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सबसे मुश्किल रेस्क्यू ऑपरेशन या सबसे बड़ी लापरवाही?:NDRF चीफ गिना रहे चुनौतियां, हकीकत- ऑपरेशन में देरी, 15 से 150 फीट गहराई में पहुंच गई चेतना


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सबसे मुश्किल रेस्क्यू ऑपरेशन या सबसे बड़ी लापरवाही?:NDRF चीफ गिना रहे चुनौतियां, हकीकत- ऑपरेशन में देरी, 15 से 150 फीट गहराई में पहुंच गई चेतना

सबसे मुश्किल रेस्क्यू ऑपरेशन या सबसे बड़ी लापरवाही?:NDRF चीफ गिना रहे चुनौतियां, हकीकत- ऑपरेशन में देरी, 15 से 150 फीट गहराई में पहुंच गई चेतना

कोटपूतली : राजस्थान का कोटपूतली। 3 साल की चेतना। 700 फीट गहरा बोरवेल। रेस्क्यू ऑपरेशन के 8 दिन। जिला कलेक्टर कल्पना अग्रवाल इसे राजस्थान का सबसे मुश्किल रेस्क्यू ऑपरेशन बता रही हैं।

हमारे मीडिया कर्मी ने रेस्क्यू ऑपरेशन को लीड कर रहे राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) के राजस्थान चीफ योगेश मीणा से बात की। समझने की कोशिश की कि आखिर क्यों ये राजस्थान का अब तक का सबसे मुश्किल रेस्क्यू ऑपरेशन बन गया? क्या-क्या चुनौतियां सामने आईं?

साथ ही वो लापरवाही भी टटोली, जिसके साथ चेतना मौत के मुंह में पहुंच गई। सबसे बड़ी लापरवाही थी- रेस्क्यू ऑपरेशन में देरी। शुरुआत में चेतना 15 फीट की गहराई पर थी। खिसकते-खिसकते वो 150 फीट गहराई तक चली गई।

पढ़िए पूरी रिपोर्ट..

पहली चुनौती : 100 की बजाय 165-170 फीट तक गहराई

एनडीआरएफ के राजस्थान चीफ योगेश मीणा बताते हैं- इस ऑपरेशन में सबसे पहली दिक्कत तो गहराई की रही। पिछले 4-5 साल में या इससे पहले भी जो रेस्क्यू ऑपरेशन हुए हैं वो सब 40 से लेकर 100 फीट तक की गहराई वाले रहे। इस ऑपरेशन में ये गहराई 165 से 170 फीट रही। इसे ऐसे समझ सकते हैं, जैसे जमीन के नीचे उल्टी करीब 16-17 मंजिल।

इसके बाद सारा ऑपरेशन सिर्फ 8 इंच के एक होल में। इसी में कैमरा और सभी इक्विपमेंट्स भी डालने थे। इस रेस्क्यू के दौरान तो हमने एक बार तीन रॉड अंदर डाली थी और एक रॉड में 17X4 मतलब करीब 68 किलो वजन होता है, इसका मतलब तीनो रॉड को मिलाकर 196 किलो वजन अंदर था। इसके अलावा इस 8 इंच के हॉल में ऑक्सीजन पाइप और कैमरा भी लटका हुआ था।

अब अगर इन इक्विपमेंट में कोई भी आपस में उलझ जाए तो इतनी गहराई पर उसे सुलझा नहीं सकते। उसके लिए उन्हें ऊपर खींचना पड़ता है और दोबारा कोशिश करनी पड़ती है।

दूसरी चुनौती : गीली और कमजोर मिट्‌टी

इस केस में सबसे अलग ये था कि यहां हम सूखे बोरवेल या केसिंग पाइप वाले बोरवेल से रेस्क्यू नहीं कर रहे थे। जिस दिन चेतना अंदर गिरी थी, उसी दिन बोरवेल से पाइप बाहर निकाले गए थे। ऐसे में अंदर मिट्टी गीली और लूज थी। इस बीच नीचे गहराई पर डाली गई रॉड पर ऊपर से मैन्युअली कमांड दिया जा रहा था।

जो सबसे पहले बच्ची का वीडियो आया था, उसमे सिर्फ 4 अंगुलियां और एक गैप टाइप का हिस्सा दिख रहा था। कहीं भी उसकी बॉडी नजर नहीं आई थी। बच्ची बोरवेल में गिरते वक्त अटक-अटक के अंदर पहुंची थी।

