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राजस्थान में जातिगत सर्वे में पूछे जाएंगे 24 सवाल:चुनाव आचार संहिता से पहले शुरू करने की तैयारी, जानिए- सभी सवालों के जवाब


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राजस्थान में जातिगत सर्वे में पूछे जाएंगे 24 सवाल:चुनाव आचार संहिता से पहले शुरू करने की तैयारी, जानिए- सभी सवालों के जवाब

राजस्थान में जातिगत सर्वे में पूछे जाएंगे 24 सवाल:चुनाव आचार संहिता से पहले शुरू करने की तैयारी, जानिए- सभी सवालों के जवाब

जयपुर : मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान में जातिगत सर्वे की घोषणा कर दी है। सियासी गलियारों में इसे गहलोत के मास्टर स्ट्रोक के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन यह फैसला चुनाव आचार संहिता लगने से ठीक पहले किया गया है, इसलिए इसके लागू होने पर अभी चुनाव आयोग की तलवार लटकी हुई है। अब बड़ा सवाल यह है कि क्या आचार संहिता लगने से पहले सर्वे शुरू हो जाएगा? चुनाव आयोग इसे रोक देगा, इसकी कितनी संभावनाएं हैं? क्षेत्रफल के लिहाज से सबसे बड़े स्टेट में ये सर्वे कैसे होगा? इस सर्वे के पीछे सरकार की क्या मंशा है?

मंडे स्पेशल स्टोरी में पढ़िए- ऐसे ही सवालों के जवाब

जातिगत जनगणना या जातिगत सर्वे?
बिहार पहला राज्य है जहां की सरकार ने स्तर पर जातिगत सर्वे करवाया है और इसके आंकड़े भी सार्वजनिक कर दिए गए हैं। अब अगर राजस्थान में ये सर्वे पूरा होता है तो ऐसा करने वाला ये देश का दूसरा राज्य होगा। राजस्थान सरकार ने सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग और आयोजना विभाग को इसकी जिम्मेदारी दी है। इस संबंध में विभाग ने सभी जिला कलेक्टरों को निर्देश जारी कर दिए हैं।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का X पर पोस्ट।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का X पर पोस्ट।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कहना है कि चूंकि जातिगत जनगणना तो केंद्र सरकार ही कर सकती है, इसलिए उसे ही करना चाहिए। हम तो सर्वेक्षण करवा रहे हैं, जिसमें आर्थिक-सामाजिक आधार पर पिछड़े लोगों के वास्तविक जीवन की स्थिति का पता लग सकेगा।

राहुल गांधी ने पांच दिन पहले ही एक्स (पहले ट्विटर) पर पोस्ट कर जातिगत जनगणना को देश हित में बताया था। उसके बाद मुख्यमंत्री ने भी यह घोषणा करते हुए इसे ऐतिहासिक फैसला बताया है। जातिगत सर्वे का मुख्य लक्ष्य एससी, एसटी, अल्पसंख्यक और ओबीसी के लोगों की उस मांग को पूरा करना है, जिसमें लगातार यह कहा जा रहा है कि जिस जाति की जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी।

राहुल गांधी का X पर किया गया पोस्ट।
राहुल गांधी का X पर किया गया पोस्ट।

कौन करेगा सर्वे?
आयोजना विभाग को इसके लिए नोडल विभाग बनाया गया है। शनिवार देर रात को सरकारी अवकाश के दिन निर्देश जारी हुए हैं। अब सभी जिला कलेक्टरों को कहा गया है कि वे अपने जिले में कार्यरत सरकारी विभागों के कर्मचारियों को इस कार्य में लगाएं और जाति आधारित सर्वे को पूरा करें।

सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग के शासन सचिव डॉ. समित शर्मा ने मीडिया को बताया कि प्रदेश में जाति आधारित सर्वे के लिए सभी तैयारियां की जा रही हैं। संबंधित विभागों व कार्मिकों को भी दिशा निर्देश दे दिए गए हैं।

समित शर्मा ने बताया कि जिला कलेक्टरों को सर्वे के लिए निर्देशित किया है।
समित शर्मा ने बताया कि जिला कलेक्टरों को सर्वे के लिए निर्देशित किया है।

कैसे होगा इतना बड़ा सर्वे?

मुख्यमंत्री ये कहा है कि वे इस सर्वे में बिहार मॉडल अपना सकते हैं। इसलिए सर्वे में सरकारी कर्मचारियों की टीम ही काम करेगी। टीमों को घर-घर भेजकर गिनती करने सहित आर्थिक-सामाजिक आंकड़ों की जानकारी लोगों से लेनी होगी।

राज्य सरकार में उच्च स्तर पर यह भी विचार किया जा रहा है कि इस सर्वे को करने के लिए किसी सॉफ्टवेयर, मोबाइल ऐप या किसी अन्य तकनीक की भी क्या और कितनी मदद ली जाए। इसके लिए जल्द ही देश भर के तकनीकी संस्थानों से विशेषज्ञों से जानकारी ली जाएगी।

