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पूर्व विधायक व किसान नेता नवरंगसिंह जाखड़ का निधन, अंतिम यात्रा में उमड़ा जनसैलाब


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पूर्व विधायक व किसान नेता नवरंगसिंह जाखड़ का निधन, अंतिम यात्रा में उमड़ा जनसैलाब

पूर्व विधायक व किसान नेता नवरंगसिंह जाखड़ का निधन, अंतिम यात्रा में उमड़ा जनसैलाब

जनमानस शेखावाटी संवाददाता :  रविन्द्र पारीक

नवलगढ़ : क्षेत्र के पूर्व विधायक और प्रख्यात किसान नेता नवरंगसिंह जाखड़ का शुक्रवार देर रात अचानक तबीयत बिगड़ने से निधन हो गया। उनके निधन की खबर फैलते ही पूरे इलाके में शोक की लहर दौड़ गई। ग्रामीणों से लेकर राजनीतिक जगत तक सभी ने उनके निधन को अपूरणीय क्षति बताया।

शनिवार दोपहर को उनका अंतिम संस्कार पैतृक गांव घोटू जाखड़ की ढाणी (धमोरा) में किया गया। इस दौरान जनसैलाब उमड़ पड़ा। परिजनों ने गमगीन माहौल में उन्हें मुखाग्नि दी। नवलगढ़ विधायक विक्रम सिंह जाखल, पूर्व विधायक शुभकरण चौधरी, नवलगढ़ प्रधान दिनेश सुंडा, पवन प्रशासक विजेंद्र डोटासरा, पूर्व विधायक सुभाष पूनिया सहित अनेक जनप्रतिनिधियों व नेताओं ने पहुंचकर पुष्पचक्र अर्पित किए और श्रद्धांजलि दी।

छात्र राजनीति से किसान नेता तक का सफर

7 जून 1942 को गनपत सिंह जाखड़ और घोटी देवी के घर जन्मे नवरंगसिंह की शिक्षा गांव से शुरू हुई और जयपुर तक पहुंची। उन्होंने इतिहास में एमए और बीएड की डिग्री हासिल की। एलएलबी अधूरी रह गई, लेकिन छात्र जीवन से ही वे आंदोलनों और संघर्षों से जुड़ गए। जयपुर और नवलगढ़ में छात्रसंघ राजनीति में सक्रिय रहते हुए उन्होंने सामाजिक न्याय और जागीरदारी उन्मूलन के लिए संघर्ष किया।

दो बार बने विधायक

1977 में जनता पार्टी से और 1985 में लोकदल से नवलगढ़ से विधायक चुने गए। विधानसभा में विशेषाधिकार समिति, सरकारी आश्वासन समिति और गृह समिति के अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभालीं। 1979-80 में वे विधानसभा के मुख्य सचेतक भी रहे। कांग्रेस (संगठन), जनता पार्टी और लोकदल की प्रदेश कार्यसमिति में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। राजस्थान किसान मंच के अध्यक्ष के तौर पर किसानों की आवाज मजबूती से उठाई।

सामाजिक सुधार आंदोलनों के अगुवा

राजनीति के साथ-साथ वे सामाजिक आंदोलनों में भी हमेशा आगे रहे। 1979 में विधानसभा के सामने आमरण अनशन कर शराबबंदी लागू करवाई। दिवराला सती प्रकरण को उजागर कर सती प्रथा पर कानून बनने का मार्ग प्रशस्त किया। दहेज प्रथा, मृत्युभोज और बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ लगातार लड़ते रहे।

शराबबंदी को लेकर विशेष संकल्प

राज्य में शराबबंदी लागू करने को लेकर वे जीवन के अंतिम दिनों तक संघर्षरत रहे। पिछले डेढ़ वर्ष से उन्होंने भोजन और चाय का त्याग कर रखा था, उन्होंने कई बार मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर शराबबंदी की मांग दोहराई थी। समाज सुधार और जनहित के इस अदम्य संकल्प ने उन्हें आमजन में अलग पहचान दिलाई।

हर आपदा में जनता के साथी

1967-68 की बाढ़ और 1979 के अकाल के समय वे राहत कार्यों की अगुवाई में जुटे रहे। किसानों के लिए कई बार आंदोलनों का नेतृत्व किया और जेल भी गए। नवलगढ़ में किसान छात्रावास की स्थापना उनके अथक प्रयासों से ही संभव हो सकी। इसके लिए उन्होंने अपनी जमीन तक दान कर दी।

परिवार और विरासत

जाखड़ के परिवार में तीन पुत्र—रामावतार सिंह, संजय जाखड़ और सुनील जाखड़ तथा एक पुत्री सुमित्रा सिंह आर्य हैं। उनके निधन से पूरे क्षेत्र में गहरा शोक व्याप्त है। लोगों का कहना है कि किसानों और समाज के लिए किए गए उनके कार्य हमेशा स्मरणीय रहेंगे और उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।

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