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वकील के होंठ काटने का मामला, लोअर-कोर्ट का फैसला निरस्त:चूरू कोर्ट परिसर की डेढ़ साल पुरानी घटना, हाईकोर्ट ने संज्ञान रद्द किया


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वकील के होंठ काटने का मामला, लोअर-कोर्ट का फैसला निरस्त:चूरू कोर्ट परिसर की डेढ़ साल पुरानी घटना, हाईकोर्ट ने संज्ञान रद्द किया

वकील के होंठ काटने का मामला, लोअर-कोर्ट का फैसला निरस्त:चूरू कोर्ट परिसर की डेढ़ साल पुरानी घटना, हाईकोर्ट ने संज्ञान रद्द किया

जोधपुर : राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर ने चूरू के कोर्ट परिसर में एक व्यक्ति द्वारा वकील के होंठ काट खाने के मामले में आरोपित महिमन जोशी को राहत देते हुए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट चूरू के उस आदेश को आंशिक निरस्त कर दिया, जिसमें बीएनएस की धारा 117(3) के तहत संज्ञान लिया गया था। जस्टिस योगेंद्र कुमार पुरोहित की एकल पीठ ने अपने रिपोर्टेबल जजमेंट में अपर सेशन न्यायाधीश चूरू का आदेश भी निरस्त किया है।​

दरअसल, 10 जुलाई 2024 को चूरू के वकील सुशील कुमार शर्मा ने चुरू के कोतवाली थाने में शिकायत दर्ज करवाई। इसमें आरोप लगाया गया कि चूरू कोर्ट परिसर में चेंबर नंबर 11 के बाहर महिमन जोशी और उनके साथियों ने सुशील के पुत्र वकील आनंद कुमार शर्मा को घेर लिया और उनके साथ मारपीट की। इस मारपीट में महिमन जोशी ने आनंद के होंठ को दांत से काटकर अलग कर दिया।​

इस शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई। मेडिकल ज्यूरिस्ट डॉ. आशीष तिवाड़ी ने 13 दिसंबर 2024 को अपनी रिपोर्ट में आनंद कुमार शर्मा की चोट को ‘परमानेंट डिसफिगरेशन ऑफ फेस’ की श्रेणी में बताया, जिससे चोट ‘Grievous’ नेचर की है।​

पुलिस ने जांच के बाद 19 दिसंबर 2024 को चालान पेश किया। वहीं, परिवादी सुशील कुमार शर्मा की ओर से 2 जनवरी को अलग प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया।​

विवाद चार्जशीट से परे धारा में संज्ञान लेने पर

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट चूरू ने 25 फरवरी को बीएनएस की चार अलग-अलग धाराओं में संज्ञान लिया, जबकि पुलिस की चार्जशीट में धारा 117(3) शामिल नहीं थी। महिमन जोशी ने इसी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।​

शामिल की गई 117(3) एक गंभीर धारा है, जिसमें स्थाई दिव्यांगता (परमानेंट डिसेबिलिटी) या लगातार विकृतशील अवस्था (परसिस्टेंट वेजिटेटिव स्टेट) होना आवश्यक है। जबकि धारा 116(f) में चेहरे की स्थाई विकृति (परमानेंट डिसफिगरेशन ऑफ फेस) का उल्लेख है, जो कम गंभीर धारा है।​

तर्क: संज्ञान की स्टेज पर धारा जोड़ना या घटाना गलत

महिमन जोशी के वकील ने तर्क दिया कि पुलिस द्वारा चार्जशीट में वर्णित धाराओं को संज्ञान की स्टेज पर न तो कम किया जा सकता है और न ही जोड़ा जा सकता है। यह केवल आरोप तय करने की स्टेज पर ही किया जा सकता है।​

दूसरा आधार यह लिया गया कि मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार चोट ‘परमानेंट डिसफिगरेशन ऑफ फेस’ की श्रेणी में आती है, न कि ‘परमानेंट डिसेबिलिटी’ की। धारा 117(3) के लिए ‘परमानेंट डिसेबिलिटी’ या ‘ परसिस्टेंट वेजिटेटिव स्टेट’ होना जरूरी है, जिसके बारे में इस स्तर पर कोई मेडिकल साक्ष्य मौजूद नहीं है।​

प्रतिवादी पक्ष का तर्क: होंठ कटकर अलग हो गया

परिवादी की ओर से वकील ने तर्क दिया कि जब पीड़ित का होंठ कटकर अलग हो गया, तो यह स्पष्ट रूप से ‘परमानेंट डिसेबिलिटी’ की श्रेणी में आता है। उन्होंने कहा कि न्यायिक मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा पेश चालान के आधार पर पुलिस द्वारा वर्णित धाराओं के अलावा भी अन्य धाराएं संज्ञान की स्टेज पर जोड़ सकता है।​

हाईकोर्ट: मेडिकल रिपोर्ट में स्थिति स्पष्ट है

हाईकोर्ट ने विस्तृत विश्लेषण के बाद माना कि ‘परमानेंट डिसफिगरेशन’ और ‘परमानेंट डिसेबिलिटी’ को समान नहीं माना जा सकता। मेडिकल ज्यूरिस्ट ने स्पष्ट रूप से चोट को ‘परमानेंट डिसफिगरेशन ऑफ फेस’ बताया था, न कि स्थाई दिव्यांगता।​

कोर्ट ने यह भी पाया कि दौरान बहस स्वयं परिवादी के अधिवक्ता ने स्वीकार किया कि यह ‘परसिस्टेंट वेजिटेटिव स्टेट’ का मामला नहीं है। लोअर कोर्ट ने स्वयं अपने आदेश में माना था कि विशेषज्ञों की साक्ष्य लिए बिना इस चोट की प्रकृति का अंतिम रूप से निर्धारण नहीं किया जा सकता।​

हाईकोर्ट ने महिमन जोशी की याचिका स्वीकार करते हुए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट चूरू के 25 फरवरी के आदेश को धारा 117(3) बीएनएस के तहत संज्ञान लेने की हद तक निरस्त कर दिया। साथ ही अपर सेशन न्यायाधीश चूरू के 21 मई के आदेश को भी निरस्त कर दिया।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 117(3) के अलावा अन्य धाराओं के संबंध में विधि अनुसार कार्यवाही करने के लिए ट्रायल कोर्ट स्वतंत्र है। यानी, पुलिस की चार्जशीट में शामिल धाराओं में मुकदमा जारी रहेगा।

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