सर्वे में पूछे जाएंगे कौनसे सवाल?
बिहार में जाति सर्वे के लिए 24 सवालों का फॉर्मेट बनाया गया था। उसी तर्ज पर राजस्थान में भी सर्वे के दौरान इस तरह से सवाल पूछे जा सकते हैं। इन्हें ऐप या सॉफ्टवेयर के जरिए ऑनलाइन भरवाया जा सकता है…

  • नाम, आयु, पता और फिर जाति। जाति किस संवैधानिक वर्ग (एससी, एसटी, ओबीसी, एसबीसी आदि) में आती है ?
  • परिवार में सदस्यों की संख्या?
  • परिवार की आय का स्त्रोत। आय कितनी है। क्या इनकम टैक्स देते हैं?
  • क्या परिवार के पास स्वयं का मकान है। पशुधन है। खेत-दुकान, प्लॉट आदि है?
  • परिवार में कितने लोगों के पास सरकारी नौकरी है। कितने लोगों के पास प्राइवेट सेक्टर की नौकरी है। कितने लोग बेरोजगार हैं?
  • परिवार के प्रत्येक व्यक्ति की शैक्षणिक स्थिति क्या है ?
  • किन-किन सरकारी योजनाओं (केन्द्र व राज्य दोनों) में परिवार लाभान्वित है?
  • सरकार की किसी भी योजना से प्राप्त होने वाली आर्थिक सहायता कुल कितनी है ?
  • एक परिवार में कितने टीवी, मोबाइल, फ्रिज, एसी, कार, मोटरसाइकिल आदि हैं ?
  • क्या पिछड़ी जाति से संबंधित परिवार होने से किसी तरह के सामाजिक भेदभाव को अब भी सहन करना पड़ रहा है?
  • क्या पात्र होते हुए भी सरकार की किसी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है?
  • परिवार का नियमित भोजन खर्च कितना है?
  • बच्चों की शिक्षा सरकारी स्कूलों में हो रही है या निजी क्षेत्र के स्कूलों में?
  • क्या परिवार के बच्चों को मिड-डे मील योजना के तहत पौष्टिक भोजन मिल पाता है?
  • किसी परिवार के बिजली का बिल (औसतन) कितना रहता है?
  • क्या किसी परिवार में कभी भी कोई सरकारी नौकरी में रहा या नहीं?
  • परिवार में महिलाएं-लड़कियां कितनी हैं और उनकी शिक्षा, रोजगार की स्थिति क्या है?

राजस्थान सरकार पूरा सर्वे अपने खर्च पर करवाएगी
राजस्थान सरकार ने फैसला किया है कि जाति आधारित सर्वे का कार्य पूरी तरह से सरकार के संसाधनों और कार्मिकों के माध्यम से होगा। इसका समस्त आर्थिक व्यय भी सरकार ही वहन करेगी। इसमें किसी निजी संस्थान, गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) या लोगों को शामिल नहीं किया जाएगा।

सरकारी कर्मचारियों को इसके लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। राज्य सरकार के सूचना व प्रौद्योगिकी विभाग को कहा गया है कि वो इस सर्वे में आने वाले आंकड़ों व तथ्यों को ऑनलाइन फीड कराने के लिए किसी सॉफ्टवेयर या ऐप का प्रबंध करें।

बिहार में जाति सर्वे के लिए 24 सवालों का फॉर्मेट बनाया गया था।
बिहार में जाति सर्वे के लिए 24 सवालों का फॉर्मेट बनाया गया था।

बिहार में लगे थे करीब 9-10 महीने
बिहार में यह सर्वे जनवरी-2023 में शुरू हुआ और अक्टूबर में खत्म हुआ। सर्वे को लगभग 9-10 महीने लगे हैं। राजस्थान में जनसंख्या तो बिहार से काफी कम है, लेकिन क्षेत्रफल के हिसाब देश का सबसे बड़ा राज्य है। ऐसे में फिलहाल सरकार का यही अनुमान है कि करीब 6 से 8 महीने तक का समय जाति आधारित सर्वेक्षण कार्य को पूरा होने में लग सकता है।

बिहार कैबिनेट ने सर्वे करवाने के लिए करीब 500 करोड़ के बजट को मंजूरी दी थी। हालांकि राजस्थान के लिए कितना बजट लगेगा या कितना मंजूर होगा इसके बारे में अभी तक अधिकारिक तौर पर कोई जानकारी सामने नहीं आई है।

जाति आधारित सर्वे/जनगणना पर समर्थन या विरोध में बीजेपी?
देश भर में जाति आधारित सर्वे की बात कांग्रेस और विभिन्न विपक्षी दल उठा रहे हैं। सबसे पहले यह मांग करीब दो वर्ष पहले उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) ने की थी। इसके बाद से अब लगभग सभी विपक्षी दल इसकी मांग करने लगे हैं। राजस्थान में सरकार द्वारा जाति आधारित सर्वे की घोषणा करने के बावजूद अभी तक भाजपा की ओर से इसके पक्ष या विपक्ष में फिलहाल कोई रुख स्पष्ट नहीं किया गया है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जाति आधारित सर्वे को सामाजिक न्याय हेतू स्वर्णिम अध्याय बताया है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जाति आधारित सर्वे को सामाजिक न्याय हेतू स्वर्णिम अध्याय बताया है।