हम जब यहां पहुंचे तो बच्ची के दादा से बात की। उन्होंने यहीं बताया गया था कि वो सबसे पहले महज 15 फीट गहराई में ही अटकी हुई थी। रेस्क्यू में जैसे ही रस्सी अंदर डाली और बच्ची ने हाथ ऊपर किए तो वो फिसलते हुए और नीचे चली गई।

फोटो शनिवार सुबह की है। मशीनों के जरिए जवानों को नीचे भेजा गया था।
फोटो शनिवार सुबह की है। मशीनों के जरिए जवानों को नीचे भेजा गया था।

तीसरी चुनौती : मिट्‌टी में नजर नहीं आ रही थी बच्ची

बच्ची गीली मिट्टी के साथ रगड़ खाती हुई नीचे गई थी। सूखी मिट्टी होती तो और नीचे चली जाती लेकिन गीली मिट्टी होने से वो बच्ची से चिपक गई। इसके साथ ही बच्ची ने सर्दी के कपडे़ पहन रखे थे। उससे बच्ची का बॉडी वेट लगातार बढ़ता गया। रेस्क्यू के दौरान एक बार तो ये हालात हो गए कि अंदर भेजा गया एल रॉड पर इतना प्रेशर पड़ा कि वो J शेप में बन गया।

इसके अलावा मिट्टी में बॉडी नहीं दिखने से उसे लॉक करने में भी परेशानी हो रही थी। शुरू से जो भी एजेंसी रेस्क्यू कर रही थी, उसके साथ ही मिट्टी अंदर एड होते जा रही थी।

किसी भी प्लान को एग्जीक्यूशन पर लाने के लिए रेस्क्यू टीम के कमांड को रेस्पॉन्ड की जरूरत भी पड़ती है। यहां बच्ची पहले से ही मिट्टी में दबी हुई थी तो वो रेस्पॉन्ड भी नहीं कर रही थी।

चौथी चुनौती : पत्थर के कारण काटने में दिक्कत

पाइलिंग मशीन हार्डली 4-5 घंटे में 175 फीट तक काट देती है, लकिन यहां बहुत ज्यादा टाइम लगा क्योंकि नीचे पत्थर आ गया था। पहले जब पाइलिंग मशीन काटकर ऊपर ला रही थी तो हमें लगा कि कच्चा पत्थर है। बाद में पता चला कि 150 फीट के नीचे मजबूत पत्थर है।

इसमें भी जो पहली पाइलिंग मशीन थी वो 150 फीट कैपेसिटी वाली थी। जब तक उसने काम किया तब तक 171 फीट कैपेसिटी वाली पाइलिंग मशीन भी आ गई थी। हमने उसे भी मैक्सिमम कैपेसिटी तक यूज कर लिया, लेकिन अब भी 175 फीट तक नहीं पहुंच पाए थे।

बारिश की वजह से कई बार रेस्क्यू ऑपरेशन रोकना पड़ा।
बारिश की वजह से कई बार रेस्क्यू ऑपरेशन रोकना पड़ा।

पांचवीं चुनौती : डेढ़ दिन तक बारिश बनी बाधा

डेढ़ दिन बारिश ने भी नुकसान किया। हम केसिंग (पाइप) की वेल्डिंग नहीं कर पाए। वेल्डिंग हुई तो वो केसिंग पूरी नीचे तक नहीं गई। अधर में लटकी हुई केसिंग में हम रेस्क्यू टीम को कैसे उतार सकते थे?

ऐसे में दुबारा वेल्डिंग की गई। इस प्रोसेस में काफी टाइम लगा। इसके बाद भी केसिंग हैंगिंग पोजिशन में ही थी। इस कंडीशन में रेस्क्यू टीम के लिए काफी चैलेंज था। इसके बावजूद रिस्क लेते हुए काम शुरू किया गया तो पत्थर आ गया। जगह बदल-बदल कर देखा तो वहां भी पत्थर था। अगर पत्थर नहीं होता तो इसके बाद जो 8-10 फीट की खुदाई थी, उसमें ज्यादा से ज्यादा 8 घंटे लगने थे।

छठी चुनौती : कमजोर बोरवेल की मिट्‌टी ढहने का डर

बोलना बहुत आसान है। पहले दिन यहां एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें कुछ लोग कह रहे थे कि हम तो गेंती-फावड़े और कुदाली से ही 150 फीट खोद देते। अगर हम ब्लास्टिंग करते तो एक घंटे में ही इस पत्थर को तोड़ देते, लेकिन ये बच्ची के लिए खतरनाक हो सकता था। वो नीचे जा सकती है और उसे चोट भी लग सकती है। हमें तो ये सब एक संकरी सुरंग में मैनुअली ही करना है।

