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खेतड़ी रियासत के राजा बहादुर सरदार सिंह की अंतिम इच्छा पूरी, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी वसीयत को माना वैध


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खेतड़ी रियासत के राजा बहादुर सरदार सिंह की अंतिम इच्छा पूरी, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी वसीयत को माना वैध

खेतड़ी रियासत के राजा बहादुर सरदार सिंह की अंतिम इच्छा पूरी, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी वसीयत को माना वैध

खेतड़ी : लगभग 40 वर्षों के लंबे संघर्ष के बाद सुप्रीम कोर्ट ने खेतड़ी रियासत के तत्कालीन राजा बहादुर सरदार सिंह की वसीयत को वैध माना है। यह वसीयत 30 अक्टूबर 1985 को खेतड़ी ट्रस्ट के पक्ष में बनाई गई थी। न्यायाधीश बीवी नागरत्ना व सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने राजस्थान सरकार की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिका को खारिज करते हुए पहले से प्रदान किए गए प्रोबेट की वैधता को बरकरार रखा।

कोर्ट ने कहा कि 7 नवम्बर 1985 की कोडिसिल के प्रोबेट को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है। इस प्रकार सम्पूर्ण संपत्ति अब खेतड़ी ट्रस्ट की विधिपूर्वक हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय केवल संपत्ति विवाद नहीं है, बल्कि प्रत्येक नागरिक के उस मूल अधिकार की पुष्टि है जिसके तहत वह अपनी संपत्ति का वारिस स्वतंत्र रूप से निर्धारित कर सकता है।

राजा के निधन के बाद सरकार ने राज्य में निहित कर ली थी पूरी संपत्ति : खेतड़ी रियासत के तत्कालीन राजा बहादुर सरदारसिंह के निधन के बाद राज्य सरकार ने उनकी पूरी संपत्ति राज्य में निहित कर ली थी। सरकार ने औपनिवेशिक कालीन राजस्थान अवशेषाधिकार अधिनियम, 1956 के तहत यह दावा किया कि खेतड़ी सम्पदा “राज्य में निहित” हो गई है। कोर्ट ने कहा कि वैध वसीयत होने की स्थिति में राज्य किसी निजी संपत्ति के उत्तराधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। इसलिए प्रोबेट दिए जाने के बाद संपत्ति का स्वामित्व निर्णायक रूप से लाभार्थी यानी खेतड़ी ट्रस्ट में निहित हो जाता है। केविएट केवल वे उत्तराधिकारी अथवा लाभार्थी, जिनका संपत्ति में प्रत्यक्ष हित हो लगाकर प्रोबेट को चुनौती दे सकते हैं। राज्य सरकार के अवशेषाधिकार का प्रयोग केवल उसी स्थिति में होता है जब व्यक्ति बिना वसीयत किए मरे और कोई उत्तराधिकारी भी मौजूद न हो।

उच्च न्यायालय का पूर्व आदेश : न्यायालय ने 2016 में राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश का उल्लेख किया, जिसमें राज्य की अवशेषाधिकार कार्रवाई को रद्द करते हुए संपत्ति ट्रस्ट को लौटाने का निर्देश दिया गया था। यह आदेश आज भी स्थगित नहीं है।

सर्वोच्च न्यायालय का आदेश निजी संपत्ति के शांतिपूर्ण उत्तराधिकार की रक्षा करता है और निजी वादों में सरकारी हस्तक्षेप को निषिद्ध करता है। खेतड़ी ट्रस्ट मामले में यदि राजस्थान राज्य को उत्तराधिकार प्रकरण में प्रथम दावेदार के रूप में मान्यता दी जाती, तो यह एक अत्यंत खतरनाक परंपरा स्थापित करता। लोग अपना संपूर्ण जीवन इस उद्देश्य से बचत करते हैं कि वे अपने प्रियजनों और विश्वासपात्रों के लिए एक विरासत छोड़ सकें। यदि सरकार को इस विरासत पर प्रथम अधिकार जताने का अवसर मिल जाए, तो उत्तराधिकार के अधिकार की रक्षा करने वाले कॉमन लॉ का ही पतन हो जाएगा। – पृथ्वीराज सिंह, मैनेजिंग टस्ट्री खेतड़ी ट्रस्ट

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