क्या आचार संहिता के दौरान हो सकेगा जातिगत सर्वे?
तकनीकी तौर पर देखा जाए तो जातिगत सर्वे को मंजूरी राज्य मंत्रिमंडल ने दी है। इसकी वित्तीय व प्रशासनिक मंजूरी भी चुनाव आचार संहिता से पहले (7 अक्टूबर-2023) को ही लागू हो गई है। सर्वे के आदेश भी जिला कलेक्टरों को 7 अक्टूबर को ही जारी कर दिए गए हैं। ऐसे में इसका कार्य चुनाव आचार संहिता से पहले शुरू हो गया है।

प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. प्रवीण कुमार गुप्ता ने बताया कि चुनाव आयोग आचार संहिता लगने के दौरान किए जाने वाले किसी भी सरकारी कार्य, घोषणा, बयान, आदेश आदि को अपने विवेकाधिकार में ले सकता है। आयोग को यदि लगे कि कोई कार्य चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है या किसी आदेश के जरिए मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित किया जा रहा है, तो वो उस पर रोक लगा सकता है।

राजस्थान सरकार ने 2 अगस्त को विधानसभा में संकल्प पारित किया था। इस संकल्प में केंद्र सरकार से जातिगत जनगणना करवाने की मांग रखी गई थी।
राजस्थान सरकार ने 2 अगस्त को विधानसभा में संकल्प पारित किया था। इस संकल्प में केंद्र सरकार से जातिगत जनगणना करवाने की मांग रखी गई थी।

क्या आचार संहिता लगने से पहले शुरू हो जाएगा सर्वे?
सीएम गहलोत ने शुक्रवार और शनिवार दो दिन विभिन्न उच्चाधिकारियों से इस विषय में विमर्श किया है। जाति आधारित सर्वे के कार्य को वित्तीय व प्रशासनिक मंजूरी हाथों-हाथ दी गई है, ताकि इसे चुनाव आचार संहिता से पहले जारी आदेश में गिना जाए। सरकार की मंशा है कि इस सर्वे कार्य को अगले एक-दो दिनों में ही कलेक्टरों के स्तर पर शुरू कर दिया जाए, ताकि चुनाव आचार संहिता लगने पर यह उसके नियमों के उल्लंघन की श्रेणी में नहीं आ सके। सोमवार को विभिन्न विभागों के बीच इस संबंध में एक महत्वपूर्ण बैठक भी होनी है।

कैसे डालेगा जाति आधारित सर्वे प्रदेश की राजनीति पर असर
2023 के चुनावी वर्ष में अब तक प्रदेश की राजधानी जयपुर में 10-12 जातियों के जातीय सम्मेलन हो चुके हैं। उन सम्मेलनों के आयोजकों द्वारा स्वयं के जाति समाज को सरकारी नौकरियों और राजनीतिक पदों (विधायक, सांसद आदि) में उनकी संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व नहीं मिलने का मुद्दा उठाया गया। अब तक जयपुर में एससी-एसटी, ओबीसी, ब्राह्मण, राजपूत, जाट, वैश्य, मुस्लिम, तेली, कुमावत, माली, जांगीड़, मीणा आदि जाति-समाजों के सम्मेलन हो चुके हैं।

प्रदेश में एससी, एसटी और ओबीसी की जनसंख्या लगभग 75-80 प्रतिशत तक हो सकती है, लेकिन जनसंख्या के अनुपात में सरकारी नौकरियों में आरक्षण और विधानसभा-संसद, पंचायत, नगर निकाय संस्थाओं की सीटें उस अनुपात में नहीं हैं। ऐसे में भविष्य में संबंधित जातियों के संगठन यह मांग खड़ी कर सकते हैं कि उन्हें उनकी संख्या के अनुपात में आरक्षण का लाभ दिया जाए। इसीलिए कांग्रेस पूरे देश में इस सर्वे पर समर्थन में है और यह भी जता रही है उनकी कोशिश से ये सर्वे हो रहे हैं।

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री ने 8 वर्ष पूर्व ही जातिगत आधारित सर्वे करवाया था, लेकिन इसकी रिपोर्ट कभी प्रकाशित नहीं हुई।
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री ने 8 वर्ष पूर्व ही जातिगत आधारित सर्वे करवाया था, लेकिन इसकी रिपोर्ट कभी प्रकाशित नहीं हुई।

क्या कभी किसी राज्य सरकार ने इस तरह की कोशिश की?
कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने 2014-15 में जाति आधारित जनगणना कराने का फैसला किया। इसे असंवैधानिक बताया गया तो नाम बदलकर ‘सामाजिक एवं आर्थिक’ सर्वे कर दिया। इस पर 150 करोड़ रुपए खर्च हुए।

2017 के अंत में कंठराज समिति ने रिपोर्ट सरकार को सौंपी। सर्वे की रिपोर्ट को सिद्धारमैया सरकार ने सार्वजनिक नहीं किया। इसके बाद आई सरकारों ने भी इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया।

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