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दौर-ए-हाज़िर की सबसे बड़ी बुराई है नशा – करामत अली खान उर्दू अदीब


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दौर-ए-हाज़िर की सबसे बड़ी बुराई है नशा – करामत अली खान उर्दू अदीब

दौर-ए-हाज़िर की सबसे बड़ी बुराई है नशा - करामत अली खान उर्दू अदीब

जिला मुख्यालय से ‌ करामत अली ख़ान ‌ उर्दू अदीब ने बताया इंसान एक ऐसे माहौल में रहना पसंद करता है, जहाँ उसको खुद की सेहत और सफाई के साथ-साथ सेहतमंद समाज की भी ख्वाहिश और उम्मीद होती है । हर शख्स ऐसा माहौल चाहता है जहाँ उसे और उसके खानदान के अफराद को खुशगवार फिजा, साफ -सुथरा माहौल और बुराइयों से दूर रहने वाले अच्छे लोगों का साथ मिले। हर शख्स की चाहत होती है कि उसे व उसके घर वाले हर तरह की बुराई से दूर रहते हुए पुर सुकून ज़िन्दगी गुज़ारे। लेकिन बड़े दर्द की बात है कि मौजूदा वक़्त में हमारे मुआशरे में कई बुराइयाँ रोज ब-रोज बढ़ती जा रही हैं। जिनमें से एक बुराई है “नशा”। नशा एक ऐसी लानत और बुराई है जिसको मजहब-ए-इस्लाम के अलावा दीगर मजाहिब में भी मम्नूअ् करार दिया गया है और निहायत बुरा माना गया है। मौजूदा दौर में नौजवानों में नशे की बुराई बहुत बढ़ रही है। गौर किया जाए तो मालूम होगा कि कम उम्र के लड़के भी नशे की आदत में मुब्तला हैं। नौजवानों में उमूमन नशे की शुरुआत गुटखा, तम्बाकू और सिगरेट के इस्तेमाल करने से होती। अगर कहा जाए कि गुटखा, तम्बाकू और सिगरेट भी एक हल्के दर्जे का नशा है , तो यह कहना गलत न होगा। इसके बाद वे बियर, शराब, अफीम, गांजा, चरस , कोकीन और हेरोइन जैसी जिंदगी को बर्बाद कर देने वाली नशीली चीज़ों का इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं। आजकल कई नौजवानों का यह ख़याल है कि नशा एक फैशन है , एक चलन है। इसी लिए वे नशा करने को बुरा महसूस नहीं करते। कुछ नौजवान अपनी ज़ेहनी तनाव और डिप्रेशन को कम करने के लिए नशा करते हैं। जबकि हकीकत यह है कि नशे से ज़ेहनी तनाव और डिप्रेशन में कमी नहीं बल्कि इज़ाफ़ा होता है। इसलिए कि जो चीज़ जिस्मानी एतबार से नुकसानदेह हो, उस चीज़ से कभी भी ज़ेहनी तनाव दूर नहीं हो सकता। जिस दिन से इंसान नशा करना शुरू कर देता है, उसी दिन से उसके बदहाली, बदबख्ती, बदकिस्मती और बर्बादी के अयाम शुरू हो जाते हैं। नशा एक ऐसी मकरूह बुराई है, कि जो भी इंसान इसका शिकार हो जाता है , फिर उसमें नेकी और बुराई की तमीज़ बाक़ी नहीं रहती। नशा करने वाले शख्स की सोचने-समझने की सलाहियत मफ़्लूज होकर रह जाती है। फिर उसको अच्छाई-बुराई , इज़्ज़त-ज़िल्लत, छोटे-बड़े , अपने-पराए , सही-गलत, फायदे-नुकसान, कम-ज़ियादा, भला-बुरा हत्ता कि उसे सुबह-शाम और दिन-रात का भी एहसास तक नहीं रहता। नशा करने वाला इंसान नशे को ही कुल काइनात मानता और समझता है। उसके नज़दीक नशे के आलावा दीगर दूसरी चीज़ों की कोई अहमियत नहीं होती। नशा इंसान की पूरी जिंदगी को बर्बाद कर देता है। यह भी देखा गया है कि नशा करने वाला शख्स अपने परिवार व समाज के लिए एक बोझ बन जाता है। नशा करने वाला शख्स अपनी ज़िन्दगी और अपने घर वालों की ज़िन्दगी को तबाही की तरफ ले जाने वाला होता है। नशा करने वाला शख्स माँ-बाप की शान में गुस्ताखी, बदतमीज़ी और अपनी बीवी अपने बच्चों पर सितम करने वाला होता है। कभी-कभी तो नशा करने वाला शख्स अपने माँ-बाप अपनी बीवी अपने बच्चों का कातिल भी बन जाता है। नशा करने वाले इंसान की लोग कद्र नहीं करते और उसको हकीर समझते हैं। समाज और मुआशरे में उसकी कोई इज़्ज़त नहीं रहती। हर रोज़ सड़क हादसे, घरेलू झगड़े, परिवार और खानदान में लड़ाइयां अक्सर नशे की वजह से होती हैं। इस्मतदरी, बदकारी, ज़ियादती, खूँ-रेज़ी, डाकाज़नी जैसी संगीन वरदातें ज़ियादातर नशे की हालत में अंजाम दी जाती हैं। इसी तरह गाली-गलोच और बेहूदा बातें भी हालत-ए-नशे में की जाती हैं। इन बुराइयों और वारदातों के साथ-साथ नशे से जिस्म में जानलेवा बीमारियां भी पैदा हो जाती हैं , जिनका इलाज होना मुश्किल हो जाता है। गर्ज़ नशा इंसान को बर्बाद करने वाली चीज़ों में से एक बड़ी चीज़ है। अब ज़रूरत इस बात की है कि हम सभी मिलकर नौजवानों को नशे के खिलाफ बेदार करें और अपनी समाजी और अख़्लाक़ी ज़िम्मेदारी को अदा करें। हमारी निगाह में अगर कोई नशे की लत में मुलव्विस है तो उसे मुश्फिकाना अंदाज में निहायत बसीरत और संजीदगी के साथ समझाएं और उसको नशे से होने वाले नुकसानात बताएं। उम्मीद है कि समाज के दानिशवर लोग अगर नशे के खिलाफ लोगों में बेदारी पैदा करने की फ़िक्र करेंगे तो जरूर यह बुराई कम होगी और हमारे मुआशरे में खुशहाली, खुशगवारी, पाकीज़गी और सुकून का माहौल काइम होगा।
“नशे से होते हैं सभी नुकसान।
इस से दूर रहे हर एक इंसान।”

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