ये बोरवेल कमजाेर था तो पाइलिंग मशीन के वाइब्रेशन से अंदर और मिट्टी ढहने का भी डर था। यहां जब पाइलिंग स्टार्ट करवाई तो उसे बोरवेल से करीब 8 फीट दूरी पर करवाया गया था। अगर यहां पर मिट्टी की ये कंडीशन नहीं होती तो अमूमन इसे 4 फीट पर ही करवाया जाता। नुकसान को देखते हुए कैलकुलेटिव रिस्क ही ली गई थी।

अगर कोई स्ट्रिक्ट डिसीजन होना है भी तो ये सब प्रशासन या सरकार को ही लेना होता है।

अब पढ़िए रेस्क्यू ऑपरेशन में सामने आई लापरवाहियां

पहली लापरवाही : रेस्क्यू टीम के आने से पहले किए प्रयास ने बढ़ाई दी दिक्कतें

कोटपूतली के किरतपुरा के बड़ियाली की ढाणी की चेतना सोमवार (23 दिसंबर) को 700 फीट गहरे बोरवेल में गिर गई थी। चेतना बोरवेल में गिरी तब वो महज 15 फीट पर अटकी हुई थी। परिजनों ने जोखिम को अनदेखा कर बोरवेल में रस्सी डालकर अपने लेवल पर ही उसे बाहर निकालने का प्रयास किया।आशंका है हाथ ऊपर करने से बोरवेल की दीवारों और चेतना के बीच गैप बन गया। इससे वो फिसल कर करीब 80 फीट गहराई तक चली गई।

दूसरी लापरवाही : रेस्क्यू ऑपरेशन स्टार्ट होने में हुई देरी

दोपहर 2 बजे स्थानीय प्रशासन को हादसे की जानकारी मिल गई थी। बावजूद इसके आधे घंटे बाद एसडीआरएफ-एनडीआरएफ को बुलाने का कॉल लिया गया। पौने 3 घंटे बाद यानी 5.15 बजे के करीब एसडीआरएफ की टीम मौके पर पहुंची। तब तक मासूम फिसलकर तकरीबन 150 फीट की गहराई तक पहुंच गई थी। सूचना मिलते ही रेस्क्यू टीमें (SDRF और NDRF) 2 घंटे के भीतर पहुंच जाती तो शायद 80 फीट पर ही चेतना को होल्ड किया जा सकता था।

तीसरी लापरवाही : प्लान ‘ए’ और प्लान ‘बी’ एक साथ इम्प्लीमेंट नहीं किया

जिस बोरवेल में चेतना खेलते समय गिरी थी, उसमे से पाइप पहले ही बाहर निकाल लिए गए थे। अंदर नमी होने से और मिट्टी चिकनी होने से ये आशंका पहले से ही थी कि देसी जुगाड़ से रेस्क्यू सफल होने के चांस बेहद कम हैं। मौके पर मौजूद इंसिडेंट कमांडर (एडीएम व एसडीएम) दूसरे प्लान पर काम ही शुरू नहीं कर पाए। तत्काल ही पाइलिंग मशीन से काम शुरू हो जाता तो रेस्क्यू ऑपरेशन में हुई देरी को टाला जा सकता था।

चौथी लापरवाही : चमत्कार के भरोसे बैठे रहे अधिकारी, नहीं ले पाए सही डिसीजन

पूरे रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान टीमों और इंसिडेंट कमांडर का हायर लेवल कॉर्डिनेशन खराब रहा। दो दिन तक तो जिला कलेक्टर मौके पर नहीं पहुंची। एक्सपर्ट ने बताया कि 24 दिसंबर को हादसा होने के तुरंत बाद ही पाइलिंग मशीन मंगवाने का निर्णय लेना चाहिए था। एडीएम-एसडीएम ने इस पर गंभीरता से विचार नहीं किया। लंबे टाइम तक देसी जुगाड़ के भरोसे किसी चमत्कार की आस में बैठे रहे।

चेतना की मां हाथ जोड़कर प्रशासन से गुहार लगा रही हैं कि उनकी बेटी को किसी भी तरह बचा ले।
चेतना की मां हाथ जोड़कर प्रशासन से गुहार लगा रही हैं कि उनकी बेटी को किसी भी तरह बचा ले।

