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विरासत दिवस पर विशेष: खेतड़ी में बताया था वेदों का महत्व


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विरासत दिवस पर विशेष: खेतड़ी में बताया था वेदों का महत्व

वेदों पर साठ मिनट प्रवचन देेकर विवेकानंद लौट गए, लेकिन श्रोता डटे रहे, स्वामी दुबारा आए, तीस मिनट फिर बोले

झुंझुनूं : शिकागो में सनातन धर्म की पताका पहराकर स्वामी विवेकानंद खेतड़ी में आए थे। आज से करीब 127 साल पहले 12 दिसंबर 1897 को खेतड़ी में उन्होंने ‘वैदिक धर्म’ पर व्यायान दिया था। वे करीब साठ मिनट तक वैदिक धर्म पर प्रवचन देते रहे। वहां की जनता इसे पूरे तन मन से सुनती रही। इसके बाद स्वामीजी अपने निवास पर लौट गए। लेकिन श्रोता वहीं रहे। उनको वेदों के प्रवचन में इतनी रुचि रही कि एक भी श्रोता वहां से उठकर नहीं गया। इसकी जानकारी स्वामी विवेकानंद को हुई तो वे फिर प्रवचन स्थल पर आए। करीब तीस मिनट तक फिर प्रवचन दिए। ऐसे में उन्होंने करीब 90 मिनट तक वेदों व धर्म का महत्व बताया।

खेतड़ी का सुखमहल जहां, प्रवचन दिए

अत्यंत प्राचीन व सरल भाषा में थे

खेतड़ी के सुखमहल में स्वामी विवेकानंद ने कहा कि वेद ज्ञान के भंडार हैं। इन विचारों का धीरे-धीरे विकास हुआ, फिर अन्तत: उन्हें ग्रन्थ का रूप दे दिया गया और वह ग्रन्थ प्रमाण बन गए। ग्रन्थों का प्रभाव भी असीम प्रतीत होता है। हिन्दुओं के ग्रन्थ वेद हैं । उन्हें नए सिरे से दृढ़ चट्टान की नींव पर स्थापित करना होगा। वेदों का साहित्य विशाल है। ये वेद अत्यंत प्राचीन तथा अति सरल भाषा में लिखे गए थे। स्वामी विवेकानंद पर शोध कर रहे डा. जुल्फिकार ने बताया कि स्वामी विवेकानंद ने कर्मकांड तथा ज्ञानकांड की विस्तृत समीक्षा की। उन्होंने बताया कि स्वामी विवेकानंद यहीं तक बोलकर रुक गए और विश्राम करने चले गए। लेकिन श्रोता व्यायान को और सुनने के लिए धैर्यपूर्वक बैठे रहे।

प्रज्जवलित किए थे देसी घी के दीपक

स्वामी विवेकानंद एक ऐसे महापुरुष थे जिनके उच्च विचारों, आध्यात्मिक ज्ञान, सांस्कृतिक अनुभव से हर कोई प्रभावित हैं। स्वामी विवेकानंद शिकागो से वापस खेतड़ी आए तो तत्कालीन राजा अजीत सिंह ने अपने सभासदों और खेतड़ी की जनता के साथ उनका पन्नासर तालाब पर भव्य स्वागत किया। खेतड़ी को दुल्हन की तरह सजाया गया। पूरे खेतड़ी कस्बे को 14 मण देसी घी के दीपकों से रोशन कर जश्न मनाया गया। इसी श्रद्धा भक्ति से ओत – प्रोत होकर स्वामी विवेकानंद खेतड़ी में (1891, 1893 व 1897 ) में तीन बार आए। तीनों यात्राओं के दौरान खेतड़ी में 109 दिन प्रवास पर रहे और खेतड़ी को अपना दूसरा घर कहा। नाम भी खेतड़ी में ही बदलकर विवेकानंद रखा गया था।

एकत्व की खोज करना ही ज्ञान का ध्येय

स्वामी विवेकानंद फिर से आए और उन्होंने करीब आधा घंटा और प्रवचन दिए। उन्होंने बताया कि बहुत्व के भीतर एकत्व की खोज करना ही ज्ञान का ध्येय है। जब कोई विज्ञान सभी प्रकार की विविधताओं में स्थित एकमात्र वस्तु की जानकारी पा लेता है, तो उसी को उस विज्ञान का चरम उत्कर्ष माना जाता है। स्वामीजी ने अपने व्यायान के अन्त में राजा के उत्तम चरित्र का उल्लेख भी किया

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