन एलीजाबेथ द्वारा गोल्ड मैडल, 2016 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री, 2017 में महाराणा मेवाड़ अवार्ड और 2021 में भारत गौरव अवार्ड

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