राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस पर विशेष
सरल, सुलभ व त्वरित न्याय : उपभोक्ता का संवैधानिक अधिकार

आज का उपभोक्ता केवल वस्तु या सेवा का क्रेता नहीं, बल्कि अपने अधिकारों के प्रति जागरूक और सजग नागरिक भी है। बदलते समय के साथ जहाँ बाजार का विस्तार हुआ है, वहीं उपभोक्ताओं के शोषण की संभावनाएँ भी बढ़ी हैं। ऐसे परिदृश्य में उपभोक्ताओं को सरल, सुलभ और त्वरित न्याय उपलब्ध कराना लोकतांत्रिक व्यवस्था की अनिवार्य जिम्मेदारी बन जाती है।
इसी उद्देश्य को साकार करने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 लागू किया गया, जिसने उपभोक्ता अधिकारों को पहले से अधिक मजबूत, प्रभावी और व्यवहारिक बनाया है। इस अधिनियम की धारा 38(7) उपभोक्ता न्याय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण एवं दूरदर्शी प्रावधान है, जो शिकायतों के निस्तारण हेतु स्पष्ट समय-सीमा निर्धारित करती है।
इस प्रावधान के अनुसार, जिन मामलों में वस्तुओं के परीक्षण या विश्लेषण की आवश्यकता नहीं होती, उनमें विरोधी पक्ष को नोटिस प्राप्त होने की तिथि से तीन माह के भीतर शिकायत का निपटारा किए जाने का प्रयास किया जाना चाहिए। वहीं, जिन मामलों में परीक्षण या विश्लेषण आवश्यक हो, उनके लिए पाँच माह की समय-सीमा निर्धारित की गई है। यह व्यवस्था न्यायिक प्रक्रिया में अनावश्यक विलंब को रोकने तथा उपभोक्ताओं को शीघ्र राहत प्रदान करने की मंशा को स्पष्ट रूप से दर्शाती है।
राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के अवसर पर यह आवश्यक है कि हम आत्ममंथन करें कि उपभोक्ता न्याय प्रणाली कितनी प्रभावी है और इसका लाभ आम उपभोक्ता तक कितनी सहजता से पहुँच रहा है। आज भी अनेक उपभोक्ता अपने अधिकारों से अनभिज्ञ रहते हैं अथवा न्याय प्रक्रिया को जटिल व समयसाध्य मानकर शिकायत दर्ज कराने से हिचकिचाते हैं। ऐसे में धारा 38(7) जैसे प्रावधान उपभोक्ताओं का विश्वास सुदृढ़ करते हैं और यह संदेश देते हैं कि न्याय केवल अधिकार ही नहीं, बल्कि समयबद्ध अधिकार है।
सरल प्रक्रिया, न्यूनतम औपचारिकताएँ और निश्चित समय-सीमा-ये तीनों तत्व मिलकर उपभोक्ता न्याय को वास्तव में सुलभ बनाते हैं। ई-दाखिल पोर्टल, ऑनलाइन शिकायत प्रणाली और उपभोक्ता आयोगों की सक्रिय भूमिका ने इस दिशा में सकारात्मक परिवर्तन किए हैं। अब आवश्यकता इस बात की है कि उपभोक्ता स्वयं जागरूक बनें, अपने अधिकारों का उपयोग करें और अनुचित व्यापार प्रथाओं के विरुद्ध निर्भीक होकर आवाज उठाएँ।
राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि एक जागरूक उपभोक्ता ही सशक्त बाजार और मजबूत लोकतंत्र की आधारशिला है। जब उपभोक्ता को समय पर न्याय मिलता है, तो न केवल उसका विश्वास व्यवस्था में बढ़ता है, बल्कि बाजार में अनुशासन, पारदर्शिता और नैतिकता भी स्थापित होती है। अतः सरल, सुलभ और त्वरित न्याय केवल एक कानूनी प्रावधान नहीं, बल्कि उपभोक्ता सम्मान और सामाजिक न्याय की अनिवार्य शर्त है।
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