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झुंझुनूं : रानी सती मंदिर झुंझुनूं मेला : झुंझुनू में बड़ी धूम-धाम से होगा मंगलपाठ


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झुंझुनूंधर्म/ज्योतिषराजस्थानराज्य

झुंझुनूं : रानी सती मंदिर झुंझुनूं मेला : झुंझुनू में बड़ी धूम-धाम से होगा मंगलपाठ

हर साल भादों मास की अमावस्या को राजस्थान के झुंझुनू में राणी सती मंदिर में उत्सव मनाया जाता है। यहां हर साल भादों अमावस्या को भव्य मंगलपाठ का आयोजन होता है। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस साल भी 15 सितंबर को यह उत्सव मनाया जाएगा, जिसकी तैयारियां जोरो शोरों से जारी है। राणी सती मंदिर में हर साल मनाया जाने वाला भादों उत्सव देशभर में प्रसिद्ध है।

झुंझुनूं : रानी सती मंदिर (रानी सती दीदी मंदिर) भारत के राजस्थान राज्य के झुंझुनू जिले के झुंझुनू में स्थित एक मंदिर है। यह भारत का सबसे बड़ा मंदिर है, जो एक राजस्थानी महिला रानी सती को समर्पित है, जो 13 वीं और 17 वीं शताब्दी के बीच में रहती थी और अपने पति की मृत्यु पर सती (आत्मदाह) करती थी। राजस्थान और अन्य जगहों पर विभिन्न मंदिर उनकी पूजा और उनके कार्य को मनाने के लिए समर्पित हैं। रानी सती को नारायणी देवी भी कहा जाता है और उन्हें दादीजी (दादी) कहा जाता है।

सफ़ेद संगमरमर से बने इस मंदिर में दीवारों पर रंगीन चित्रकारी और भित्तिचित्र हैं। यहां रानी सतीजी का एक चित्र है, जो बहुत सुंदर है और स्त्री के कौशल और उसकी ताकत का प्रतीक है। रानी सती मंदिर जिस परिसर में है, वहां पर और भी कई मंदिर हैं, जो भगवान शिव, भगवान गणेश, माता सीता और श्रीराम के परम भक्त हनुमान के हैं।हर साल भादों मास की अमावस्या को राजस्थान के झुंझुनू में राणी सती मंदिर में उत्सव मनाया जाता है। यहां हर साल भादों अमावस्या को भव्य मंगलपाठ का आयोजन होता है। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस साल भी 15 सितंबर को यह उत्सव मनाया जाएगा, जिसकी तैयारियां जोरो शोरों से जारी है। राणी सती मंदिर में हर साल मनाया जाने वाला भादों उत्सव देशभर में प्रसिद्ध है।

भक्तों द्वारा दादी की पोशाक व चुनरी एवं छप्पन भोग से आवरण किया जाएगा। इस दिन मंदिर में सुबह से विशेष पूजा की जाती है।जिसमें सभी भक्त अपने परिवार के साथ यहां पहुंचते हैं। पूरे विधि-विधान से दादी की पूजा-अर्चना कर उलका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

400 साल पुराना है मंदिर- रानी सती जी को समर्पित झुंझुनू का यह मंदिर 400 साल पुराना है। यह मंदिर सम्मान, ममता और स्त्री शक्ति का प्रतीक है। देश भर से भक्त रानी सती मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। भक्त यहां विशेष प्रार्थना करने के साथ ही भाद्रपद माह की अमावस्या पर आयोजित होने वाले धार्मिक अनुष्ठान में भी हिस्सा लेते हैं। रानी सती मंदिर के परिसर में कई और मंदिर हैं, जो शिवजी, गणेशजी, माता सीता और रामजी के परम भक्त हनुमान को समर्पित हैं। मंदिर परिसर में षोडश माता का सुंदर मंदिर है, जिसमें 16 देवियों की मूर्तियां लगी हैं। परिसर में सुंदर लक्ष्मीनारायण मंदिर भी बना है। राजस्थान के मारवाड़ी लोगों का दृढ़ विश्वास है कि रानी सतीजी, स्त्री शक्ति की प्रतीक और मां दुर्गा का अवतार थीं। उन्होंने अपने पति के हत्यारे को मार कर बदला लिया और फिर अपनी सती होने की इच्छा पूरी की। रानी सती मंदिर भारत के सबसे अमीर मंदिरों में से एक है। वैसे अब मंदिर का प्रबंधन सती प्रथा का विरोध करता है। मंदिर के गर्भगृह के बाहर बड़े अक्षरों में लिखा है. हम सती प्रथा का विरोध करते हैं।

रानी सती दादी मां की पौराणिक कथा 

महाभारत के समय से शुरू होती है जो अभिमन्यु और उनकी पत्नी उत्तरा से जुड़ी हुई है। महाभारत के भीषण युद्ध में कोरवो द्वारा रचित चक्रव्यूह को तोड़ते हुए जब अभिमन्यु की मृत्यु हुई, तो उत्तरा कौरवों द्वारा विश्वासघात में अभिमन्यु को अपनी जान गंवाते देख उत्तरा शोक में डूब गई और अभिमन्यु के सतह सती होने का निर्णय ले लिया। लेकिन उत्तरा गर्भ से थी और एक बच्चो को जन्म देने वाली थी। यह देखकर श्री कृष्ण ने उत्तरा से कहा कि वह अपना जीवन समाप्त करने के विचार को भूल जाए, क्योंकि यह उस महिला के धर्म के खिलाफ है जो अभी एक बच्चे को जन्म देने वाली है। श्री कृष्ण की यह बात सुनकर उत्तरा बहुत प्रभावित हुई और उन्होंने सती होने के अपने निर्णय को बदल लिया लेकिन उसके बदले उन्होंने ने एक इच्छा जाहिर जिसके अनुसार वह अगले जन्म में अभिमन्यु की पत्नी बनकर सती होना चाहती थी।