अब देखिए रेस्क्यू से जुड़े PHOTOS…

सोमवार रात से गिर रहीओस के कारण रेस्क्यू टीमों के लिए लगाए गए टेंट पर पानी जमा हो गया है। कड़ाके की सर्दी भी मेंबर्स के लिए चुनौती बनी हुई है।
सोमवार रात से गिर रहीओस के कारण रेस्क्यू टीमों के लिए लगाए गए टेंट पर पानी जमा हो गया है। कड़ाके की सर्दी भी मेंबर्स के लिए चुनौती बनी हुई है।
देर रात जयपुर ग्रामीण सांसद राव राजेंद्र सिंह ने एनडीआरएफ इंचार्ज योगेश मीणा से रेस्क्यू ऑपरेशन की स्टेट्स रिपोर्ट ली।
देर रात जयपुर ग्रामीण सांसद राव राजेंद्र सिंह ने एनडीआरएफ इंचार्ज योगेश मीणा से रेस्क्यू ऑपरेशन की स्टेट्स रिपोर्ट ली।
कलेक्टर कल्पना अग्रवाल और एसडीएम मुकुट सिंह ने चेतना के परिजनों को बोरवेल के पास बुलाकर बातचीत की।
कलेक्टर कल्पना अग्रवाल और एसडीएम मुकुट सिंह ने चेतना के परिजनों को बोरवेल के पास बुलाकर बातचीत की।
सोमवार देर शाम इंजीनियर्स की एक टीम ने लेजर अलाइनमेंट डिवाइस से भी सुरंग में एंगल जांच की।
सोमवार देर शाम इंजीनियर्स की एक टीम ने लेजर अलाइनमेंट डिवाइस से भी सुरंग में एंगल जांच की।
शनिवार रात करीब 8 बजे तक एनडीआरएफ के खोदे गए बोरवेल के समानांतर सुरंग में पाइपों के वेल्डिंग का काम हुआ।
शनिवार रात करीब 8 बजे तक एनडीआरएफ के खोदे गए बोरवेल के समानांतर सुरंग में पाइपों के वेल्डिंग का काम हुआ।
गुरुवार और शुक्रवार को बार-बार बारिश की वजह से कई बार रेस्क्यू ऑपरेशन रोकना पड़ा।
गुरुवार और शुक्रवार को बार-बार बारिश की वजह से कई बार रेस्क्यू ऑपरेशन रोकना पड़ा।
घटना के दूसरे दिन, 24 दिसंबर रात 11:30 बजे बोरवेल के समानांतर गड्ढा खोदने का काम शुरू हुआ। 3 दिनों में 171 फीट लंबी सुरंग खोदी गई।
घटना के दूसरे दिन, 24 दिसंबर रात 11:30 बजे बोरवेल के समानांतर गड्ढा खोदने का काम शुरू हुआ। 3 दिनों में 171 फीट लंबी सुरंग खोदी गई।
बच्ची की मां धोली देवी ने सीएम से चेतना को बचाने की मार्मिक अपील की थी। इस समय धोली देवी का स्वास्थ्य काफी खराब है। वो चेतना का नाम लेते हुए अक्सर बेसुध हो जाती है।
बच्ची की मां धोली देवी ने सीएम से चेतना को बचाने की मार्मिक अपील की थी। इस समय धोली देवी का स्वास्थ्य काफी खराब है। वो चेतना का नाम लेते हुए अक्सर बेसुध हो जाती है।
23 दिसंबर (सोमवार) रात करीब 7 बजे चेतना का आखिरी बार वीडियो सामने आया था। इसमें वो हाथ हिलाते हुए दिख रही थी।
23 दिसंबर (सोमवार) रात करीब 7 बजे चेतना का आखिरी बार वीडियो सामने आया था। इसमें वो हाथ हिलाते हुए दिख रही थी।
घटना के करीब तीन घंटे बाद एसडीआरएफ टीम ने मौके पर पहुंच कर बच्ची का रेस्क्यू शुरू कर दिया था।
घटना के करीब तीन घंटे बाद एसडीआरएफ टीम ने मौके पर पहुंच कर बच्ची का रेस्क्यू शुरू कर दिया था।
23 दिसंबर, दोपहर 1:50 बजे चेतना चेतना घर के बाहर खोदे गए 700 फीट गहरे बोरवेल में गिर गई थी।
23 दिसंबर, दोपहर 1:50 बजे चेतना चेतना घर के बाहर खोदे गए 700 फीट गहरे बोरवेल में गिर गई थी।
एनडीआरएफ टीम जवानों के सुरंग में लेट कर चट्टान ड्रिल करना पड़ रहा है। अंदर डस्ट उड़ने की वजह से टीम को सांस लेने में परेशानी आ रही है।
एनडीआरएफ टीम जवानों के सुरंग में लेट कर चट्टान ड्रिल करना पड़ रहा है। अंदर डस्ट उड़ने की वजह से टीम को सांस लेने में परेशानी आ रही है।

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