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‘मोदी का सीजेआई पर भरोसा नहीं’, CEC की नियुक्ति से जुड़े बिल पर भड़की AAP


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एक्सक्लूसिव रिपोर्टटॉप न्यूज़नई दिल्लीराज्य

‘मोदी का सीजेआई पर भरोसा नहीं’, CEC की नियुक्ति से जुड़े बिल पर भड़की AAP

मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति से जुड़े बिल पर आम आदमी पार्टी खफा है. राज्यसभा में पेश किए गए इस बिल के मुताबिक मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति करेगी. इस समिति में पीएम मोदी के अलावा, उनकी ओर से चुना गया एक मंत्री और नेता प्रतिपक्ष शामिल होंगे.

मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति से जुड़े बिल को गुरुवार को राज्यसभा में पेश किए जाने को लेकर आम आदमी पार्टी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. इस बिल में मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) के चयन बोर्ड से भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को हटाने का प्रावधान है.

इस चयन बोर्ड में सीजेआई की जगह प्रधानमंत्री मोदी की ओर से एक मंत्री को शामिल करने का प्रावधान है. यही वजह है कि आम आदमी पार्टी ने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए उसकी आलोचना की है. आम आदमी पार्टी का कहना है कि बीजेपी का अब सीजेआई पर कोई विश्वास नहीं रह गया है जिस वजह से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बिल लाकर पलट दिया गया है.

राज्यसभा में पेश किए गए इस बिल के मुताबिक मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति करेगी. इस समिति में पीएम मोदी के अलावा, उनकी ओर से चुना गया एक मंत्री और नेता प्रतिपक्ष शामिल होंगे.

केंद्र सरकार का सीजेआई पर भरोसा नहीं

आम आदमी पार्टी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने निष्पक्ष तरीके से चुनाव करवाने के उद्देश्य से आदेश दिया था कि सीईसी और ईसी का चुनाव स्वतंत्र चयन बोर्ड (Independent Selection Board) के जरिए होगा. इसमें प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और सीजेआई को शामिल किया जाना था लेकिन केंद्र सरकार ने बिल लाकर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलट दिया.

इस संबंध में आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और कैबिनेट मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा कि भारत के न्यायिक इतिहास में पहली बार देश के मुख्य न्यायाधीश में इस तरह का अविश्वास देखने को मिला है. ठीक इसी तरह सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला किया था कि राजधानी में पोस्टिंग और ट्रांसफर जैसे फैसले लेने का अधिकार दिल्ली सरकार का होगा लेकिन केंद्र सरकार ने उस फैसले को भी पलट दिया.

भारद्वाज ने कहा कि कुछ दिन पहले 11 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने कहा था कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार दिल्ली की बॉस होगी लेकिन इस फैसले के सिर्फ आठ दिन बाद केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश लाकर पलट दिया.

उन्होंने कहा कि बीते कुछ सालों से चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. चुनाव आयोग, केंद्र सरकार के इशारे पर काम करता है. चुनाव आयोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आखिरी रैली के खत्म होने का इंतजार करता है. उसके खत्म होते ही चुनाव की तारीखों का ऐलान होता है. यह सब बहुत खुल्लम-खुल्ला देखने को मिला है.

कैसे नियुक्त होते हैं चुनाव आयुक्त?

राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करते हैं. इनका कार्यकाल 6 साल या फिर 65 साल की उम्र तक होता है. मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों को सुप्रीम कोर्ट के जजों के बराबर ही सैलरी मिलती है. मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद में महाभियोग के जरिए ही पद से हटाया जा सकता है.

क्या है चुनाव आयोग का ढांचा?

  • चुनाव आयोग हमेशा से मल्टी-मेंबर बॉडी नहीं रही है. 1950 में जब चुनाव आयोग का गठन किया गया था, तब से 15 अक्टूबर 1989 तक इसमें सिर्फ मुख्य चुनाव आयुक्त ही हुआ करते थे.
  • 16 अक्टूबर 1989 से 1 जनवरी 1990 तक इसमें दो चुनाव आयुक्त के पद भी रहे. इस तरह इसमें तीन सदस्य हो गए. – 2 जनवरी 1990 से 30 सितंबर 1993 तक फिर इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त का ही पद रहा.
  • 1 अक्टूबर 1993 में कानून में फिर संशोधन किया गया और दो चुनाव आयुक्त के पद बनाए गए. तब से ही चुनाव आयोग में तीन सदस्य हैं.

चुनाव आयोग को लेकर विवाद

  • – 2021 में रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स और डेमोक्रेट्स ने राष्ट्रपति को एक पत्र लिखा था. इसमें उन्होंने लिखा था कि कैसे एक संस्था आज विश्वनीयता के संकट से जूझ रही है.
  • 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद चुनाव आयोग के कामकाज पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भी चुनाव आयोग पर सवाल उठे थे क्योंकि बगैर कोविड प्रोटोकॉल का पालन किए धड़ल्ले से चुनावी रैलियां हो रही थीं.
  • अप्रैल 2021 में मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजीब बनर्जी ने चुनाव आयोग पर सख्त टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा था, कोरोना की दूसरी लहर के लिए एकमात्र जिम्मेदार चुनाव आयोग है. हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि इसके लिए चुनाव आयोग पर मर्डर का केस चलाना चाहिए. मई 2019 में चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने मीटिंग में हिस्सा लेना भी बंद कर दिया था.

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