श्री कृष्ण ने दिया था वरदान –जैसा कि भगवान कृष्ण ने दिया था, अपने अगले जन्म में वह राजस्थान के डोकवा गांव में गुरसमल बिरमेवाल की बेटी के रूप में पैदा हुई थी और उसका नाम नारायणी रखा गया था। अभिमन्यु का जन्म हिसार में जलीराम जालान के पुत्र के रूप में हुआ था और उसका नाम तंदन जालान रखा गया था। तंदन और नारायणी ने शादी कर ली और शांतिपूर्ण जीवन जी रहे थे। उसके पास एक सुंदर घोड़ा था जिस पर हिसार के राजा का पुत्र काफी समय से देख रहा था। तंदन ने अपना कीमती घोड़ा राजा के बेटे को सौंपने से इनकार कर दिया।

राजा का बेटा तब घोड़े को जबरदस्ती हासिल करने का फैसला करता है और इस तरह तंदन को द्वंद्वयुद्ध के लिए चुनौती देता है। तंदन बहादुरी से लड़ाई लड़ता है और राजा के बेटे को मार डालता है। क्रोधित राजा इस प्रकार युद्ध में नारायणी के सामने तंदन को मार देता है। नारी वीरता और शक्ति की प्रतीक नारायणी, राजा से लड़ती है और उसे मार देती है। फिर उसने राणाजी (घोड़े की देखभाल करने वाले) को आदेश दिया कि वह अपने पति के दाह संस्कार के साथ-साथ उसे आग लगाने की तत्काल व्यवस्था करे।

राणाजी, अपने पति के साथ सती होने की इच्छा को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए, नारायणी द्वारा आशीर्वाद दिया जाता है कि उनका नाम लिया जाएगा और उनके नाम के साथ पूजा की जाएगी और तब से उन्हें रानी सती के नाम से जाना जाता है।

मंदिर के प्रति लोक मान्यता राजस्थान के स्थानीय लोगों का दृढ़ विश्वास है कि रानी सतीजी, स्त्री शक्ति की प्रतीक और मां दुर्गा का अवतार थीं। रानी सती मंदिर भारत के सबसे अमीर मंदिरों में से एक है। वैसे अब मंदिर का प्रबंधन सती प्रथा का विरोध करता है। इस मंदिर में किसी भी देवी देवता की कोई भी छवि या चित्र नहीं है। बस मंदिर के मुख्य कक्ष में रानी सती की एक तस्वीर लगी हुई है और बाकि मंदिर की सारी दीवारें रंग बिरंगे चित्रों से सजी हुई हैं। मंदिर परिसर में षोडश माता का सुंदर मंदिर है, जिसमें 16 देवियों की मूर्तियां लगी हैं। परिसर में सुंदर लक्ष्मीनारायण मंदिर भी बना है। मंदिर कई भित्ति चित्रों और अन्य चित्रों से भरा हुआ है जो उस जगह के इतिहास को बखूबी दर्शाते हैं। मंदिर परिसर के बिल्कुल केंद्र में शिव जी की एक बड़ी सी प्रतिमा स्थापित है जो चारों ओर बगीचे से घिरा हुआ है।

रानी सती जी की आरती

जय श्री रानी सती मैया, जय श्री रानी सती |
अपने भक्त जनों की दूर करने विपत्ति || जय
अवनि अनवर ज्योति अखंडित मंडित चहुँ कुकुमा |
दुर्जन दलन खंग की विद्युत् सम प्रतिभा || जय
मरकत मणि मन्दिर अति मंजुल शोभा लाख न परे |
ललित ध्वजा चहुँ और कंचन कलस धरे || जय
घंटा घनन घडावल बाजे शंख मृदंग धुरे |
किंनर गायन करते वेद ध्वनि उचरे || जय
सप्त मातृका करें आरती सुरगण ध्यान धरे |
विविध प्रकार के व्यंजन श्री भेंट धरे || जय
संकट विकट विडानि नाशनि हो कुमती |
सेवक जन हृदि पटले मृदुल करन सुमती || जय
अमल कमल दल लोचनि मोचनि त्रय तापा |
“शांति ” सुखी मैया तेरी शरण गही माता || जय
या मैया जी की आरती जो कोई नर गावे |
सदन सिद्धि नवनिधि फल मन वांछित पावें || जय

ऐसे पहुंचें रानी सती मंदिर- रानी संती मंदिर तक पहुंचने के लिए झुंझुनू बस स्टैंड से रानी सती मंदिर के लिए ऑटो रिक्शा लें। दूरी तीन किलोमीटर है। ऑटो रिक्शा वाले 10 रुपये किराया लेते हैं। रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी 2 किलोमीटर है। वहीं शहर के गांधी चौक से मंदिर की दूरी महज 1 किलोमीटर है। आप ऑटो रिजर्व करके भी मंदिर जा सकते हैं। अगर एक दिन रुकना है तो रानी सती मंदिर के स्वागत कक्ष पर आवास के लिए भी आग्रह कर सकते हैं।

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